दिल्ली प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट में 'हाई वोल्टेज' ड्रामा—मिड-डे मील पर जिरह, वकीलों पर तंज और MCD को कड़ी फटकार: "क्या अब CP में भी टोल लगाओगे?दिल्ली, बुधवार (17 दिसंबर 2025) की सुबह का हाल. (Photo : PTI)
नई दिल्ली — देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर (NCR) में फैले जानलेवा प्रदूषण के कोहरे के बीच देश की सर्वोच्च अदालत में बुधवार को एक अहम और तीखी सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने जब इस मामले को सुनना शुरू किया, तो कोर्टरूम दलीलों और प्रति-दलीलों का अखाड़ा बन गया। मामला सिर्फ प्रदूषण का नहीं, बल्कि उससे प्रभावित हो रही बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबों के भोजन (मिड-डे मील) का भी था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने न केवल एमसीडी (MCD) और केंद्र सरकार को कड़ी नसीहतें दीं, बल्कि वहां मौजूद वकीलों पर भी तंज कसा कि कैसे कानूनी विशेषज्ञ अब पर्यावरण विशेषज्ञ बनने की कोशिश कर रहे हैं।
"क्या गरीबों के घर में वैक्यूम क्लीनर है?"—मिड-डे मील पर भावनात्मक बहस
सुनवाई का सबसे भावुक और तार्किक हिस्सा तब आया जब स्कूलों को बंद करने के फैसले पर सवाल उठाए गए। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील मेनका गुरुस्वामी ने कोर्ट में जोरदार दलीलें पेश कीं, जिसने सिस्टम की पोल खोलकर रख दी।
कुपोषण का खतरा: गुरुस्वामी ने तर्क दिया कि स्कूल बंद होने का सबसे बुरा असर गरीब बच्चों पर पड़ रहा है। उन्होंने कहा, "पिछले साल 85 प्रतिशत गरीब बच्चे स्कूल नहीं जा पाए। जब हम स्कूल बंद करते हैं, तो हम अनजाने में यह सुनिश्चित कर देते हैं कि इन गरीब बच्चों को उनका पोषण (मिड-डे मील) न मिले।"वैक्यूम क्लीनर वाली दलील: उन्होंने कोर्ट से तीखा सवाल पूछा, "हम बच्चों की सुरक्षा की बात करते हैं, लेकिन उन्हें घर पर बिठाकर उनकी सुरक्षा कैसे होगी? क्या उनके घरों में एयर प्यूरीफायर या वैक्यूम क्लीनर लगे हैं? गरीब बच्चे पैदल स्कूल जाते हैं, वे प्रदूषण में योगदान नहीं दे रहे हैं, बल्कि वे इसके सबसे बड़े शिकार हैं।"
हालांकि, कोर्ट ने इस दलील पर चिंता तो जताई, लेकिन बच्चों के स्वास्थ्य को सर्वोपरि मानते हुए कहा कि यह एक नीतिगत (Policy) मामला है और गंभीर प्रदूषण में बच्चों को बाहर निकालना जोखिम भरा है।
हाइब्रिड क्लास और 16 साल के बच्चों की इम्युनिटी
सीनियर वकील एस.के. लूथरा ने 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए हाइब्रिड क्लास (Hybrid Class) की मांग उठाई। उन्होंने तर्क दिया कि यह धारणा गलत है कि 16 से 17 साल के बच्चों की इम्युनिटी छोटे बच्चों से ज्यादा बेहतर होती है। प्रदूषण का असर फेफड़ों पर उम्र देखकर नहीं होता।
इस पर एएसजी (ASG) भाटी ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि रविवार से ग्रैप-4 (GRAP-IV) लागू होने के बाद से स्थिति 'गंभीर इमरजेंसी' जैसी बनी हुई है। ऐसे में बच्चों की जान को खतरे में नहीं डाला जा सकता। कोर्ट ने भी सहमति जताते हुए कहा कि अगर माता-पिता बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं, तो उससे भी वाहनों की आवाजाही और जोखिम बढ़ता है।
कोर्ट का तंज: "वकील ही बन गए हैं एक्सपर्ट"
सुनवाई के दौरान जब वकीलों ने प्रदूषण को रोकने के तकनीकी सुझाव देने शुरू किए, तो बेंच ने एक अहम और व्यंग्यात्मक टिप्पणी की। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
