झारखंड में सरकारी कर्मचारियों के लिए खुशखबरी—2026 का हॉलिडे कैलेंडर जारी, सोहराय पर अब मिलेगी 'दोगुनी' छुट्टी
रांची, दिनांक: 10 दिसंबर 2025 — नया साल 2026 दस्तक देने को है और इसके आगमन से ठीक पहले झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य के लाखों सरकारी कर्मचारियों को एक बड़ी सौगात दी है। झारखंड मंत्रालय में आयोजित कैबिनेट की महत्वपूर्ण बैठक में वर्ष 2026 के लिए सरकारी अवकाशों के आधिकारिक कैलेंडर को मंजूरी दे दी गई है। सरकार ने इस बार सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों के बीच संतुलन साधते हुए कुल 34 दिनों की छुट्टियां निर्धारित की हैं।
इस निर्णय का सबसे प्रमुख आकर्षण आदिवासी समुदाय के महान पर्व 'सोहराय' (Sohrai) के लिए घोषित दो दिनों का लगातार अवकाश है। यह फैसला न केवल कर्मचारियों के लिए राहत की खबर है, बल्कि इसे राज्य की आदिवासी अस्मिता और संस्कृति को सम्मान देने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
कैबिनेट की मुहर: 34 दिनों की छुट्टियों का पूरा रोडमैप
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, वर्ष 2026 में छुट्टियों का वर्गीकरण दो मुख्य श्रेणियों में किया गया है:
- एनआईए एक्ट (Negotiable Instruments Act, 1881): इसके तहत कुल 21 छुट्टियां घोषित की गई हैं। ये वे छुट्टियां हैं जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर भी लागू होती हैं।
- कार्यपालक आदेश (Executive Order): राज्य सरकार के विशेषाधिकार के तहत 13 छुट्टियां दी गई हैं।
इस प्रकार, कुल मिलाकर राज्य कर्मियों को साल भर में 34 दिन अवकाश का लाभ मिलेगा। इस कैलेंडर को तैयार करते समय राष्ट्रीय त्योहारों के साथ-साथ झारखंड की स्थानीय परंपराओं, महापुरुषों की जयंतियों और क्षेत्रीय पर्वों का विशेष ध्यान रखा गया है।
सोहराय पर्व: आदिवासी संस्कृति का सम्मान और खुशी की लहर
इस बार के कैलेंडर की सबसे बड़ी चर्चा सोहराय पर्व को लेकर है। सोहराय, जो झारखंड के आदिवासी समुदायों, विशेषकर संथाल और उरांव जनजातियों के लिए दीपावली के बाद मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है, के लिए इस बार लगातार दो दिनों की छुट्टी घोषित की गई है।
क्या है सोहराय का महत्व? सोहराय मूल रूप से फसल कटाई और पशुधन (पशुओं) के प्रति आभार व्यक्त करने का उत्सव है। इसे प्रकृति और मनुष्य के बीच के अटूट रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान घरों की दीवारों पर की जाने वाली 'सोहराय चित्रकारी' (Sohrai Painting) विश्व प्रसिद्ध है, जिसे जीआई टैग (GI Tag) भी प्राप्त है।
दो दिन की छुट्टी क्यों? ग्रामीण इलाकों में तैनात सरकारी कर्मचारी अक्सर इस पर्व के दौरान अपने पैतृक गांव जाने के लिए लंबी छुट्टी की मांग करते थे। एक दिन की छुट्टी में यात्रा और उत्सव दोनों का आनंद लेना मुश्किल होता था। सरकार के इस फैसले से अब कर्मचारी अपने परिवार के साथ पूरे जोश और उत्साह के साथ इस पारंपरिक उत्सव में भाग ले सकेंगे। यह कदम आदिवासी समुदायों के लिए खुशी और समृद्धि का प्रतीक बनकर उभरा है।
हूल दिवस और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की कवायद
