चंदू बोर्डे: भारत के क्रिकेट इतिहास का चमकता सितारा
चंदू बोर्डे भारतीय क्रिकेट के स्वर्णिम युग के उन दिग्गज खिलाड़ियों में से एक रहे, जिनकी बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग तीनों में गहरी पकड़ थी। 1950 से 1960 के दशक में वह टीम इंडिया के भरोसेमंद मध्यक्रम बल्लेबाज माने जाते थे, जो लेग स्पिन गेंदबाजी में भी माहिर थे।
21 जुलाई 1934 को महाराष्ट्र के पुणे में जन्मे चंदू बोर्डे ने क्रिकेट के मैदान में अपने करियर की शुरुआत 1952 में की। उन्होंने महाराष्ट्र की ओर से बॉम्बे के खिलाफ अपना पहला प्रथम श्रेणी मैच खेला और इस मुकाबले में अर्धशतक लगाकर अपने आने वाले सुनहरे भविष्य का संकेत दे दिया। अगले ही सीजन में उन्होंने पांच विकेट लेकर गेंदबाज के रूप में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कुछ समय बाद उन्होंने बड़ौदा के लिए भी खेला।
चंदू बोर्डे के शानदार घरेलू प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें नवंबर 1958 में भारत की राष्ट्रीय टीम में मौका मिला। उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की। हालांकि शुरुआती दो मैचों में वह खास प्रदर्शन नहीं कर सके और उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। लेकिन चौथे टेस्ट में एक बार फिर उन्हें मौका मिला, जहां उन्होंने दूसरी पारी में 56 रन बनाए और तीन विकेट भी लिए। हालांकि भारत को यह मैच 295 रन से गंवाना पड़ा।
सीरीज के पांचवें टेस्ट में चंदू बोर्डे ने अपनी बल्लेबाजी प्रतिभा का असली प्रदर्शन किया। उन्होंने पहली पारी में शतक जड़ा और दूसरी पारी में 96 रन बनाकर यह साबित कर दिया कि वे लंबी रेस के घोड़े हैं। हालांकि वह दूसरी पारी में दुर्भाग्यवश ‘हिट विकेट’ आउट हो गए। इस टेस्ट मैच को भारत ड्रॉ कराने में सफल रहा।
1967-68 में जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज चल रही थी, तब टीम के नियमित कप्तान मंसूर अली खान पटौदी अनुपस्थित थे। ऐसे में चंदू बोर्डे को भारत की कप्तानी सौंपी गई। उन्होंने उस मैच में 69 रन बनाए लेकिन भारतीय टीम को 146 रन से हार का सामना करना पड़ा।
क्रिकेट के मैदान में अपनी योग्यता से टीम को मजबूत करने वाले चंदू बोर्डे मैदान के बाहर भी उतने ही संवेदनशील और सहृदय इंसान रहे हैं। 1962 में जब वेस्टइंडीज के खिलाफ किंग्सटन टेस्ट खेला जा रहा था, तब वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज चार्ली ग्रिफिथ की बाउंसर भारतीय कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर के सिर पर जा लगी थी। यह हादसा इतना गंभीर था कि कॉन्ट्रैक्टर कई दिनों तक बेहोश रहे। इस कठिन समय में चंदू बोर्डे ने न सिर्फ तुरंत अस्पताल पहुंचकर उनका हाल जाना, बल्कि ब्लड डोनेट कर उनकी जान बचाने में भी योगदान दिया। वेस्टइंडीज के कप्तान फ्रैंक वॉरेल ने भी ब्लड डोनेट किया। हालांकि नारी कॉन्ट्रैक्टर की जान बच गई, लेकिन वह फिर कभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेल पाए।
अपने 11 साल लंबे टेस्ट करियर में चंदू बोर्डे ने 55 टेस्ट मैचों की 97 पारियों में 3,061 रन बनाए, जिसमें उनका औसत 35.59 का रहा। इस दौरान उन्होंने पांच शतक और 18 अर्धशतक जड़े। गेंदबाजी में भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा और उन्होंने 52 टेस्ट विकेट अपने नाम किए।
फर्स्ट क्लास क्रिकेट में चंदू बोर्डे का करियर और भी शानदार रहा। उन्होंने कुल 251 मैच खेले और 40.91 की औसत से 12,805 रन बनाए। उनके खाते में 30 शतक और 72 अर्धशतक शामिल हैं। साथ ही उन्होंने 331 विकेट भी लिए, जो उनकी ऑलराउंड क्षमता को दर्शाता है।
चंदू बोर्डे सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक प्रेरणास्रोत रहे हैं। उनका करियर युवा खिलाड़ियों के लिए आज भी मिसाल है—चाहे वो खेल की तकनीक हो या इंसानियत की भावना।