अंतरिक्ष में 'बाहुबली' की दहाड़—ISRO ने रचा इतिहास, 6 टन वजनी 'मोबाइल टावर' को स्पेस में भेजा, अगले साल होंगे 3 बड़े धमाकेImage: PTI via News18
श्रीहरिकोटा/नई दिल्ली — भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने बुधवार की सुबह एक बार फिर दुनिया को अपनी ताकत का एहसास करा दिया। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जब भारत के सबसे शक्तिशाली रॉकेट LVM3-M6 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3) ने उड़ान भरी, तो पूरा देश गर्व से भर गया। इस 'बाहुबली' रॉकेट ने अमेरिकी कंपनी के ‘ब्लू बर्ड ब्लॉक-2’ सैटेलाइट को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा (Orbit) में स्थापित कर दिया।
यह मिशन इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि यह इसरो के इतिहास का अब तक का सबसे भारी पेलोड (6100 किलोग्राम) था, जिसे अंतरिक्ष में भेजा गया। इस शानदार कामयाबी के बाद इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) के निदेशक डॉ. वी. नारायणन ने News18 के साथ एक विशेष बातचीत में भविष्य के रोडमैप का खुलासा किया। उन्होंने साफ किया कि यह जीत सिर्फ एक शुरुआत है, असली 'पिक्चर' अभी बाकी है।
डॉ. नारायणन का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू: "यह रॉकेट हमारी 'मारुति' है"
लॉन्च की सफलता के बाद डॉ. वी. नारायणन के चेहरे पर संतोष और गर्व साफ देखा जा सकता था। उन्होंने LVM3 रॉकेट की विश्वसनीयता (Reliability) की तुलना भारत की सबसे भरोसेमंद कार 'मारुति' से की।
डॉ. नारायणन ने कहा:
"LVM3 रॉकेट हमारे लिए 'मारुति' जैसा भरोसेमंद है। यह वही रॉकेट है जिसने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 को उनकी मंजिल तक पहुँचाया था। आज इसने अपनी लगातार छठी सफल उड़ान (Successful Flight) भरी है।"
उनका कहना है कि जब कोई रॉकेट इतनी बार बिना किसी गलती के सफल होता है, तो उस पर भरोसा गहरा हो जाता है। यही कारण है कि भारत के सबसे महत्वाकांक्षी मानव मिशन 'गगनयान' (Gaganyaan) के लिए इसी रॉकेट को चुना गया है। आज की सफलता ने गगनयान के लिए रास्ता पूरी तरह साफ कर दिया है।
2026 का रोडमैप: गगनयान से पहले होगी 'अग्निपरीक्षा'
गगनयान मिशन को लेकर देश में भारी उत्साह है, लेकिन इसरो कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता। डॉ. नारायणन ने मिशन पर बड़ा अपडेट देते हुए कहा कि हम इंसानी जान के साथ कोई रिस्क नहीं ले सकते।
- तीन बड़े मिशन: उन्होंने बताया कि अगले साल (2026) हम 3 ‘अनक्रूड मिशन’ (मानवरहित) लॉन्च करने का टारगेट रख रहे हैं।
- सुरक्षा जांच: इन मिशनों में रॉकेट और क्रू मॉड्यूल (Crew Module) की सुरक्षा, एस्केप सिस्टम और री-एंट्री की बारीकी से जांच की जाएगी।
- 2027 का लक्ष्य: पीएम मोदी के विजन के तहत, जब ये तीनों टेस्ट शत-प्रतिशत सफल होंगे, तभी 2027 में भारतीय एस्ट्रोनॉट्स (व्योमनॉट्स) को स्पेस में भेजा जाएगा।
चंद्रयान-4 और 5 पर 'फास्ट ट्रैक' काम