राज्य सरकार ने अपने कैलेंडर में केवल छुट्टियों की संख्या नहीं बढ़ाई है, बल्कि इसके जरिए एक संदेश भी दिया है। कैलेंडर में हूल दिवस (Hul Diwas) जैसे ऐतिहासिक दिनों को प्रमुखता दी गई है। हूल दिवस, जो 1855 के संथाल विद्रोह की याद में मनाया जाता है, झारखंड के स्वाभिमान का प्रतीक है।
अधिकारियों के अनुसार, "यह कदम राज्य की सांस्कृतिक पहचान को आगे बढ़ाने और ऐतिहासिक पर्वों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से उठाया गया है। जब सरकारी स्तर पर इन दिनों को अवकाश के रूप में मान्यता मिलती है, तो समाज में इनके महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ती है।"
कर्मचारी कल्याण बनाम कार्य की गति: एक बहस
सरकार का स्पष्ट मानना है कि ये छुट्टियां कर्मचारियों के Work-Life Balance (कार्य-जीवन संतुलन) के लिए अनिवार्य हैं।
सरकार का पक्ष: "ये छुट्टियां न केवल कर्मचारियों को मानसिक सुकून और पारिवारिक समय प्रदान करेंगी, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक एकजुटता को भी मजबूत करेंगी। एक तनावमुक्त कर्मचारी ही बेहतर उत्पादकता दे सकता है।"
दूसरी ओर, इस फैसले के आलोचक भी हैं।
आलोचकों का तर्क: कुछ प्रशासनिक विशेषज्ञों और विपक्षी दलों का कहना है कि छुट्टियों की अधिकता से सरकारी कार्यों की गति धीमी हो सकती है। उनका तर्क है कि झारखंड जैसे विकासशील राज्य में, जहां कई परियोजनाएं समय सीमा के भीतर पूरी होनी हैं, वहां 34 दिनों का अवकाश (रविवार और शनिवार के अलावा) प्रशासनिक सुस्ती का कारण बन सकता है।
हालांकि, सरकार ने इन चिंताओं को खारिज कर दिया है। कैबिनेट बैठक के बाद अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि आवश्यक सेवाओं (Essential Services), जैसे स्वास्थ्य, पुलिस, और आपदा प्रबंधन पर इन छुट्टियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। रोस्टर सिस्टम के तहत इन सेवाओं को निर्बाध रूप से जारी रखा जाएगा।
द ट्रेंडिंग पीपल विश्लेषण: वोट बैंक या वास्तविक चिंता?
राजनीतिक गलियारों में इसे आगामी चुनावी समीकरणों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सोहराय पर दो दिन की छुट्टी को आदिवासी वोट बैंक को साधने की कवायद माना जा रहा है। हालांकि, इसे केवल राजनीति के चश्मे से देखना उचित नहीं होगा। झारखंड की भौगोलिक और सामाजिक संरचना को देखते हुए, स्थानीय पर्वों को राष्ट्रीय पर्वों के बराबर सम्मान देना एक समावेशी कदम है।
TheTrendingPeople.com की राय में
झारखंड सरकार का 2026 का हॉलिडे कैलेंडर केवल तारीखों की सूची नहीं है, बल्कि यह राज्य की 'जल, जंगल और ज़मीन' की संस्कृति को प्रशासनिक मान्यता देने का एक दस्तावेज है। सोहराय के लिए दो दिन का अवकाश निश्चित रूप से एक स्वागत योग्य कदम है, जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले कर्मचारियों को अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका देगा।
हालांकि, The Trending People का मानना है कि छुट्टियों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ सरकार को 'वर्क कल्चर' (Work Culture) को सुधारने पर भी उतना ही जोर देना चाहिए। छुट्टियां मानसिक सुकून के लिए होनी चाहिए, न कि सरकारी फाइलों को धूल खिलाने के लिए। यदि सरकार छुट्टियों के साथ-साथ जवाबदेही सुनिश्चित कर पाती है, तो यह कैलेंडर कर्मचारियों और जनता, दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।