हिंदी सिनेमा का रौबीला विलेन: प्रेमनाथ मल्होत्रा की ज़िंदगी की अनसुनी, सिनेमाई कहानी
हिंदी फिल्मों के इतिहास में कई कलाकार आए और गए, लेकिन कुछ चेहरे ऐसे हैं जिनकी छवि समय के साथ और भी चमकदार होती जाती है। प्रेमनाथ मल्होत्रा, जिन्हें दुनिया “बॉलीवुड का सबसे स्टाइलिश और रौबीला विलेन” कहकर याद करती है, उन नामों में शामिल हैं।
उनका जीवन सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं था—बल्कि साहस, जुनून, दोस्ती, प्यार और संघर्ष का एक ऐसा मिश्रण था, जो किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं।
21 नवंबर 1926 को जन्मे प्रेमनाथ का जीवन कई मोड़ों से गुजरा। भारत विभाजन के दौर में वे अपने परिवार के साथ जबलपुर आ बसे। पिता पुलिस अफसर थे—अनुशासन मिला, करियर आर्मी में तय हुआ, लेकिन दिल तो कैमरे के सामने जाने को बेताब था।
फिल्म परिचय: हीरो बनने की चाह और विलेन के रूप में अमर पहचान
प्रेमनाथ का फिल्मी सफर 1948 की फिल्म ‘अजीत’ से शुरू हुआ। इसके बाद राजकपूर की ‘आग’ और ‘बरसात’ ने उन्हें पहचान दिलाई।
लंबा कद, रौबीली पर्सनैलिटी, दमदार आवाज़ और सधी हुई संवाद-अदायगी—इन खूबियों ने उन्हें जल्द ही दर्शकों का चहेता बना दिया।
शुरुआत हीरो के रूप में हुई थी, लेकिन किस्मत ने उन्हें सिनेमा के इतिहास का सबसे यादगार विलेन बना दिया।
“शगूफा”, “समंदर”, “चंगेज खान” जैसी फिल्मों से लेकर उनकी छवि एक मजबूत एक्टर की बन चुकी थी, लेकिन असली चमक बाद में आई।
घोषणा: प्रेमनाथ–राजकपूर दोस्ती और रिश्तेदारी की अनोखी कहानी
फिल्मी दुनिया में प्रेमनाथ की एक और दिलचस्प कहानी है—उनकी दोस्ती और बाद में रिश्तेदारी का कपूर परिवार से जुड़ना।
मुंबई पहुंचकर वे सीधे पृथ्वीराज कपूर के पास गए और थिएटर में शामिल होने की इच्छा जताई। पृथ्वीराज कपूर ने उनका उत्साह देखकर उन्हें अपने थिएटर से जोड़ लिया।
यहीं उनकी दोस्ती हुई राजकपूर से—एक ऐसी दोस्ती, जो बाद में परिवार बन गई।
जबलपुर की एक यात्रा के दौरान राजकपूर पहली बार प्रेमनाथ की बहन कृष्णा से मिले और देखते ही दिल हार बैठे।
प्रेम कहानी आगे बढ़ी और विवाह तक पहुंची।
यही नहीं—इसके बाद प्रेमनाथ, रणधीर कपूर, ऋषि कपूर और राजीव कपूर के मामा कहलाए।
फिल्मी विरासत और उतार-चढ़ाव: बीना राय से शादी और बड़ा फैसला
फिल्म ‘औरत’ में काम करते हुए प्रेमनाथ की मुलाकात खूबसूरत अभिनेत्री बीना राय से हुई। सेट पर शुरू हुआ यह रिश्ता विवाह तक पहुंचा।
दोनों ने मिलकर “पी.एन. फिल्म्स” नाम का प्रोडक्शन हाउस भी खोला।
“शगूफा” (1953), “समंदर” और “चंगेज खान” जैसी फिल्में बनीं—कहानी अच्छी थी लेकिन कमर्शियल सफलता नहीं मिली।
धीरे-धीरे फिल्में कम मिलीं, और करियर का ग्राफ नीचे जाने लगा।
