रॉबर्ट वाड्रा का 'दिल की बात'—कहा, "हिंदू-मुस्लिम में नहीं उलझना चाहता देश, पहले घर सुधरे फिर बांग्लादेश की बात हो"राबर्ट वाड्रा - फोटो : Hindi Khabar
नई दिल्ली — कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति और प्रमुख उद्योगपति रॉबर्ट वाड्रा (Robert Vadra) ने क्रिसमस के मौके पर एक विशेष साक्षात्कार में देश की वर्तमान स्थिति, सामाजिक सरोकारों और अपनी राजनीतिक संभावनाओं पर खुलकर विचार रखे। अक्सर सुर्खियों में रहने वाले वाड्रा ने इस बार एक अलग अंदाज में देश की नब्ज टटोलने की कोशिश की। उन्होंने स्पष्ट किया कि आम नागरिक अब विभाजनकारी राजनीति से ऊब चुका है और वह बेरोजगारी, प्रदूषण तथा महिला सुरक्षा जैसे ठोस मुद्दों पर समाधान चाहता है।
क्रिसमस की शुभकामनाएं देते हुए वाड्रा ने कहा कि उनकी प्रार्थना सिर्फ यह है कि पूरे देश में भाईचारा बना रहे और समाज में सौहार्द कायम हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश को इस समय नफरत की नहीं, बल्कि मरहम की जरूरत है।
"सांस लेना हुआ मुश्किल, खुद छोड़नी पड़ी दौड़"
रॉबर्ट वाड्रा ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में फैलते प्रदूषण को एक 'आपातकाल' जैसी स्थिति बताया। खुद को फिटनेस फ्रीक मानने वाले वाड्रा ने अपनी निजी पीड़ा साझा करते हुए कहा कि जहरीली हवा ने उनकी जीवनशैली को भी बदल दिया है।
फिटनेस पर ब्रेक: वाड्रा ने बताया, "मैं पहले खेलकूद, साइकिलिंग और दौड़ जैसी गतिविधियों में बहुत सक्रिय रहता था। सुबह की ताजी हवा मेरी दिनचर्या का हिस्सा थी। लेकिन अब प्रदूषण का स्तर इतना खतरनाक हो गया है कि मैं खुद बाहर निकलने से बचता हूं।"
जनता से अपील: उन्होंने आम लोगों, विशेषकर युवाओं और बुजुर्गों से अपील की कि वे इस प्रदूषित माहौल में आउटडोर एक्सरसाइज, रनिंग या साइकिलिंग से बचें, क्योंकि यह सेहत बनाने के बजाय फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है।
संसद में गूंजनी चाहिए थी आवाज: वाड्रा ने एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हुए बताया कि उनकी पत्नी और सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा प्रदूषण के इस गंभीर मुद्दे को संसद में उठाना चाहती थीं। वे चाहती थीं कि सदन इस पर व्यापक चर्चा करे और जवाबदेही तय हो, लेकिन दुर्भाग्यवश सदन की कार्यवाही स्थगित होने के कारण यह चर्चा नहीं हो सकी। वाड्रा का मानना है कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि 'जीवन के अधिकार' का मुद्दा है।
बेरोजगारी: बच्चों की आंखों में दिखता है डर
साक्षात्कार के दौरान वाड्रा ने बच्चों के साथ अपनी मुलाकात का जिक्र किया, जो काफी भावुक था। क्रिसमस पर बच्चों ने उन्हें कैरल (Carols) सुनाए और अपने स्कूल व भविष्य के सपनों के बारे में बताया।
वाड्रा ने कहा:
"ये बच्चे आगे बढ़ने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं। लेकिन उनकी मासूम आंखों में एक डर भी है। उन्हें इस बात का गहरा एहसास है कि देश में बेरोजगारी एक विकराल चुनौती बन चुकी है। वे जानते हैं कि केवल अच्छी शिक्षा ही उन्हें बेहतर भविष्य की उम्मीद दे सकती है, लेकिन क्या सिस्टम उन्हें रोजगार की गारंटी दे पाएगा? यह एक बड़ा सवाल है।"
राजनीति में एंट्री? "मांग तो आती है, लेकिन..."
