जनगणना 2027: क्या यह आंकड़ों की कवायद है या राजनीतिक चाल?
लेखक: विशेष संवाददाता | TheTrendingPeople.com
जनगणना की देरी सिर्फ महामारी की वजह नहीं
भारत की अगली जनगणना, जिसे 2021 में ही होना था, अब 2027 में पूरी होगी। यह देरी अब केवल कोविड-19 की देन नहीं लगती—बल्कि यह एक सुनियोजित राजनीतिक कदम भी हो सकती है। जनगणना जैसे विशाल आंकड़ों वाले अभियान में देरी से सिर्फ प्रशासनिक योजनाएं ही नहीं, बल्कि लाखों गरीब और वंचित वर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं भी प्रभावित हो रही हैं।
अब पहली बार यह जनगणना डिजिटल माध्यम से की जाएगी—जिससे डेटा जल्दी इकट्ठा होगा, लेकिन साथ ही डेटा प्राइवेसी और चोरी जैसे खतरों की आशंका भी बढ़ गई है।
जाति जनगणना: सामाजिक सुधार या नया विभाजन?
इस जनगणना में 1931 के बाद पहली बार जातियों की गणना होगी। यह फैसला एक दोधारी तलवार है। एक ओर इससे हाशिए पर खड़े समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की सही जानकारी मिलेगी, जिससे कल्याणकारी योजनाएं बेहतर बन सकती हैं। वहीं दूसरी ओर, यह सामाजिक ध्रुवीकरण को और बढ़ावा दे सकता है।
क्या यह जातिगत पहचान को और मज़बूत करेगा या समाज में नए विभाजन की नींव रखेगा? इसका उत्तर आने वाला समय ही देगा।
नई जनगणना, नया चुनावी नक्शा?
भारत के संविधान के अनुसार, 2026 के बाद पहली जनगणना के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं की नई सीटों का पुनर्निर्धारण (delimitation) किया जाएगा। इसका मतलब है कि अब तक 1971 की जनसंख्या के आधार पर बनी राजनीतिक सीटों को 2027 के आंकड़ों के अनुसार फिर से बांटा जाएगा।
यानी, जहां उत्तर भारत के राज्यों—उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश—की आबादी तेज़ी से बढ़ी है, वहीं दक्षिण भारत के राज्यों—केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक—में जनसंख्या स्थिर रही है। इससे दक्षिण भारत को अपने प्रतिनिधित्व में कमी का डर है।
हिंदी पट्टी को फायदा और राजनीति की गणित
यह चिंता बढ़ती जा रही है कि जनगणना में हो रही यह देरी कहीं राजनीतिक रूप से सत्तारूढ़ बीजेपी को फायदा पहुंचाने की कोशिश तो नहीं? यदि लोकसभा सीटों का पुनर्वितरण सिर्फ जनसंख्या के आधार पर होगा, तो स्वाभाविक है कि हिंदी भाषी राज्यों की सीटें बढ़ेंगी—जो बीजेपी का पारंपरिक गढ़ हैं।
यदि केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर स्पष्ट नीति और सर्वसम्मति नहीं बनाई, तो यह धारणा मज़बूत हो सकती है कि जनगणना की देरी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा थी।
पारदर्शिता और भागीदारी की ज़रूरत
जनगणना सिर्फ आंकड़ों की प्रक्रिया नहीं है—यह लोकतंत्र की नींव है। 140 करोड़ से ज्यादा लोगों को छूने वाली इस कवायद में, सरकार को हर स्तर पर पारदर्शिता और जन संवाद बनाए रखना ज़रूरी है।
सरकार को चाहिए कि वह राज्यों के साथ मिलकर सीटों के पुनर्निर्धारण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सर्वसम्मति बनाए, न कि चुपचाप आगे बढ़े।
निष्कर्ष: जनगणना 2027 एक नये भारत की दिशा तय करेगी
जनगणना 2027 भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दिशा को दशकों तक प्रभावित करेगी। यह एक ऐतिहासिक अवसर है—जहां आंकड़े केवल रिपोर्ट न बनें, बल्कि नीतियों की रीढ़ बनें। लेकिन अगर इसमें राजनीति की चालें घुल जाएं, तो देश का लोकतांत्रिक संतुलन बिगड़ सकता है।
हमें यह तय करना होगा कि हम जनगणना को जन की गिनती तक सीमित रखें या इसे जन की सुनवाई का माध्यम बनाएं।
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