जहां भगवान शिव ने समुद्र के कोप से अपने भक्त मार्कंडेय की रक्षा की, वहीं आज लाखों श्रद्धालु करते हैं दर्शन और पूजन
सावन का महीना आते ही देशभर के शिवालयों में श्रद्धा की बयार बहने लगती है। भक्तगण व्रत, पूजा और शिव अभिषेक के साथ भगवान शिव की कृपा पाने के लिए मंदिरों की ओर रुख करते हैं। ऐसी ही अपार श्रद्धा देखने को मिल रही है ओडिशा की धार्मिक नगरी पुरी में, जहां मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर इस पवित्र महीने में विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
पुरी का यह मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि इसका गहरा पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। यह वही स्थान है जहां समुद्र के क्रोध से ऋषि मार्कंडेय की रक्षा स्वयं भगवान शिव ने की थी। इसी चमत्कारिक घटना की स्मृति में यहां शिवलिंग की स्थापना हुई और कालांतर में यह स्थान मार्कण्डेश्वर मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
पुरी न केवल भगवान जगन्नाथ की नगरी है, बल्कि यह हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। यहां की संस्कृति, विरासत और धार्मिकता में हजारों वर्षों की आस्था रची-बसी है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की ऐतिहासिक विरासत को समेटे इस शहर में स्थित मार्कण्डेश्वर मंदिर, पांच प्रमुख शिव मंदिरों में से एक माना जाता है।
इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर दस भुजाओं वाले नटराज की भव्य मूर्ति लगी हुई है, जो श्रद्धालुओं को सम्मोहित कर देती है। अंदर की दीवारों और कोनों में भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और शिव के विभिन्न अवतारों की मूर्तियां जटिल नक्काशियों के साथ सजी हैं। इससे मंदिर की धार्मिक गरिमा के साथ-साथ इसकी स्थापत्य कला भी दर्शकों को आकर्षित करती है।
मंदिर परिसर के पास ही एक पवित्र सरोवर स्थित है, जिसे मार्कंडेय सरोवर कहा जाता है। यह सरोवर पुरी के पंच तीर्थों में से एक माना जाता है और यहीं से कई तीर्थयात्री अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। इस आयताकार सरोवर के चारों ओर लैटेराइट पत्थरों से बनी एक दीवार है और इसकी सीढ़ियों पर विभिन्न धार्मिक कर्मकांड—जैसे मुंडन, पिंडदान और पूजा—नियमित रूप से संपन्न होते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि मार्कंडेय यहां तपस्या कर रहे थे जब समुद्र में उथल-पुथल मच गई और लहरों ने उन्हें निगलने की कोशिश की। उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए और अपने त्रिशूल से समुद्र को शांत कर मार्कंडेय की रक्षा की। इस करुणा और आस्था की गाथा ने इस स्थान को एक महत्वपूर्ण तीर्थ बना दिया।
इतिहास के अनुसार, 12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर की संरचना सफेद रंग की है और इसकी ऊपरी छतों पर विस्तृत नक्काशी देखने को मिलती है। यह मंदिर एक छोटी लेकिन प्रभावशाली धार्मिक संरचना है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है।
सावन के महीने में इस मंदिर में खास चहल-पहल देखने को मिलती है। श्रद्धालु दूर-दूर से यहां जलाभिषेक और शिव आराधना के लिए पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि, ऋषि पंचमी, संक्रांति, जन्माष्टमी जैसे पर्वों पर यहां विशेष अनुष्ठान होते हैं। इसके अलावा जगन्नाथ मंदिर से जुड़े पर्व जैसे शीतल षष्ठी, चंदन यात्रा, कालियादलन और बलभद्र जन्म जैसे आयोजन भी इस मंदिर से संबंधित होते हैं।
The Trending People का निष्कर्ष:
पुरी का मार्कण्डेश्वर महादेव मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और पौराणिकता की एक सजीव मिसाल भी है। सावन जैसे पवित्र महीने में इस मंदिर की महिमा और श्रद्धा का भाव और भी बढ़ जाता है। जहां एक ओर यह मंदिर भक्तों के मन को शांत करता है, वहीं इसकी स्थापत्य कला, सरोवर और पौराणिक कथा इसे एक अद्वितीय तीर्थ स्थल बनाती है। यदि आप कभी पुरी जाएं, तो भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ मार्कण्डेश्वर महादेव के भी दर्शन अवश्य करें।