हर बार की तरह, इस बार भी रॉबर्ट वाड्रा से उनकी सक्रिय राजनीति में एंट्री को लेकर सवाल पूछा गया। क्या वे चुनाव लड़ेंगे? इस पर वाड्रा ने बहुत सधे हुए शब्दों में जवाब दिया।
उन्होंने कहा, "लोगों की ओर से ऐसी मांगें और उम्मीदें जरूर आती हैं। मैं उनका सम्मान करता हूं। लेकिन मेरे लिए फिलहाल सबसे जरूरी यह है कि मैं एक नागरिक के तौर पर असल मुद्दों पर ध्यान दूं और समाज सेवा के जरिए योगदान दूं। राजनीति एक मंच हो सकता है, लेकिन सेवा बिना पद के भी की जा सकती है।"
राजनीतिक विश्लेषक उनके इस बयान को 'न अभी, न कभी नहीं' (Wait and Watch) की रणनीति के तौर पर देख रहे हैं।
प्रदूषण का 'विदेशी फॉर्मूला': चीन से सीखे भारत
प्रदूषण से निपटने के लिए वाड्रा ने एक व्यावहारिक सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि अगर हम देश के भीतर इसका समाधान नहीं ढूंढ पा रहे हैं, तो हमें अहंकार छोड़कर अंतरराष्ट्रीय सहयोग लेना चाहिए।
चीन का उदाहरण: उन्होंने कहा कि चीन ने भी कभी ऐसे ही प्रदूषण का सामना किया था, लेकिन उन्होंने तकनीक और सख्त नीतियों से इस पर काबू पाया। भारत को चीन या अन्य विकसित देशों के अनुभवों से सीखकर प्रदूषण से राहत पाने का रास्ता निकालना चाहिए। "हवा की कोई सीमा नहीं होती, इसलिए समाधान भी वैश्विक स्तर से सीखने में कोई हर्ज नहीं है," वाड्रा ने जोड़ा।
"घर की फिक्र पहले, पड़ोसी की बाद में"
देश में चल रहे हिंदू-मुस्लिम विमर्श और बांग्लादेश जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर वाड्रा ने बेबाक टिप्पणी की। उनका मानना है कि सरकार और मीडिया का फोकस गलत दिशा में है।
असली मुद्दे: उन्होंने कहा, "आम नागरिक हिंदू-मुस्लिम जैसे विवादों में नहीं उलझना चाहता। उसे अपनी थाली में रोटी, युवाओं के लिए नौकरी और महिलाओं के लिए सुरक्षा चाहिए। ये 'रियल इश्यूज' हैं।"
बांग्लादेश पर नसीहत: वाड्रा ने स्पष्ट कहा कि पहले हमें अपने देश के भीतर की समस्याओं—बेरोजगारी, महंगाई और प्रदूषण—का हल निकालना चाहिए। "जब हमारा अपना घर सुरक्षित और खुशहाल होगा, तभी हम बांग्लादेश या दूसरे देशों के मुद्दों पर बात करने की स्थिति में होंगे। प्राथमिकता हमारा अपना नागरिक होना चाहिए," उन्होंने जोर देकर कहा।
हमारी राय
रॉबर्ट वाड्रा का यह साक्षात्कार एक उद्योगपति से ज्यादा एक 'चिंतित नागरिक' की आवाज लगता है। प्रदूषण पर उनकी चिंता जायज है, क्योंकि यह अमीर और गरीब दोनों की सांसों पर असर डाल रहा है। राजनीति में आने के सवाल को टालना उनकी सोची-समझी रणनीति हो सकती है, लेकिन बेरोजगारी और सांप्रदायिक सौहार्द पर उनके विचार धरातल से जुड़े हैं।
The Trending People का मानना है कि वाड्रा द्वारा उठाया गया 'अंतरराष्ट्रीय सहयोग' का बिंदु विचारणीय है। प्रदूषण जैसी समस्या से निपटने के लिए अगर हमें वैश्विक विशेषज्ञता की जरूरत है, तो इसमें संकोच नहीं करना चाहिए। साथ ही, उनका यह संदेश कि "पहले अपना घर सुधारें", सरकार और विपक्ष दोनों के लिए एक नसीहत है। जब तक बुनियादी समस्याएं हल नहीं होंगी, भावनात्मक मुद्दों का शोर देश को आगे नहीं ले जा पाएगा।