"हमारी समस्या यह है कि हमें एक्सपर्ट्स (विशेषज्ञों) से सलाह कम मिलती है। यहां कोर्ट में वकील ही एक्सपर्ट बन जाते हैं।"
यह टिप्पणी इस बात की ओर इशारा थी कि प्रदूषण जैसी जटिल समस्या का समाधान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से होना चाहिए, न कि केवल कानूनी बहसों से। कोर्ट ने प्रदूषण से निपटने के लिए लॉन्ग टर्म सॉलूशन (दीर्घकालिक समाधान) पर जोर दिया और सुझाव दिया कि 'विंटर वैकेशन' (Winter Vacation) को पहले कर दिया जाए ताकि छुट्टियों के दौरान प्रदूषण के पीक को मैनेज किया जा सके।
मजदूरों के खाते में पैसे: स्थिति स्पष्ट करने का आदेश
निर्माण कार्यों पर रोक लगने से प्रभावित मजदूरों के मुद्दे पर एएसजी ने बताया कि लगभग 2.5 लाख मजदूरों को रजिस्टर किया गया है, जिनमें से 35 हजार का वेरिफिकेशन हो चुका है। सरकार इनके बैंक खातों में सीधे पैसा (DBT) भेजने की तैयारी कर रही है।
सीजेआई (बेंच की अगुवाई कर रहे) ने सख्त आदेश दिया कि मजदूरों को भुगतान करने वाले सभी संबंधित राज्य अगली सुनवाई में विस्तृत 'स्टेटस रिपोर्ट' दाखिल करें। कोर्ट यह सुनिश्चित करना चाहता है कि प्रदूषण की मार दिहाड़ी मजदूरों की रोटी पर न पड़े।
MCD को फटकार: "क्या पैसों के लिए कनॉट प्लेस में भी टोल लगाओगे?"
सुनवाई का सबसे गर्म मुद्दा टोल प्लाजा (Toll Plaza) और उनसे लगने वाले जाम का रहा। कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (MCD) को कड़ी फटकार लगाई।
- 31 दिसंबर तक टोल फ्री करने का सुझाव: कोर्ट ने सुझाव दिया कि प्रदूषण कम करने के लिए 31 दिसंबर तक टोल प्लाजा पर कोई शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए। टोल पर गाड़ियां रुकती हैं, इंजन चालू रहता है और इससे भारी प्रदूषण होता है।
- MCD की खिंचाई: जब एमसीडी की ओर से राजस्व का मुद्दा उठाया गया, तो कोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा, "क्या आप पैसों के लिए कल से कनॉट प्लेस (CP) के अंदर भी टोल प्लाजा बनाना शुरू कर देंगे?" कोर्ट ने पूछा कि अधिकारी यह घोषणा क्यों नहीं कर सकते कि जनवरी तक कोई टोल नहीं वसूला जाएगा ताकि ट्रैफिक बिना रुके निकल सके।
- टोल की दूरी: कोर्ट ने वकील पिंकी आनंद से कहा कि नेशनल हाइवे के नियमों के मुताबिक टोल प्लाजा 50 किलोमीटर की दूरी पर होने चाहिए, जबकि दिल्ली-एनसीआर में ये 5-10 किलोमीटर पर बने हुए हैं। कोर्ट ने सीएक्यूएम (CAQM) को नोटिस जारी कर अक्टूबर से जनवरी के बीच टोल हटाने पर विचार करने को कहा है।
हमारी राय
सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई दिल्ली-एनसीआर के प्रशासन के लिए एक आईना है। मिड-डे मील से वंचित होते बच्चे और टोल प्लाजा पर पैसों के लिए अड़ी एजेंसियां—ये दोनों ही सिस्टम की संवेदनहीनता को दर्शाते हैं। कोर्ट का यह कहना सही है कि वकील एक्सपर्ट नहीं हो सकते, लेकिन जब कार्यपालिका (Executive) फेल होती है, तो न्यायपालिका को ही कमान संभालनी पड़ती है।
The Trending People का मानना है कि टोल टैक्स को कुछ दिनों के लिए हटाना और मजदूरों को तुरंत मुआवजा देना तात्कालिक राहत के लिए जरूरी कदम हैं। लेकिन जब तक 'एयर शेड मैनेजमेंट' पर वैज्ञानिक काम नहीं होगा, हर साल सुप्रीम कोर्ट में यही बहसें होंगी और दिल्लीवासी गैस चैंबर में घुटते रहेंगे। अब समय 'दलीलों' का नहीं, 'एक्शन' का है।