महाराष्ट्र में 'पवार प्ले' का नया अध्याय—चाचा-भतीजे के मिलन की पटकथा तैयार, पुणे से उठी चिंगारी ने मुंबई तक बढ़ाई धड़कनेंImage source: News18
मुंबई/पुणे, दिनांक: 22 दिसंबर 2025 — महाराष्ट्र की राजनीति, जो अपनी अप्रत्याशित करवटों के लिए जानी जाती है, एक बार फिर बड़े भूचाल के मुहाने पर खड़ी है। पुणे से लेकर मुंबई के सियासी गलियारों में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई है कि 'चाचा-भतीजे' यानी शरद पवार (Sharad Pawar) और अजित पवार (Ajit Pawar) फिर से एक होने जा रहे हैं। इसे केवल अफवाह नहीं माना जा सकता, क्योंकि एनसीपी (NCP) के दोनों गुटों के भीतर चल रही गतिविधियों और बयानों ने इस संभावना को हकीकत के करीब ला खड़ा किया है।
अगर यह सियासी मिलन होता है, तो यह न केवल आगामी नगर निगम चुनावों का गणित बदल देगा, बल्कि राज्य की महायुति (Mahayuti) सरकार के समीकरणों को भी तहस-नहस कर सकता है।
पुणे से बड़ा संकेत: "घोषणा बस बाकी है"
इस सियासी ड्रामे का केंद्र पुणे बना हुआ है। पुणे के पूर्व महापौर और एनसीपी नेता दत्ता धनकावड़े (Dutta Dhankawade) ने एक ऐसा बयान दिया है जिसने महायुति (भाजपा-शिंदे सेना-अजित गुट) की नींद उड़ा दी है।
धनकावड़े ने आत्मविश्वास के साथ दावा किया:
"दोनों एनसीपी गुट एक साथ आने वाले हैं। इस पर कोई असहमति नहीं है। दोनों गुटों के बीच गुप्त बैठकें और बातचीत पूरी हो चुकी है। अब सिर्फ आधिकारिक घोषणा बाकी है, जो किसी भी क्षण की जा सकती है।"
'घड़ी' का खेल: धनकावड़े ने सबसे अहम खुलासा यह किया कि शरद पवार गुट के उम्मीदवार अब 'घड़ी' (Clock) चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे। यह बयान इस बात का संकेत है कि पार्टी के सिंबल और नाम को लेकर चल रही लड़ाई शायद एक 'समझौते' पर खत्म हो रही है। साथ ही, कई पूर्व पार्षदों ने आज एनसीपी ज्वाइन कर ली है। वार्ड नंबर 38, जिसे एनसीपी का गढ़ माना जाता है, वहां से इस एकता की शुरुआत मानी जा रही है।
'सिल्वर ओक' पर मंथन और वो रहस्यमयी 'फोन कॉल'
पुणे में जहां बयानों के तीर चल रहे थे, वहीं मुंबई में शरद पवार के आवास 'सिल्वर ओक' (Silver Oak) पर हाई-प्रोफाइल बैठकों का दौर जारी था।
- बैठक में कौन? शरद पवार के साथ पार्टी के वरिष्ठ रणनीतिकार जयंत पाटिल, प्रदेश अध्यक्ष शशिकांत शिंदे और राजेश टोपे मौजूद थे। चर्चा का विषय स्पष्ट था—क्या आगामी नगर निगम और स्थानीय निकाय चुनावों में अजित पवार के गुट के साथ गठबंधन या विलय करना चाहिए?
