शोभना समर्थ जयंती विशेष: जब साहस, सुंदरता और अदाकारी ने मिलकर रचा इतिहास
जब भारतीय समाज में महिलाओं को घर की चौखट से बाहर निकलने की भी आज़ादी नहीं थी, उस दौर में एक महिला ने साहस, सुंदरता और प्रतिभा से सिनेमा की दुनिया में अपनी पहचान बनाई।
वह थीं — शोभना समर्थ, भारतीय सिनेमा की अग्रणी अभिनेत्री, निर्देशक और निर्माता, जिनकी अदाकारी ने 1930 के दशक में ही एक नई मिसाल कायम की।
आज उनकी 109वीं जयंती है। शोभना समर्थ सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि भारतीय सिनेमा में महिलाओं के सम्मान और स्वतंत्र पहचान की प्रतीक बन गईं।
शुरुआती जीवन: कठिनाइयों से बनी मिसाल
17 नवंबर 1916 को बॉम्बे (ब्रिटिश भारत) में जन्मी शोभना समर्थ का असली नाम सरोज शिलोत्री था।
उनकी मां रतनबाई शिलोत्री मराठी सिनेमा में गायिका और अभिनेत्री थीं, जबकि पिता प्रभाकर शिलोत्री बैंक में कार्यरत थे।
पिता की मृत्यु के बाद शोभना का जीवन संघर्षमय हो गया। वे अपनी मां के साथ बॉम्बे में अपने मामा के घर रहने लगीं। वहीं कॉन्वेंट स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए फिल्मों में आने का फैसला लिया।
उस समय महिलाओं का फिल्मों में आना समाज में अच्छा नहीं माना जाता था। मंच या फिल्मों में महिला पात्रों का किरदार अक्सर पुरुष निभाते थे, या फिर समाज के किनारे पर खड़ी महिलाएं यह काम करती थीं। लेकिन शोभना समर्थ ने इन धारणाओं को तोड़ने का साहस दिखाया।
फिल्मी सफर की शुरुआत
1935 में शोभना समर्थ ने अपनी पहली फिल्म ‘निगाह-ए-नफरत’ से सिनेमा में कदम रखा। यह फिल्म उर्दू और मराठी में बनी थी और बाद में हिंदी में भी रिलीज़ हुई। भले ही यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन शोभना अपनी प्रतिभा और व्यक्तित्व के कारण चर्चा में आ गईं।
इसके बाद उन्होंने लगातार कई फिल्मों में काम किया —
- ‘दो दीवाने’ (1936)
- ‘कोकिला’ (1937)
- ‘निराला हिंदुस्तान’ (1938)
- ‘पति पत्नी’ (1939)
लेकिन असली पहचान उन्हें 1943 में आई सुपरहिट फिल्म ‘राम राज्य’ से मिली, जिसमें उन्होंने मां सीता की भूमिका निभाई। इस फिल्म ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई और दर्शकों ने उन्हें साक्षात सीता के रूप में पूजना शुरू कर दिया।
समाज और सिनेमा में बदलाव की प्रतीक
शोभना समर्थ ने उस दौर में सिनेमा को चुना जब यह पेशा महिलाओं के लिए “वर्जित” माना जाता था। उन्होंने साबित किया कि कला और अभिनय किसी लिंग की सीमाओं में बंधे नहीं हैं।
उनका स्क्रीन प्रेज़ेंस, संवाद अदायगी और सौम्यता उन्हें अन्य अभिनेत्रियों से अलग बनाते थे। वे सशक्त महिला किरदारों का चेहरा बनीं, जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास दिलाया कि महिला कलाकार भी सिनेमा का केंद्र हो सकती हैं।
पारिवारिक जीवन और अभिनय की विरासत
शोभना समर्थ ने फिल्म निर्देशक कुमारसेन समर्थ से शादी की। इस जोड़ी ने न केवल पेशेवर बल्कि निजी जीवन में भी एक मजबूत साझेदारी बनाई। उनके चार बच्चे हुए —
नूतन, तनुजा, चतुरा और जयदीप।
उनकी बेटियाँ नूतन और तनुजा ने 1950 से 1980 के दशक तक हिंदी सिनेमा में जबरदस्त सफलता हासिल की।
नूतन को भारतीय सिनेमा की सबसे संवेदनशील अभिनेत्रियों में गिना जाता है, जबकि तनुजा की जीवंत और चुलबुली अदाकारी ने उन्हें दर्शकों की चहेती बना दिया।
उनकी अगली पीढ़ी में काजोल ने इस विरासत को आगे बढ़ाया और 1990 के दशक में हिंदी फिल्मों की टॉप एक्ट्रेस बनीं।
इस तरह शोभना समर्थ का योगदान सिर्फ उनके दौर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि तीन पीढ़ियों तक भारतीय सिनेमा में गूंजता रहा।
शोभना समर्थ बतौर निर्देशक और निर्माता
अभिनय के साथ-साथ शोभना ने निर्देशन और निर्माण में भी हाथ आजमाया। उन्होंने कई मराठी और हिंदी फिल्मों का निर्माण किया।
उनकी समझ और सशक्त दृष्टिकोण ने सिनेमा में महिला निर्देशकों की राह आसान की।
विरासत और सम्मान
शोभना समर्थ को भारतीय सिनेमा की उन अग्रणी महिलाओं में गिना जाता है जिन्होंने परंपराओं को तोड़कर नए रास्ते बनाए।
उनकी भूमिका सिर्फ एक अभिनेत्री की नहीं थी—वे एक ऐसी स्तंभ थीं, जिनकी बदौलत आने वाली पीढ़ियों की अभिनेत्रियों को अपने सपनों को जीने की आज़ादी मिली।
शोभना समर्थ की कहानी सिर्फ सिनेमा की नहीं, बल्कि उस साहस की दास्तान है जो समाज के बंधनों को चुनौती देती है। उन्होंने अपनी कला, सौंदर्य और दृढ़ता से वह मुकाम पाया, जो आज भी प्रेरणा देता है।
Hindi.TheTrendingPeople.com की राय में:
शोभना समर्थ भारतीय सिनेमा की वह हस्ती हैं जिन्होंने दिखाया कि असली नारी शक्ति वही है जो समाज की दीवारों को तोड़कर अपनी पहचान खुद बनाती है।
उनकी विरासत आज भी हिंदी सिनेमा में ज़िंदा है — हर उस महिला कलाकार में, जो अपने सपनों की उड़ान भर रही है।