सूर्य मंदिर और ज्योतिष में सूर्य का महत्व: इन प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन से दूर होते हैं अशुभ प्रभाव
नई दिल्ली, [वर्तमान दिनांक] – ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों में सूर्य को राजा की पदवी प्रदान की गई है। माना जाता है कि जिसकी कुंडली में सूर्य की स्थिति शुभ हो, वह व्यक्ति नेतृत्व करने की क्षमता रखता है और जीवन में मान-सम्मान व सफलता प्राप्त करता है। ज्योतिष के अनुसार, सूर्य आत्मा और पिता का प्रतिनिधित्व करता है, जो जीवन में आत्मबल और पितृ सुख को दर्शाता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, सूर्य को देवता होने के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण ग्रह भी माना गया है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, हिंदू धर्म में पंच देवता हैं, जिनमें गणेश जी, शिव जी, विष्णु जी, मां दुर्गा के साथ-साथ सूर्यदेव भी शामिल हैं। ऐसे में, सूर्य ग्रह को ज्योतिष में एक विशेष और अत्यंत पूजनीय स्थान प्राप्त है।
सूर्य को आयु, रूप, आरोग्य (स्वास्थ्य) और ऐश्वर्य (समृद्धि) देने वाला माना गया है। इसके साथ ही, यह व्यक्ति के व्यक्तित्व, अधिकार, सामान्य स्वास्थ्य, सरकारी नौकरी, राजनीतिक पद और सामाजिक प्रतिष्ठा का भी प्रतीक है। ऐसे में, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ या कमजोर स्थिति में हो, तो उसे मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की हानि का दंश झेलना पड़ता है। इसके साथ ही, ऐसे जातक के जीवन में ऊर्जा का भी अभाव साफ दिखता है, और उनके चेहरे से तेज (चमक) गायब होती है।
यदि कुंडली में सूर्य अशुभ या खराब स्थिति में हो, तो व्यक्ति को स्वास्थ्य समस्याएं, विशेषकर आंखों से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। इसके अलावा, नौकरी में बाधाएं, आत्मविश्वास में कमी आने के साथ-साथ भाग्य के क्षेत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार, सूर्य देव आरोग्य के देवता हैं। यदि कोई भक्त किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, तो वह भगवान सूर्य के दर्शन कर अपने अच्छे स्वास्थ्य की मन्नत मांग सकता है। साथ ही, ऐसी मान्यता है कि भगवान सूर्य देव भक्तों के सभी पाप भी हर लेते हैं और उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
ऐसे में, भारत में कई प्राचीन और प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मौजूद हैं, जहां जाकर दर्शन करने से जातक की कुंडली में सूर्य के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही, स्वास्थ्य, आय और धन की प्राप्ति के मार्ग भी खुल सकते हैं।
भारत के कुछ प्रमुख सूर्य मंदिर:
कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा: जगन्नाथ पुरी स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भारत का सबसे प्राचीन और सुप्रसिद्ध सूर्य मंदिर है, जो अपनी खूबसूरती और भारत की अद्भुत शिल्पकला के लिए विश्व विख्यात है। ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान के साक्षात दर्शन होते हैं। यह मंदिर अब एक ऐतिहासिक धरोहर बन गया है और यहां सक्रिय पूजा 16वीं शताब्दी के बाद से बंद हो गई।
मोढेरा सूर्य मंदिर, गुजरात: गुजरात के मेहसाणा जिले में पुष्पावती नदी के किनारे मोढेरा में एक भव्य सूर्य मंदिर स्थित है। मंदिर परिसर तीन भाग में बंटा है – गुधा मंडप (गर्भगृह), सभा मंडप (assembly hall) और कुंड (सूर्य कुंड)। इसका सभा मंडप 52 खंभों पर खड़ा हुआ है, जो साल के 52 हफ्तों को दर्शाता है। इसकी दीवारों पर पंच तत्वों को देखा जा सकता है, वहीं, अलग-अलग हिस्सों पर सूर्य की कई सुंदर आकृतियां देखी जा सकती हैं। अब यहां भी पूजा की अनुमति नहीं है।
मार्तंड सूर्य मंदिर, कश्मीर: मार्तंड सूर्य मंदिर कश्मीर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि 8वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण कर्कोटा वंश के महान राजा ललितादित्य मुक्तापिदा ने करवाया था। यह कश्मीरी वास्तुशिल्प कौशल का एक जीता-जागता उदाहरण है। हालांकि, दुख की बात है कि इसे 15वीं शताब्दी में शासक सिकंदर बुतशिकन ने नष्ट कर दिया था, लेकिन इसके अवशेष आज भी इसकी भव्यता की कहानी कहते हैं।
देवार्क सूर्य मंदिर, औरंगाबाद, बिहार: देश के 12 सूर्य मंदिरों में से नौ अकेले बिहार में हैं, और इनमें से औरंगाबाद का देवार्क मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि इसका दरवाजा पूरब की ओर नहीं होकर पश्चिम की ओर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर को सिर्फ एक रात में विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया था। ऐसी मान्यता है कि इस जगह का नाम यहां के राजा रहे वृषपर्वा के पुरोहित शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के नाम पर 'देव' पड़ा था।
