साहित्य का एक युग समाप्त—'नौकर की कमीज़' को अमर करने वाले विनोद कुमार शुक्ल नहीं रहे, पीएम मोदी और सीएम साय ने दी श्रद्धांजलि
रायपुर/नई दिल्ली, दिनांक: 23 दिसंबर 2025 — हिंदी साहित्य के आकाश का एक दैदीप्यमान नक्षत्र आज सदा के लिए अस्त हो गया। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और समकालीन हिंदी कविता व कथा साहित्य के शीर्ष स्तंभ विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) का मंगलवार को रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया। वे पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे और अस्पताल में जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे। उनके निधन की खबर से पूरे साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
विनोद जी केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि वे साधारण जीवन के असाधारण चितेरे थे। उनकी लेखनी ने उस आम आदमी को नायक बनाया, जो रोजमर्रा की जद्दोजहद में भी उम्मीद की एक खिड़की खुली रखता है। उनके जाने से जो शून्य उत्पन्न हुआ है, उसकी भरपाई शायद सदियों तक न हो सके।
पीएम मोदी ने जताया गहरा दुख: "अमूल्य योगदान के लिए रहेंगे स्मरणीय"
विनोद कुमार शुक्ल के निधन पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने हिंदी साहित्य में शुक्ल जी के योगदान को अविस्मरणीय बताया।
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए लिखा:
"ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वह हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं।"
प्रधानमंत्री का यह संदेश दर्शाता है कि विनोद जी का कद केवल साहित्य तक सीमित नहीं था, बल्कि वे राष्ट्र की बौद्धिक धरोहर थे।
छत्तीसगढ़ के गौरव थे विनोद जी: सीएम विष्णु देव साय
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय (Vishnu Deo Sai) ने अपने राज्य के इस महान सपूत को भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने विनोद जी को छत्तीसगढ़ का गौरव बताया।
सीएम साय ने 'एक्स' पर लिखा:
"महान साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल जी का निधन एक बड़ी क्षति है। 'नौकर की कमीज़', 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' जैसी चर्चित कृतियों से साधारण जीवन को गरिमा देने वाले विनोद जी छत्तीसगढ़ के गौरव के रूप में हमेशा हम सबके हृदय में विद्यमान रहेंगे। संवेदनाओं से परिपूर्ण उनकी रचनाएँ पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। उनके परिजन एवं पाठकों-प्रशंसकों को संवेदना।"
साधारण में 'असाधारण' खोजने वाले जादूगर
विनोद कुमार शुक्ल की पहचान उनकी उस विशिष्ट शैली से थी, जिसे आलोचक अक्सर 'जादुई यथार्थवाद' (Magical Realism) के करीब मानते थे। उनकी भाषा इतनी सरल होती थी कि लगता था जैसे कोई बच्चा बोल रहा हो, लेकिन उस सरलता में जीवन का इतना गहरा दर्शन छिपा होता था कि बड़े-बड़े विद्वान नतमस्तक हो जाते थे।
- प्रमुख कृतियां: उनका उपन्यास 'नौकर की कमीज़' (Naukar Ki Kameez) हिंदी साहित्य की एक कालजयी रचना मानी जाती है, जिस पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणिकौल ने फिल्म भी बनाई थी। इसके अलावा 'दीवार में एक खिड़की रहती थी', 'खिलेगा तो देखेंगे' और कविता संग्रह 'सब कुछ होना बचा रहेगा' ने पाठकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी।
- सम्मान: साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें पेन अमेरिका लिटरेरी अवॉर्ड (PEN America Literary Award) से सम्मानित किया गया था, जो हिंदी साहित्य के लिए एक दुर्लभ उपलब्धि थी।
अंतिम दिन और एम्स का बुलेटिन
रायपुर एम्स के जनसंपर्क अधिकारी ने पुष्टि की कि विनोद कुमार शुक्ल पिछले कुछ दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे और उन्हें बेहतर इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ और अंततः उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर फैलते ही अस्पताल के बाहर उनके प्रशंसकों और साहित्य प्रेमियों का तांता लग गया।
क्यों खास थे विनोद कुमार शुक्ल?
आज के दौर में जब साहित्य क्लिष्टता और भारी-भरकम शब्दों के बोझ तले दब रहा है, विनोद जी ने अपनी रचनाओं में 'घर', 'रसोई', 'पेड़' और 'हवा' जैसे बिम्बों को जगह दी। उन्होंने सिखाया कि कैसे कम से कम शब्दों में सबसे बड़ी बात कही जा सकती है। उनकी कविताओं में एक ऐसा अपनापन था जो पाठक को लगता था कि यह उसी की कहानी है।
उदाहरण के तौर पर उनकी एक पंक्ति:
"हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था,
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था,
हताशा को जानता था,
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया..."
यह संवेदनशीलता ही उन्हें महान बनाती थी।
हमारी राय
विनोद कुमार शुक्ल का जाना केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं है, बल्कि एक पूरी 'संवेदना' का विदा लेना है। उन्होंने हिंदी को एक नई चाल, एक नया मुहावरा दिया। वे उन विरले लेखकों में से थे जिन्होंने सफलता के शिखर पर पहुंचकर भी अपनी सादगी नहीं छोड़ी। रायपुर का वह घर, जिसमें सचमुच 'एक खिड़की रहती थी', आज सूना हो गया है।
The Trending People का मानना है कि विनोद जी की रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक का काम करेंगी। जब तक हिंदी भाषा जीवित है, उनकी कहानियां और कविताएं पाठकों को यह याद दिलाती रहेंगी कि साधारण होना ही सबसे कठिन और सबसे सुंदर कला है। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनकी किताबों को पढ़ें और उस मानवीयता को अपने भीतर जिंदा रखें, जिसकी उन्होंने ताउम्र वकालत की।