आजादी के दिन रिलीज हुई 'शहनाई' और 'संडे के संडे' की कहानी
13 अगस्त, मुंबई। 15 अगस्त, 1947, भारत के इतिहास का वह दिन, जब पूरे देश में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। इसी ऐतिहासिक दिन पर हिंदी सिनेमा को एक नई दिशा देने वाली फिल्म 'शहनाई' रिलीज हुई। यह फिल्म मनोरंजन की दुनिया में एक बड़ी हिट साबित हुई। इस फिल्म की सफलता का एक बड़ा श्रेय इसके संगीत निर्देशक सी. रामचंद्र को जाता है, जिन्होंने अपने अनूठे अंदाज से फिल्म को यादगार बना दिया।
विवादित मगर यादगार गाना: 'आना मेरी जान संडे के संडे'
'शहनाई' फिल्म का सबसे चर्चित और हिट गाना 'आना मेरी जान संडे के संडे' था। इस गाने को शमशाद बेगम और सी. रामचंद्र ने अपनी आवाज दी थी। गाने में पश्चिमी संगीत का इस्तेमाल किया गया था, जो उस समय के लिए बिल्कुल नया था। देश के विभाजन की त्रासदी के दौर में यह गीत युवाओं और आम लोगों के लिए खुशी और राहत का एक जरिया बना।
लेकिन, जितनी लोकप्रियता इस गाने को मिली, उतना ही यह विवादों में भी रहा। कुछ लोगों ने इसे 'तुच्छ' और 'अश्लील' करार दिया। एक प्रसिद्ध फिल्म पत्रिका 'फिल्म इंडिया' में एक पाठक ने पत्र लिखकर इस गाने की आलोचना की थी, जिसमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या आजादी के साथ मिली अभिव्यक्ति की आजादी सामाजिक मूल्यों को प्रभावित कर रही है?
समय के साथ बदलती सोच और विज्ञापन में वापसी
समय के साथ लोगों की सोच बदली और वही गाना जो एक समय विवादित था, 1990 के दशक की शुरुआत में टीवी विज्ञापनों का हिस्सा बन गया। नेशनल एग कोआर्डिनेशन कमेटी (एनईसीसी) ने अंडों की खपत बढ़ाने के लिए इसी धुन पर आधारित एक विज्ञापन जिंगल बनाया, "खाना मेरी जान, मेरी जान मुर्गी के अंडे।" यह जिंगल इतना लोकप्रिय हुआ कि हर उम्र के लोग इसे गुनगुनाने लगे और यह उस दौर के सबसे चर्चित विज्ञापनों में शामिल हो गया।
इस गाने की कहानी यह बताती है कि कैसे संगीत, समय और सामाजिक सोच के साथ बदलता है। एक विवादित गीत का विज्ञापन जिंगल बनकर हर घर तक पहुंचना भारतीय संगीत और संस्कृति की एक दिलचस्प कहानी है।