दूसरी ओर बीना राय के करियर में बेहतर फिल्में और सफलता दिखाई दे रही थी।
यहीं प्रेमनाथ ने वह निर्णय लिया, जो हिंदी फिल्मों में दुर्लभ है—
उन्होंने 14 साल तक फिल्मों से दूरी बना ली।
यह समय उन्होंने यात्राओं, धार्मिक ग्रंथों और आध्यात्मिकता में बिताया।
वापसी और बड़ी सफलताएँ: बॉक्स ऑफिस का शानदार दौर
लंबे अंतराल के बाद प्रेमनाथ ने अपने करियर की सबसे दमदार वापसी की।
देव आनंद की सुपरहिट फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ (1970) ने उन्हें फिर से लाइमलाइट में ला खड़ा किया।
इसके बाद एक के बाद एक बड़ी फिल्में—
- ‘रोटी, कपड़ा और मकान’
- ‘शोर’
- ‘बॉबी’
- ‘विश्वनाथ’
- ‘गौतम गोविंदा’
विशेषकर ‘धर्मात्मा’ में उनका किरदार आज भी दर्शकों की यादों में अमर है।
सुभाष घई जैसे दिग्गज निर्देशक उनके अभिनय के प्रबल प्रशंसक थे और उन्हें “हिंदी सिनेमा का सबसे प्रभावशाली विलेन” बताते थे।
बॉक्स ऑफिस इतिहास: प्रेमनाथ का प्रभाव
उनकी फिल्में कई दशक तक सिनेमाघरों में राज करती रहीं।
खासतौर पर
- ‘बॉबी’ (1973)
- ‘जॉनी मेरा नाम’ (1970)
- ‘शोर’ (1972)
- ‘धर्मात्मा’ (1975)
- अपने समय की रिकॉर्ड-तोड़ कमाई करने वाली फिल्मों में रही हैं।
उनके संवाद, अंदाज़ और खलनायकी का रूतबा ऐसा था कि आने वाले दशकों में अमरीश पुरी, अजीत और प्रेम चोपड़ा जैसे कलाकारों को भी प्रेरणा मिली।
सोशल मीडिया प्रतिक्रिया: आज भी लोगों की ज़ुबान पर है नाम
बॉलीवुड के पुरानी यादें साझा करने वाले पेजों पर जब भी प्रेमनाथ की कोई तस्वीर, वीडियो या फिल्म का सीन साझा होता है, लोग आज भी भावुक हो जाते हैं।
टिप्पणियों में अक्सर लिखा जाता है—
- “आज के खलनायक, प्रेमनाथ के सामने फीके लगते हैं।”
- “उनका स्टाइल और व्यक्तित्व आज भी unmatched है।”
- “ऐसे एक्टर अब नहीं बनते।”
YouTube पर भी उनके संवाद वाले सीन पर लाखों व्यूज़ मिलते हैं, जो बताता है कि उनकी लोकप्रियता समय के साथ और भी मजबूत हुई है।
निष्कर्ष: अंतिम पड़ाव और अमर विरासत
65 वर्ष की आयु में 3 नवंबर 1992 को दिल का दौरा पड़ने से प्रेमनाथ का निधन हो गया।
लेकिन उनका काम—उनकी आवाज, उनका रौब, उनकी स्क्रीन-प्रेज़ेंस—आज भी बॉलीवुड में मिसाल माना जाता है।
वह सिर्फ एक कलाकार नहीं थे, बल्कि हिंदी सिनेमा की एक मजबूत नींव थे, जिसने विलेन को एक नई पहचान दी।
प्रेमनाथ की कहानी साबित करती है कि जुनून, संघर्ष और विश्वास इंसान को हर मुश्किल दौर से वापस ला सकते हैं।
चाहे फिल्मी दुनिया में हो या असल ज़िंदगी में—उनकी दृढ़ता और रौबीला अंदाज़ एक प्रेरणा है।
वे हिंदी सिनेमा के उन दुर्लभ कलाकारों में से रहे, जिनके बिना बॉलीवुड की खलनायकी अधूरी लगती है।
