Citylights की 11वीं वर्षगांठ: हंसल मेहता बोले – "ये फिल्म एक घाव की तरह बनी थी, न कि पोस्टकार्ड की तरह"
फिल्ममेकर हंसल मेहता ने अपनी 2014 की फिल्म "सिटीलाइट्स" को लेकर भावुक अंदाज़ में यादें साझा कीं। उन्होंने कहा कि यह फिल्म उनके लिए बेहद निजी और जज़्बातों से भरा हुआ प्रोजेक्ट था, जिसे बहुत प्यार और संघर्ष से बनाया गया था। भले ही यह स्टूडियो द्वारा बदली गई हो, लेकिन इसकी गूंज आज भी महसूस होती है।
शुक्रवार को जब सिटीलाइट्स ने हिंदी सिनेमा में अपने 11 साल पूरे किए, तब हंसल मेहता ने इंस्टाग्राम पर फिल्म की कुछ यादगार तस्वीरें साझा करते हुए एक लंबा पोस्ट लिखा।
"ये फिल्म हमारी बन गई थी"
उन्होंने लिखा,
“11 साल पहले... ये एक रीमेक के तौर पर शुरू हुई थी। मैंने Metro Manila कभी नहीं देखी, आज भी नहीं देखी है। सुना है वो एक बेहतर फिल्म है – और शायद है भी। लेकिन Citylights हमारी बन गई। रितेश शाह की स्क्रीनप्ले ने नींव रखी, और हमने उस पर सच्चाइयों का अपना घर खड़ा किया। ये परफेक्ट नहीं थी – लेकिन ये पर्सनल थी।”
"हमने दुआओं के सहारे शूट किया"
हंसल ने बताया कि फिल्म को सिर्फ 25 लोगों की टीम के साथ शूट किया गया था।
“हमने दुआओं के सहारे शूटिंग की। टीम सिर्फ 25 लोगों की थी – लेकिन जज़्बा 250 लोगों जैसा था। ट्रेनें सिर्फ प्रतीक नहीं थीं – वे हमारी लोकेशन थीं। हमने भीड़-भाड़ वाले प्लेटफॉर्म्स पर, चलती ट्रेनों में, एक ऐसे शहर के बीच में शूट किया, जो उतना ही बेरहम था, जितना करीबी।”
"हर सीन लाइव, हर फ्रेम उधार की रौशनी में"
“हर सीन सिंक साउंड में शूट हुआ। हर फ्रेम उधार की रौशनी में था – कुछ ट्यूबलाइट्स, एक पोर्टेबल जेनरेटर, और एक कहानी कहने का हौसला। देव अग्रवाल ने इस शहर को किसी पोस्टकार्ड की तरह नहीं, बल्कि एक घाव की तरह फिल्माया – कच्चा, झिलमिलाता, ज़िंदा।”
उन्होंने संपादक अपूर्व असरानी, कास्टिंग डायरेक्टर विनराव, बेटे जय मेहता और ध्वनि टीम का भी शुक्रिया अदा किया,
“@vinraw – मेरा कास्टिंग डायरेक्टर, मेरा एसोसिएट, मेरा भाई। @jaihmehta – उस वक़्त मेरा चीफ़ असिस्टेंट, हर मुश्किल में मेरे साथ रहा। मंदार कुलकर्णी ने इस बात का ध्यान रखा कि कोई भी सीन डब न हो – ये अपने आप में एक कमाल है।”
"हमारा वर्जन नहीं रिलीज़ हुआ"
हंसल ने एक बेहद अहम बात शेयर की कि फिल्म का डायरेक्टर कट रिलीज़ नहीं हुआ था।
“हमने एक डायरेक्टर कट बनाया – नाज़ुक, अनपॉलिश्ड, दिल से जुड़ा हुआ। लेकिन स्टूडियो ने उसे रिलीज़ नहीं किया। हमें एक दूसरा कट बनाना पड़ा – ज़्यादा ‘सेफ’, ज़्यादा ‘पचने लायक’। ये कट असुरक्षा से पैदा हुआ था। वही वर्जन पास हुआ। उस समझौते का घाव अब भी मेरे साथ है। और फिर भी – जो बचा, वो अब भी कायम है।”
"राजकुमार राव और पत्रलेखा का अब तक का सबसे मजबूत अभिनय"
हंसल मेहता ने फिल्म की मुख्य कलाकारों की जमकर तारीफ़ की,
“@rajkummar_rao का परफॉर्मेंस – जो अब तक का उनका सबसे अदृश्य लेकिन सबसे ताकतवर अभिनय है। @patralekhaa – राखी के किरदार में – इतनी स्थिर, इतनी तोड़ देने वाली, अब भी याद आती है। और @manavkaul – जिन्होंने सिर्फ एंट्री नहीं मारी, बल्कि तूफ़ान की तरह आए।”
"सिटीलाइट्स उन लोगों की कहानी थी, जिन्हें शहर भुला देता है"
“Citylights उन लोगों की कहानी थी जिन्हें ये शहर भूल जाता है – प्रवासी, अदृश्य, वे लोग जो शहर की ऊंची इमारतें बनाते हैं लेकिन उन्हीं की फूटपाथ पर सोते हैं। ये कहानी आज भी उतनी ही सच्ची है, उतनी ही तकलीफदेह, और उतनी ही ज़रूरी। कुछ फिल्में आपकी ज़िंदगी में दाखिल होती हैं – लेकिन Citylights कभी गई ही नहीं।”
फिल्म के बारे में
सिटीलाइट्स का निर्देशन हंसल मेहता ने किया था और इसे फॉक्स स्टार स्टूडियोज ने महेश भट्ट और मुकेश भट्ट के सहयोग से प्रस्तुत किया था। यह फिल्म 2013 की ब्रिटिश फिल्म Metro Manila की आधिकारिक रीमेक थी, जिसे बाफ्टा नॉमिनेशन भी मिला था।
फिल्म की कहानी एक गरीब पूर्व सैनिक दीपक सिंह की है, जो राजस्थान से मुंबई अपने परिवार के साथ एक बेहतर जीवन की तलाश में आता है। लेकिन उसे जल्द ही पता चलता है कि यह शहर उतना आसान नहीं है जितना लगता है।