आरबीआई का बड़ा कदम: रेपो रेट में 0.25% कटौती से अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार, विशेषज्ञों ने बताया विकास पर असर
नेशनल डेस्क। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती के फैसले का अर्थशास्त्रियों और वित्त विशेषज्ञों ने स्वागत किया है। उनका मानना है कि मुद्रास्फीति के असाधारण रूप से निचले स्तर पर बने रहने की मौजूदा स्थिति में यह कदम आर्थिक गतिविधियों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाएगा। दरअसल, ब्याज दरों में कमी का सीधा असर कर्ज की लागत पर पड़ता है, जिससे निवेश, उद्योग और खर्च को बढ़ावा मिलता है।
कम मुद्रास्फीति के दौर में रेट कट का बड़ा महत्व
विशेषज्ञों के अनुसार पिछले कुछ महीनों में रिटेल महंगाई में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी और कोर मुद्रास्फीति में कमी ने आरबीआई को मौद्रिक ढील देने के लिए पर्याप्त गुंजाइश दी। यह पहली बार है जब कई तिमाहियों बाद केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कटौती का फैसला लिया है।
केयरएज रेटिंग्स की चीफ इकोनॉमिस्ट रजनी सिन्हा ने कहा,
"आरबीआई ने विकास को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा कम मुद्रास्फीति वाले दौर का इस्तेमाल किया है। ब्याज दरों में कटौती और न्यूट्रल नीति रुख हमारी उम्मीदों के अनुरूप है।"
लिक्विडिटी उपायों से रेपो कट का फायदा लोगों तक पहुंचाने की तैयारी
विशेषज्ञ मानते हैं कि रेपो कट का वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब तरलता बढ़ेगी और बैंकों तक पूंजी आसानी से उपलब्ध होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए आरबीआई ने अतिरिक्त लिक्विडिटी देने और ओपन मार्केट ऑपरेशंस के जरिए धन प्रवाह बढ़ाने का निर्णय लिया है।
माधवी अरोड़ा, चीफ इकोनॉमिस्ट, एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज का कहना है,
"1.45 लाख करोड़ रुपए की लिक्विडिटी इन्फ्यूजन और फॉरेक्स स्वैप का ऐलान, ब्याज दरों में कटौती का फायदा सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाएगा।"
विकास दर को मिलेगी बढ़त
क्रिसिल की चीफ इकोनॉमिस्ट धर्मकीर्ति जोशी के अनुसार,
"वर्तमान वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था ने विकास और महंगाई दोनों मोर्चों पर शानदार प्रदर्शन किया है। रेट कट से अगले वित्त वर्ष में विकास की गति और तेज होने की पूरी उम्मीद है, क्योंकि मौद्रिक नीति के प्रभाव में कुछ समय लगता है।"
विशेषज्ञों का मानना है कि उद्योग और आवास क्षेत्र में निवेश की गति बढ़ सकती है। ऑटो, रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों को भी कम ब्याज दरों का सीधा फायदा मिलेगा। छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप सेक्टर में कर्ज की लागत कम होने से रोजगार और उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है।
रुपया कमजोर लेकिन कोई बाधा नहीं
कुछ विश्लेषकों के अनुसार, रुपए की कमजोरी आगे की दर कटौती की राह में बाधा बन सकती थी, लेकिन विशेषज्ञों की एक बड़ी संख्या इससे सहमत नहीं है। उनका कहना है कि मजबूत घरेलू विकास और नियंत्रित मुद्रास्फीति ब्याज दरों में आगे भी राहत मिलने की संभावना बनाए रखते हैं।
TheTrendingPeople की राय
रेपो रेट में कटौती भारतीय अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने और निवेश को मजबूत करने की दिशा में अहम कदम है। हालांकि वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक जोखिम अभी भी मौजूद हैं, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में आरबीआई का रुख विकास के हित में सही प्रतीत होता है। आने वाले महीनों में बाजार की स्थिति और मुद्रास्फीति का रुझान यह तय करेगा कि ब्याज दरों में आगे और कटौती संभव है या नहीं।