चांद पर तिरंगा फहराने के बाद इसरो अब वहां से मिट्टी लाने और बेस बनाने की तैयारी में है। डॉ. नारायणन ने खुशखबरी दी कि सरकार ने चंद्रयान-4 और चंद्रयान-5 को मंजूरी दे दी है।
- खुली छूट: उन्होंने कहा, "इसरो में हम कहते हैं कि कड़ी मेहनत का इनाम और ज्यादा काम है। सरकार ने हमें आम आदमी के लिए परफॉर्म करने का मौका और खुली छूट दी है।"
- स्टेटस: इसरो की प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक दिन-रात इन फ्यूचर मिशनों की डिजाइनिंग और टेस्टिंग में जुटे हैं। अब काम 'फास्ट ट्रैक' मोड में चल रहा है।
स्पेस में पहुंचा 'उड़ता हुआ मोबाइल टावर'
आज सुबह 8:54 बजे लॉन्च किया गया 'ब्लू बर्ड ब्लॉक-2' कोई साधारण सैटेलाइट नहीं है। इसे स्पेस में तैरता हुआ 'स्मार्टफोन टावर' कहा जा रहा है।
- साइज: इसका आकार 223 वर्ग मीटर है, जो इसे स्पेस में अब तक का सबसे बड़ा कमर्शियल कम्युनिकेशन एरे (Array) बनाता है।
- क्रांतिकारी तकनीक: अमेरिकी कंपनी AST SpaceMobile का यह प्रोजेक्ट दुनिया भर के 6 अरब मोबाइल यूजर्स को कनेक्ट करेगा। इसकी खासियत यह है कि यह स्पेस से सीधे आपके सामान्य मोबाइल फोन पर 5G इंटरनेट देगा। इसके लिए आपको किसी डिश या एंटीना की जरूरत नहीं होगी।
- कनेक्टिविटी: अब पहाड़ों की चोटियों या समंदर के बीच भी नेटवर्क की दिक्कत नहीं होगी। इसरो ने इस मिशन को अपनी वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की डील के तहत पूरा किया है, जिससे देश को विदेशी मुद्रा की भी कमाई हुई है।
प्राइवेट सेक्टर: स्टार्ट-अप्स को इसरो का सहारा
डॉ. नारायणन ने स्पेस सेक्टर में आ रहे निजीकरण के बदलावों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि सरकार के रिफॉर्म्स के बाद अब भारतीय स्टार्ट-अप्स भी ऑर्बिटल रॉकेट बना रहे हैं। इसरो इन नई कंपनियों को प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि भागीदार मानता है और उनकी ‘हैंड-होल्डिंग’ कर रहा है। "जल्द ही हम देखेंगे कि प्राइवेट कंपनियां अपने रॉकेट से सैटेलाइट्स लॉन्च कर रही हैं। यह 'विकसित भारत 2047' बनाने की दिशा में बड़ा कदम है," उन्होंने जोड़ा।
हमारी राय
इसरो की यह सफलता केवल विज्ञान की जीत नहीं, बल्कि 'आत्मनिर्भर भारत' की बुलंद तस्वीर है। एक तरफ हम दुनिया के सबसे भारी कमर्शियल सैटेलाइट्स लॉन्च कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ चंद्रयान और गगनयान जैसे जटिल मिशनों की तैयारी कर रहे हैं। LVM3 को 'मारुति' कहना इसरो के आत्मविश्वास को दर्शाता है।
The Trending People का मानना है कि स्पेस सेक्टर में भारत अब 'फॉलोअर' नहीं, बल्कि 'लीडर' बनने की राह पर है। डायरेक्ट-टू-मोबाइल सैटेलाइट कनेक्टिविटी संचार क्रांति का अगला चरण है और इसमें इसरो की भूमिका गर्व करने लायक है। निजी क्षेत्र को साथ लेकर चलने की इसरो की नीति आने वाले समय में भारत को वैश्विक स्पेस इकोनॉमी का धुरी बनाएगी। 2026 का साल भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने वाला है।