अरसावल्ली सूर्य मंदिर, आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश के अरसावल्ली गांव से करीब 1 किमी पूर्व दिशा में भगवान सूर्य का लगभग 1300 साल पुराना भव्य मंदिर है। यहां पर भगवान सूर्य नारायण को उनकी पत्नियों उषा और छाया के साथ पूजा जाता है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां साल में दो बार (मार्च और अक्टूबर में) सीधे मूर्ति पर सूर्य की पहली किरण पड़ती है, जो एक अद्भुत खगोलीय घटना है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान सूर्यदेव के दर्शन मात्र से सुख और सौभाग्य मिलता है।
बेलाउर सूर्य मंदिर, भोजपुर, बिहार: बिहार के भोजपुर जिले के बेलाउर गांव के पश्चिमी एवं दक्षिणी छोर पर स्थित बेलाउर सूर्य मंदिर काफी पुराना है। इसे राजा द्वारा बनवाए 52 पोखरों में से एक पोखर के बीच में यह सूर्य मंदिर बना हुआ है, जो इसकी सुंदरता को और बढ़ाता है।
दक्षिणायन सूर्य मंदिर, गया, बिहार: बिहार के गया स्थित दक्षिणायन सूर्य मंदिर की प्रतिमा सतयुग काल की मानी जाती है। यहां भगवान सूर्य के साथ शनि और यम भी विराजमान हैं, जो इसे एक अनूठा और शक्तिशाली पूजा स्थल बनाता है। यहां भगवान सूर्य की प्रतिमा काले पत्थर की है। मान्यता है कि प्रतिमा की स्थापना गयासुर द्वारा की गई है। इसकी स्थापना के बारे में सूर्य पुराण और वायु पुराण में भी वर्णन मिलता है।
झालरापाटन सूर्य मंदिर, झालावाड़, राजस्थान: राजस्थान के झालावाड़ का दूसरा जुड़वा शहर झालरापाटन को 'सिटी ऑफ वेल्स' यानी घाटियों का शहर भी कहा जाता है, जहां शहर के बीचों-बीच एक प्राचीन सूर्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान है, जो इस मंदिर की विशिष्टता को दर्शाता है।
उनाव-बालाजी सूर्य मंदिर, दतिया, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित उनाव-बालाजी सूर्य मंदिर एक अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है, जहां निचली जाति के पुरुष ही पंडिताई का काम करते हैं। इस मंदिर के पास पहुज नदी है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति उसमें डुबकी लगा ले, उसका हर तरह का त्वचा रोग सही हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महान राजा मारूछ ने कई हजार साल पहले करवाया था।
सूर्यनार कोविल, कुंभकोणम, तमिलनाडु:
तमिलनाडु में कुंभकोणम के पास सूर्यनार कोविल भारत के कुछ ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है जो विशेष रूप से सूर्य भगवान को समर्पित है। सूर्यनार कोविल तमिलनाडु का एकमात्र मंदिर है जिसमें सभी नवग्रह (ग्रह देवताओं) के लिए अलग-अलग मंदिर हैं, जिससे यह नवग्रह पूजा के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन जाता है। पौराणिक कथाओं में भी इसका जिक्र है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से सूर्य के दोष से उत्पन्न सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश:
उत्तर प्रदेश की संगम नगरी प्रयागराज में अरैल स्थित शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर सूर्य देव से संबंधित है। शिवपुराण और स्कंद पुराण में इस मंदिर का वर्णन 'शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर' के नाम से किया गया है। खास बात यह है कि यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहां पर भगवान शिव की पूजा करने से भगवान शिव के साथ ही सूर्यदेव भी प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। कहते हैं कि सूर्यदेव ने ही परमपिता ब्रह्मा के आदेश पर जनकल्याण के लिए संगम के नजदीक अक्षयवट के ठीक सामने एक शिवलिंग को स्थापित किया था।
कटारमल सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा, उत्तराखंड:
देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार गांव में भगवान सूर्यदेव का भव्य कटारमल सूर्य मंदिर स्थित है। मान्यता है कि भगवान सूर्यदेव कटारमल मंदिर में साक्षात विराजते हैं। कटारमल सूर्य मंदिर की सबसे मुख्य खासियत भगवान सूर्य की मूर्ति के बड़ के पेड़ की लकड़ी का होना है। इसी कारण इस सूर्य मंदिर को ''बड़ आदित्य मंदिर'' भी कहा जाता है, जो इसे अन्य सूर्य मंदिरों से अलग पहचान दिलाता है।
इन मंदिरों में दर्शन और पूजा-अर्चना करने से न केवल सूर्य ग्रह के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य, आय और धन की प्राप्ति के मार्ग भी खुल सकते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है।