आगरा में अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र को कैबिनेट की मंजूरी
नई दिल्ली, 25 जून – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के आगरा में अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र (सीआईपी) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (सीएसएआरसी) की स्थापना के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह कदम भारत में आलू और शकरकंद क्षेत्र को मजबूत करने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
मुख्य उद्देश्य: उत्पादकता और रोजगार सृजन
इस निवेश का मुख्य उद्देश्य आलू और शकरकंद की उत्पादकता, कटाई के बाद प्रबंधन और मूल्य संवर्धन (वैल्यू एडिशन) में सुधार करना है। इन सुधारों के माध्यम से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा, किसानों की आय में वृद्धि होगी और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। भारत का आलू क्षेत्र, जिसमें उत्पादन, प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग), पैकेजिंग, परिवहन और विपणन (मार्केटिंग) शामिल है, में महत्वपूर्ण रोजगार अवसर पैदा करने की अपार क्षमता है।
एक आधिकारिक बयान के अनुसार, इस क्षेत्र में अपार संभावनाओं का दोहन करने और उन्हें तलाशने के लिए, आगरा के सिंगना में अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र का दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (सीएसएआरसी) स्थापित किया जा रहा है। यह केंद्र इस क्षेत्र में आलू और शकरकंद के अनुसंधान, विकास और प्रसार के लिए एक हब के रूप में कार्य करेगा।
बयान में बताया गया कि सीएसएआरसी द्वारा विकसित आलू और शकरकंद की उच्च उपज देने वाली, पोषक तत्व से भरपूर और जलवायु अनुकूल किस्में वर्ल्ड-क्लास साइंस और इनोवेशन के माध्यम से न केवल भारत में बल्कि पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में आलू और शकरकंद क्षेत्रों के सतत विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) को महत्वपूर्ण रूप से गति प्रदान करेंगी। यह क्षेत्रीय केंद्र कृषि अनुसंधान में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी बढ़ावा देगा।
आलू क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार
इस बीच, देश में आलू के नए उपयोग खोजने के लिए गहन रिसर्च चल रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बीएचयू आलू के छिलकों से बायो-इथेनॉल उत्पादन की एक विधि विकसित कर रहा है। यह पहल भारत को कच्चे तेल के आयात पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद कर सकती है और कृषि अपशिष्ट का उपयोग करने का एक टिकाऊ तरीका प्रदान कर सकती है।
वैज्ञानिक कुफरी नीलकंठ जैसी नई आलू किस्मों पर भी काम कर रहे हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हैं। इन किस्मों का विकास न केवल पोषण मूल्य बढ़ाएगा बल्कि उपभोक्ताओं के लिए स्वस्थ विकल्प भी प्रदान करेगा।
सीआईपी के वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत 2050 तक दुनिया का शीर्ष आलू उत्पादक बन जाएगा, जो संभावित रूप से चीन को पीछे छोड़ देगा। देश का वार्षिक उत्पादन 100 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है, जो भारत की खाद्य सुरक्षा और कृषि निर्यात क्षमता के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।
निर्यात और चुनौतियां
भारत से आलू के निर्यात में भी वृद्धि देखी जा रही है। अमूल जर्मनी को निर्यात करने के लिए प्रयागराज में आलू के बीज तैयार कर रहा है, जो भारतीय कृषि उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग को दर्शाता है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश ने पहली बार गुयाना को आलू निर्यात किया है, जिससे नए अंतरराष्ट्रीय बाजार खुल रहे हैं।
हालांकि, आलू उद्योग को भंडारण, परिवहन और संभावित कीट और रोग प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि आलू का वैश्विक स्तर पर तेजी से व्यापार हो रहा है। नुकसान को कम करने और निरंतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आलू के भंडारण में सुधार पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल सके और उपभोक्ता तक अच्छी गुणवत्ता वाले आलू पहुंच सकें। यह केंद्र इन चुनौतियों का समाधान खोजने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।