छत्तीसगढ़: रीपा योजना में बना लाखों का गोबर पेंट धूल फांक रहा, महिलाएं कर्ज में
राजनांदगांव, – छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (रीपा) योजना, जिसका उद्देश्य ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर रोजगार प्रदान करना था, अब मुश्किलों में घिरती नजर आ रही है। मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले के औंधी क्षेत्र के ग्राम सरखेड़ा में स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने गोबर से पेंट बनाने का काम उत्साहपूर्वक शुरू किया। उन्होंने लगभग 13 लाख रुपए खर्च कर गोबर पेंट तैयार किया, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इसकी बिक्री मात्र तीन लाख रुपए की ही हुई है। इसमें भी समूह को अब तक केवल 40 हजार रुपए का ही भुगतान मिल पाया है, जिससे समूह की महिलाएं लगभग 11 लाख रुपए के कर्ज में डूब गई हैं।
लाखों का गोबर पेंट गोदामों में पड़ा
स्व सहायता समूह की महिलाओं के लिए अब यह एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है कि उनके द्वारा निर्मित पेंट की खपत होगी या नहीं। रीपा केंद्रों में लाखों रुपए का गोबर पेंट धूल फांक रहा है, और "नारी शक्ति" के आत्मनिर्भर बनने का सपना फिलहाल धूमिल होता दिख रहा है।
मोहला-मानपुर, अम्बागढ़ चौकी जिले के सरखेड़ा स्थित रीपा गोठान में आजीविका की गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ी हैं। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद से अधिकारियों का रीपा केंद्रों की ओर ध्यान न देना इसकी एक बड़ी वजह बताई जा रही है। ऐसे हालात केवल सरखेड़ा गोठान में ही नहीं, बल्कि जिले के लगभग हर गोठान का यही हाल है। जिले में कुल 6 रीपा गौठान हैं, और उनमें से अधिकांश में सभी प्रकार की आजीविका गतिविधियां ठप पड़ी हैं।
आजीविका का साधन बनी कर्ज की वजह
सरखेड़ा के महिला स्व सहायता समूह ने अपनी आजीविका के साधन के रूप में 13 लाख रुपए का गोबर पेंट का निर्माण किया था। जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी, तो गोबर पेंट की बिक्री नियमित रूप से हो रही थी। मांग और आपूर्ति के हिसाब से महिला स्व सहायता समूहों ने पूरे उत्साह के साथ गोबर पेंट का निर्माण तो कर दिया, लेकिन अब उनके उत्पादों की मांग पूरी तरह से ठप पड़ गई है। इसके परिणामस्वरूप, निर्मित उत्पाद गोदामों में बेकार पड़े हैं, और हजारों लीटर पेंट मानपुर जनपद पंचायत में रखे हुए हैं, जहां वे धूल फांक रहे हैं।
पदम शांति महिला स्व सहायता समूह, सरखेड़ा ने 13 लाख रुपए का गोबर पेंट बनाया, लेकिन अब तक केवल 3 लाख 50 हजार रुपए के गोबर पेंट की ही बिक्री हो पाई है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं को इस बिक्री में से केवल 50 हजार रुपए का ही भुगतान किया गया है। शेष लाखों रुपए का गोबर पेंट अभी भी जनपद पंचायत और रीपा केंद्रों में पड़ा हुआ है।
कर्ज में डूबी महिलाएं और चिंता का विषय
सरकार बदलने के बाद से निर्मित गोबर पेंट की मांग न के बराबर रह गई है। अब इन महिलाओं को इस बात की गहरी चिंता सता रही है कि उनके बचे लाखों रुपए के पेंट की बिक्री हो पाएगी या नहीं। यदि पेंट की बिक्री नहीं हुई, तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा और वे बड़े कर्ज के बोझ तले दब जाएंगी।
स्व सहायता समूह सरखेड़ा की सचिव माधुरी केरकेट्टा ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि सरकारी विभागों को गोबर पेंट की खरीद के निर्देश दिए गए थे। उन्होंने बताया कि "पहले प्रशासनिक अधिकारी इसमें रुचि दिखाते थे, लेकिन अब कोई ध्यान नहीं दे रहा है।" उन्होंने यह भी कहा कि लाखों रुपए का मटेरियल बेकार पड़ा है, और उन्हें कर्ज चुकाने की चिंता सता रही है।
इस मामले में, प्रभारी कलेक्टर व सीईओ जिला पंचायत, मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी, भारती चंद्राकर ने कहा कि जिले में रीपा प्रोजेक्ट के तहत काम चल रहा था। उन्होंने बताया कि गोबर पेंट के मामले में क्या दिक्कत आई है, यह पता करवाना पड़ेगा और यह मामला फिलहाल उनकी जानकारी में नहीं है। इस स्थिति ने रीपा योजना के कार्यान्वयन और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन की चुनौतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।