कांग्रेस का दावा—पुणे कोर्ट में दायर अर्जी राहुल गांधी की मंजूरी बिना दाखिल, मानहानि मामले में चल रही सुनवाई से जुड़ा विवाद
नई दिल्ली: कांग्रेस ने बुधवार को स्पष्ट किया कि राहुल गांधी के वकील ने पुणे की एक अदालत में मानहानि मामले की सुनवाई के दौरान बिना उनकी सहमति के ‘जान को खतरा’ का दावा करते हुए अर्जी दाखिल की थी। पार्टी ने बताया कि यह बयान वकील कल औपचारिक रूप से वापस लेंगे।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि यह अर्जी राहुल गांधी से चर्चा किए बिना दायर की गई थी। राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि राहुल गांधी की अर्जी से उन्हें गहरी असहमति है और इसे अदालत से वापस लेने का निर्णय लिया गया है।
पृष्ठभूमि—सावरकर मानहानि केस
राहुल गांधी के खिलाफ पुणे की अदालत में सावरकर से जुड़े मानहानि मामले की सुनवाई चल रही है। यह मामला मार्च 2023 में सावरकर के भतीजे अशोक सावरकर के बेटे सात्यकी सावरकर द्वारा दायर किया गया था, जिसमें लंदन में राहुल गांधी के दिए गए भाषण को आधार बनाया गया है।
वकील का बयान
राहुल गांधी के वकील मिलिंद पवार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा, “13 अगस्त को दायर अर्जी मेरे मुवक्किल की जानकारी और सहमति के बिना दाखिल की गई। राहुल गांधी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसकी विषय-वस्तु से असहमति जताई है। कल इसे कोर्ट से वापस लेने के लिए औपचारिक आवेदन किया जाएगा।”
अर्जी में किए गए दावे
इस अर्जी में दावा किया गया था कि राहुल गांधी को सावरकर की विचारधारा मानने वालों से गंभीर खतरा है। इसमें भाजपा नेता रवनीत सिंह बिट्टू के ‘आतंकवादी’ वाले बयान और भाजपा नेता तरविंदर मारवाह द्वारा दी गई कथित धमकी का हवाला दिया गया था। साथ ही शिकायतकर्ता सत्यकी सावरकर के गोडसे परिवार से रिश्ते का भी उल्लेख किया गया था।
अर्जी में आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता के पारिवारिक इतिहास और मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए राहुल गांधी को नुकसान पहुंचाने या गलत तरीके से फंसाने की आशंका है। आवेदन में यह भी कहा गया कि हिंदुत्व समर्थक समूहों ने अतीत में जाति और धर्म के आधार पर वैमनस्य फैलाया और राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए असंवैधानिक तरीके अपनाए।
Final Thoughts (अंतिम विचार):
यह घटना न्यायिक प्रक्रिया में सहमति और संवाद की अहमियत को रेखांकित करती है। एक वरिष्ठ नेता के रूप में राहुल गांधी के मामले में पेश होने वाली हर दलील उनकी मंजूरी से ही होनी चाहिए। यह विवाद न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि राजनीतिक माहौल में भी इसका असर देखने को मिल सकता है। आने वाले दिनों में इस केस के कानूनी और राजनीतिक दोनों पहलुओं पर नजर रखना जरूरी होगा।