टियर 2 और टियर 3 शहरों में 2030 तक 5 गुना बढ़ेगी डेटा सेंटर की क्षमता
13 अगस्त, नई दिल्ली। भारत की डिजिटल क्रांति अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं रही है। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश के टियर 2 और टियर 3 शहरों में वर्तमान में डेटा सेंटर की क्षमता केवल 82 मेगावाट है, जो कुल क्षमता का सिर्फ 6 प्रतिशत है। लेकिन, आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा तेजी से बदलने वाला है। 2030 तक, यह संख्या करीब पाँच गुना बढ़कर 300-400 मेगावाट तक पहुँचने की उम्मीद है। यह वृद्धि दर्शाती है कि भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का भविष्य अब छोटे शहरों में भी निहित है।
देश की बदलती डिजिटल तस्वीर
जहाँ बेंगलुरु, दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर लंबे समय से देश की डेटा अर्थव्यवस्था के प्रमुख केंद्र रहे हैं, वहीं अब टियर 2 और टियर 3 शहर भी इस डिजिटल क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोच्चि, मोहाली, जयपुर और इंदौर जैसे शहर तेजी से एज कंप्यूटिंग, डेटा सेंटर और इनोवेशन के नए केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं। इस बदलाव के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
- प्रोत्साहनकारी सरकारी नीतियाँ: सरकार के अनुकूल नियम इन शहरों में निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं।
- व्यापार का विकेंद्रीकरण: व्यवसाय अब बड़े शहरों की भीड़ से हटकर छोटे शहरों में अपना विस्तार कर रहे हैं।
- स्थानीय डेटा प्रोसेसिंग की बढ़ती जरूरत: उपभोक्ताओं के करीब डेटा सेंटर होने से प्रोसेसिंग तेज और अधिक कुशल हो जाती है।
छोटे शहरों के फायदे और चुनौतियाँ
टियर 2 और टियर 3 शहरों के अपने विशिष्ट लाभ हैं। यहाँ का व्यावसायिक माहौल अपेक्षाकृत आसान है, परिचालन लागत कम है, और यह उपयोगकर्ताओं के अधिक करीब हैं। लेकिन, इन शहरों में डेटा सेंटरों को सफल बनाने के लिए मजबूत और अनुकूलनीय इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है। जगह की कमी, शीतलन की जटिल आवश्यकताएं और स्थानीय संसाधनों की अनुपलब्धता कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
इन चुनौतियों को पार करने के लिए मॉड्यूलर, प्री-इंजीनियर्ड डेटा सेंटर सॉल्यूशंस अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। इसके अलावा, लिक्विड कूलिंग और एआई-ऑप्टिमाइज्ड एयरफ्लो जैसी उभरती हुई तकनीकें एज साइट्स पर भी उच्च-घनत्व कंप्यूटिंग को संभव बना रही हैं, जिससे दक्षता से समझौता किए बिना काम किया जा सकता है।
भारत के डिजिटल भविष्य का रोडमैप
भारत की डेटा ग्रोथ की कहानी अब सिर्फ उसके सबसे बड़े शहरों तक सीमित नहीं है। यह उन क्षेत्रीय केंद्रों में पनप रही है जो देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर रहे हैं, नए बाजार खोल रहे हैं और डिजिटल खाई को पाट रहे हैं। जैसे-जैसे ये छोटे शहर डिजिटल अग्रिम पंक्ति में शामिल हो रहे हैं, दक्षता, लचीलापन और स्थिरता उनके लिए सर्वोच्च प्राथमिकता बन रही हैं। यह बदलाव भारत के डिजिटल भविष्य को एक नया आयाम दे रहा है, और 2030 तक देश की कुल डेटा सेंटर क्षमता 4,500 मेगावाट से अधिक होने का अनुमान है।