मंदिर की घंटी सिर्फ 'आवाज़' नहीं, 'आह्वान' है—जानें कब बजाना है शुभ और कब हो सकती है भूल, क्या कहता है शास्त्र?
नई दिल्ली, दिनांक: 23 दिसंबर 2025 — सनातन धर्म में मंदिर जाना केवल ईश्वर के दर्शन करना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। आपने अक्सर देखा होगा कि भक्त मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते ही सबसे पहले प्रवेश द्वार पर टंगी घंटी (Temple Bell) बजाते हैं। टन-टन की यह आवाज वातावरण को भक्तिमय बना देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि घंटी बजाने के भी शास्त्रोक्त नियम हैं? क्या इसे आते-जाते कभी भी बजाया जा सकता है, या इसके लिए कोई विशेष समय निर्धारित है?
अक्सर जानकारी के अभाव में भक्त अनजाने में ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जिससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता। स्कंद पुराण (Skanda Purana) से लेकर वास्तु शास्त्र तक, हर जगह घंटी की ध्वनि और उसके प्रभाव का गहरा वर्णन मिलता है। आज हम आपको बताएंगे कि मंदिर का घंटा कब और कैसे बजाना चाहिए, और इसके पीछे छिपा गहरा वैज्ञानिक रहस्य क्या है।
'ॐ' की ध्वनि और नकारात्मकता का नाश
हिंदू परंपरा में मंदिर में घंटा या घंटी बजाने की प्रथा सदियों पुरानी है। इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व छिपा है।
- आध्यात्मिक महत्व: मान्यता है कि घंटी की ध्वनि साक्षात 'ॐ' (Om) के समान कंपन (Vibration) उत्पन्न करती है। शास्त्रों के अनुसार, घंटी की आवाज से वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा (Negative Energy) नष्ट हो जाती है और देव शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। यह ध्वनि भक्त और भगवान के बीच एक सेतु का काम करती है।
- वैज्ञानिक तर्क: विज्ञान की दृष्टि से, मंदिर के घंटे को इस प्रकार बनाया जाता है कि जब इसे बजाया जाए, तो उससे निकलने वाली ध्वनि हमारे मस्तिष्क के बाएं और दाएं हिस्से (Left and Right Brain) को एक साथ सक्रिय कर देती है। यह कंपन हमारे सातों उपचारात्मक केंद्रों (Healing Centers) को जागृत करता है, जिससे मन की एकाग्रता बढ़ती है।
कब बजाना चाहिए घंटा? (सही समय)
शास्त्रों में घंटी बजाने का सबसे उपयुक्त समय और स्थिति स्पष्ट रूप से बताई गई है:
- प्रवेश के समय (Entry): मंदिर में प्रवेश करते समय घंटी बजाना अनिवार्य और सबसे शुभ माना जाता है।
- तर्क: यह देवताओं के 'आह्वान' (Invoking) का प्रतीक है। जैसे हम किसी के घर जाते समय दरवाजा खटखटाते हैं या घंटी बजाते हैं, वैसे ही मंदिर में प्रवेश करते समय घंटी बजाकर हम ईश्वर से अपने आगमन की अनुमति मांगते हैं और उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
एकाग्रता: प्रवेश द्वार पर घंटी की तीव्र ध्वनि मन को बाहरी दुनिया के शोर-शराबे और सांसारिक उलझनों से तुरंत हटाकर ईश्वर की ओर एकाग्र कर देती है।
- आरती के समय: सुबह और शाम की आरती के दौरान घंटी, शंख और अन्य वाद्ययंत्रों का बजना अत्यंत फलदायी होता है। इससे पूजा की ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है और भक्त भाव-विभोर हो जाता है।
- घर के मंदिर में: घर में भी पूजा शुरू करने से पहले घंटी बजानी चाहिए। इसे 'गरुड़ घंटी' कहा जाता है। स्नान के बाद पूजा-पाठ शुरू करने से पहले इसे बजाने से घर का वास्तु दोष दूर होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
कब 'भूलकर भी' न बजाएं घंटी? (निषेध)
यह वह हिस्सा है जहां अधिकांश लोग गलती करते हैं। वास्तु और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुछ विशेष परिस्थितियों में घंटी बजाना वर्जित है:
- मंदिर से निकलते समय (Exit): अक्सर लोग दर्शन करने के बाद लौटते समय भी आदतवश घंटी बजा देते हैं। शास्त्रों के अनुसार, मंदिर से बाहर निकलते समय घंटी बजाना अनुचित है।
- कारण: जब हम मंदिर में पूजा और ध्यान करते हैं, तो हमारे भीतर एक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। लौटते समय हम उस शांति को अपने साथ लेकर जा रहे होते हैं। ऐसे में, जाते समय घंटी बजाना उस शांति और एकाग्रता को भंग कर सकता है। इसके अलावा, घंटी बजाना 'आह्वान' (बुलाना) है, न कि 'विदाई'। इसलिए, पूजा के बाद शांत मन से देवताओं को प्रणाम करके बाहर निकलना चाहिए।
- विग्रह की स्थापना के बिना: जहां भगवान की मूर्ति या विग्रह न हो, वहां अनावश्यक रूप से घंटी नहीं बजानी चाहिए।
घंटी बजाने के 3 स्वर्णिम नियम
अगर आप चाहते हैं कि आपकी पूजा स्वीकार हो, तो इन नियमों का पालन जरूर करें:
- बाएं हाथ का प्रयोग: घर में पूजा करते समय हमेशा बाएं हाथ (Left Hand) से घंटी बजानी चाहिए और दाएं हाथ से आरती करनी चाहिए। यह ऊर्जा के संतुलन को बनाए रखता है।
- मधुरता और अवधि: शास्त्रों के अनुसार, घंटी को बहुत जोर से, बार-बार या बहुत देर तक नहीं बजाना चाहिए। सामान्य रूप से 2 से 3 बार बजाना पर्याप्त है। ध्वनि कर्कश नहीं, बल्कि मधुर होनी चाहिए।
- गूंज (Resonance): घंटी को ऐसे बजाएं कि उसकी ध्वनि झटके से बंद न हो, बल्कि कुछ क्षण तक हवा में गूंजती रहे। यही गूंज सकारात्मक कंपन उत्पन्न करती है।
- रात्रि नियम: रात के समय जब भगवान शयन के लिए जा रहे हों (शयन आरती के बाद) या दोपहर में जब मंदिर के पट बंद हों, तब घंटी नहीं बजानी चाहिए। यह देवताओं के विश्राम में बाधा मानी जाती है।
हमारी राय
मंदिर की घंटी केवल एक धातु का टुकड़ा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का एक 'ध्वनि विज्ञान' (Sound Science) है। आज की आपाधापी में हम अक्सर रस्में तो निभाते हैं, लेकिन उनका मर्म भूल जाते हैं। प्रवेश करते समय घंटी बजाकर 'जागना' और निकलते समय शांत रहकर उस ऊर्जा को 'सहेजना'—यही इस परंपरा का सार है।
The Trending People का मानना है कि धर्म के इन छोटे-छोटे नियमों के पीछे गहरा मनोविज्ञान छिपा है। जब आप अगली बार मंदिर जाएं, तो घंटी को केवल आदत के तौर पर न बजाएं, बल्कि इसे अपने मन को 'रिबूट' (Reboot) करने के एक साधन के रूप में देखें। सही नियम और सही भाव ही पूजा को पूर्णता प्रदान करते हैं।
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