अजित दादा का फोन: सूत्रों के मुताबिक, इसी बैठक के दौरान एक नाटकीय मोड़ तब आया जब अजित पवार ने खुद राजेश टोपे से फोन पर बात की। इस फोन कॉल ने यह साफ कर दिया कि पर्दे के पीछे खिचड़ी पक चुकी है और अब उसे परोसने की तैयारी है।
महायुति का क्या होगा? 3 संभावित परिदृश्य (Scenarios)
अगर पवार फैमिली एक होती है, तो इसका असर महाराष्ट्र की सत्ता पर क्या पड़ेगा? राजनीतिक विश्लेषक इसे तीन नजरिए से देख रहे हैं:
परिदृश्य 1: शरद पवार की 'महायुति' में एंट्री? यदि दोनों गुटों का विलय होता है और अजित पवार शिंदे-फडणवीस सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो इसका तकनीकी अर्थ यह होगा कि शरद पवार भी अप्रत्यक्ष रूप से महायुति के साथ आ जाएंगे।
भाजपा के लिए: यह भाजपा के लिए 'सोने पर सुहागा' जैसी स्थिति होगी। लोकसभा और विधानसभा में विपक्ष (MVA) पूरी तरह टूट जाएगा और महायुति अजेय हो जाएगी।
- परिदृश्य 2: अजित दादा की 'घर वापसी' और सरकार पर संकट दूसरा पहलू महायुति के लिए डरावना है। अगर अजित पवार, भाजपा और एकनाथ शिंदे का साथ छोड़कर अपने विधायकों के साथ वापस शरद पवार के खेमे (MVA) में लौटते हैं, तो सरकार पर भले ही तुरंत खतरा न आए (आंकड़ों के खेल में), लेकिन राजनीतिक धारणा (Perception) के स्तर पर यह महायुति के लिए बड़ा झटका होगा।
- परिदृश्य 3: 'पवार पावर' का कन्फ्यूजन गेम तीसरी और सबसे प्रबल संभावना यह है कि यह 'एकता' केवल नगर निगम और स्थानीय चुनावों तक सीमित रहे।
- रणनीति: पुणे जैसे अपने गढ़ को बचाने के लिए चाचा-भतीजा स्थानीय स्तर पर "हम एक हैं" का नारा देंगे, लेकिन राज्य स्तर पर अजित सरकार में बने रहेंगे।
असर: इससे महायुति में भ्रम की स्थिति पैदा होगी। भाजपा और शिंदे सेना को समझ नहीं आएगा कि पवार उनके दोस्त हैं या दुश्मन। अंततः सीटों के बंटवारे में पवार का संयुक्त गुट ज्यादा सीटों पर कब्जा कर लेगा और भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा।
क्या इतिहास खुद को दोहरा रहा है?
महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार को 'चाणक्य' माना जाता है। 2019 में सुबह की शपथ और फिर महाविकास अघाड़ी का गठन—यह सब पवार की स्क्रिप्ट का हिस्सा था। अब 2025 के अंत में, जब नगर निगम चुनाव सिर पर हैं, पवार एक बार फिर अपनी चाल चल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अजित पवार का अलग होना और अब वापस आने की चर्चा, सब कुछ एक बड़े 'पवार प्ले' का हिस्सा हो सकता है जिसका उद्देश्य पार्टी को टूटने से बचाना और सत्ता में हिस्सेदारी बनाए रखना है।
हमारी राय
राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है, न दुश्मन। शरद पवार और अजित पवार के बीच की यह संभावित 'री-यूनियन' (पुनर्मिलन) महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे बड़ा 'यू-टर्न' साबित हो सकती है।
The Trending People का मानना है कि यह घटनाक्रम भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। अगर पुणे मॉडल सफल होता है, तो यह राज्य भर में लागू होगा। 'घड़ी' चिन्ह पर शरद पवार गुट के लड़ने का दावा यह दर्शाता है कि वैचारिक मतभेद चाहे जो भी हों, 'पवार ब्रांड' को बचाने के लिए परिवार एक हो सकता है। फिलहाल, गेंद अजित पवार के पाले में है—क्या वे भाजपा के साथ सत्ता का सुख भोगेंगे या 'बारामती' की विरासत को बचाने के लिए घर वापसी करेंगे? जो भी हो, महाराष्ट्र की सियासत का पारा अपने चरम पर है।