झारखंड की महिला ADJ की छुट्टी की अर्जी खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से मांगा जवाब
नई दिल्ली, 29 मई 2025 — सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट से यह स्पष्ट करने को कहा है कि आखिर क्यों राज्य की एक महिला एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज (ADJ) कशिका एम. प्रसाद की चाइल्ड केयर लीव (बच्चे की देखभाल के लिए अवकाश) की अर्जी खारिज की गई। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में झारखंड हाईकोर्ट को एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने गुरुवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया। कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट को ईमेल के जरिए भी इस आदेश की सूचना देने को कहा और कहा, “सभी पक्षों को सूचित किया जाता है कि हम अगली तारीख पर इस मामले का अंतिम निपटारा करेंगे।”
सिंगल पैरेंट हैं ADJ कशिका, रिकॉर्ड भी ‘उत्कृष्ट’
ADJ कशिका एम. प्रसाद की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि वह सिंगल पैरेंट हैं और उनका सेवा रिकॉर्ड बेहतरीन रहा है। अधिवक्ता ने कहा कि उनका वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) भी उत्कृष्ट है। उन्होंने छह महीने की चाइल्ड केयर लीव मांगी थी, जबकि हाईकोर्ट की नीति के अनुसार, 730 दिनों तक की चाइल्ड केयर लीव अनुमन्य है।
हाईकोर्ट नहीं गया मामला, सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों?
इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि छुट्टी के इनकार के खिलाफ याचिकाकर्ता ने पहले हाईकोर्ट का रुख क्यों नहीं किया? इसके जवाब में अधिवक्ता ने कहा कि चूंकि यह मामला ‘अर्जेंट’ श्रेणी में नहीं आता, इसलिए हाईकोर्ट में यह सुनवाई के लिए ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद ही सूचीबद्ध होता। ऐसे में उन्हें त्वरित राहत की ज़रूरत थी और उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
ट्रांसफर के बाद आई पारिवारिक दिक्कतें
ADJ कशिका एम. प्रसाद हजारीबाग जिला अदालत में पदस्थ थीं और हाल ही में उनका तबादला हुआ है। अधिवक्ता के अनुसार, तबादले के बाद उनके लिए अपने बच्चे की देखभाल करना मुश्किल हो गया है। इसलिए उन्होंने 10 जून से दिसंबर तक की चाइल्ड केयर लीव के लिए आवेदन किया था। लेकिन यह अर्जी बिना कोई कारण बताए खारिज कर दी गई।
सुप्रीम कोर्ट ने माना मामला गंभीर
याचिका दाखिल करने के बाद कशिका एम. प्रसाद के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट से शीघ्र सुनवाई की अपील की थी, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने पूछा कि आखिर उनके अवकाश की अर्जी खारिज क्यों की गई? इस पर अधिवक्ता ने बताया कि हाईकोर्ट की ओर से कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।
अब अदालत इस मामले की अगली सुनवाई में अंतिम निपटारा करेगी। यह मामला महिला न्यायिक अधिकारियों के अधिकारों, सिंगल पैरेंट की चुनौती और न्यायिक संस्थाओं की पारदर्शिता जैसे अहम मुद्दों से जुड़ा हुआ है, जिस पर आने वाले दिनों में शीर्ष अदालत का रुख महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।