स्टेट डेस्क: हिमाचल के सरकारी स्कूलों में 'गाइड कल्चर' पर सर्जिकल स्ट्राइक—शिक्षकों के हेल्पबुक इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध, उल्लंघन पर नपेंगे गुरुजी
शिमला, दिनांक: 10 दिसंबर 2025 — हिमाचल प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता सुधारने की दिशा में सरकार ने एक ऐसा कड़ा फैसला लिया है, जो सरकारी स्कूलों के 'क्लासरूम कल्चर' को हमेशा के लिए बदल सकता है। शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों द्वारा कक्षाओं में गाइड या हेल्पबुक (Helpbooks) से पढ़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। अब अगर कोई शिक्षक कक्षा में एनसीईआरटी (NCERT) की किताबों के बजाय गाइड या कुंजी हाथ में लिए पकड़ा गया, तो उस पर गाज गिरनी तय है।
स्कूल शिक्षा निदेशक आशीष कोहली ने इस संबंध में सख्त लिखित आदेश जारी कर दिए हैं। यह फैसला उन शिकायतों के बाद लिया गया है जिनमें कहा गया था कि कई शिक्षक पाठ्यपुस्तकों का गहन अध्ययन करने के बजाय शॉर्टकट के तौर पर गाइड बुक्स का सहारा ले रहे हैं, जिससे छात्रों की सीखने की क्षमता कुंद हो रही है।
शिक्षा निदेशालय का फरमान: क्लासरूम में अब 'नो गाइड एंट्री'
निदेशक आशीष कोहली की ओर से जारी आदेशों में स्पष्ट कहा गया है कि कक्षाओं में हेल्पबुक ले जाने पर भी "पूर्ण प्रतिबंध" रहेगा। यह आदेश केवल कागजी शेर साबित न हो, इसके लिए विभाग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Action) की चेतावनी भी दी है।
आदेश के मुख्य बिंदु:
- गाइड/हेल्पबुक पूर्णतः वर्जित: कक्षा के भीतर शिक्षक किसी भी निजी प्रकाशक की गाइड, कुंजी या पासबुक का उपयोग नहीं कर सकते।
- केवल NCERT मान्य: शिक्षण के लिए केवल निर्धारित पाठ्यपुस्तकों (मुख्य रूप से NCERT) का ही उपयोग किया जाएगा।
- तत्काल प्रभाव से लागू: यह नियम प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है।
शिक्षा विभाग का मानना है कि शिक्षक का काम विषय को समझाना और छात्रों में जिज्ञासा पैदा करना है, न कि गाइड में लिखे रटे-रटाए उत्तरों को पढ़वाना। गाइड बुक से पढ़ाने की प्रवृत्ति ने शिक्षण को यांत्रिक बना दिया है।
निगरानी तंत्र: औचक निरीक्षण और हेडमास्टर की जवाबदेही
आदेश जारी करना एक बात है और उसका पालन करवाना दूसरी। इस बात को समझते हुए निदेशालय ने स्कूल के मुख्य अध्यापकों (Headmasters) और प्रधानाचार्यों (Principals) को सीधे तौर पर जवाबदेह बनाया है।
- औचक निरीक्षण (Surprise Inspection): स्कूल प्रमुखों को निर्देश दिए गए हैं कि वे नियमित रूप से कक्षाओं का औचक निरीक्षण करें। उन्हें यह देखना होगा कि शिक्षक पढ़ाते समय किस सामग्री का उपयोग कर रहे हैं।
- रिपोर्टिंग: अगर निरीक्षण के दौरान कोई शिक्षक गाइड का इस्तेमाल करते हुए पाया जाता है, तो स्कूल प्रमुख को न केवल उस पर स्थानीय स्तर पर कार्रवाई करनी होगी, बल्कि इसकी लिखित सूचना निदेशालय को भी देनी होगी।
- अधिकारियों की भूमिका: जिला उप-निदेशकों और अन्य जिला अधिकारियों को भी अपने दौरों के दौरान इस पहलू पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है।
क्यों पड़ी इस सख्त कदम की ज़रूरत?
यह फैसला रातों-रात नहीं लिया गया है। इसके पीछे लंबी समय से चली आ रही शिकायतें और गिरता हुआ शैक्षिक स्तर मुख्य कारण हैं।
- शिकायतों का अंबार: स्कूल शिक्षा निदेशक ने बताया कि विभाग को अभिभावकों और निरीक्षण अधिकारियों से लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि शिक्षक कक्षाओं में टेक्स्टबुक के बजाय गाइड से पढ़ा रहे हैं। कई मामलों में तो शिक्षक गाइड से ही प्रश्न-उत्तर लिखवा देते थे, जिससे बच्चे किताब पढ़ना ही भूल गए।
- शॉर्टकट कल्चर: गाइड बुक्स अक्सर परीक्षा पास करने के लिए शॉर्टकट तरीके अपनाती हैं। इससे छात्रों को विषय की गहरी समझ नहीं मिल पाती।
- मौलिक सोच का हनन: विभाग का तर्क है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों में सोचने-समझने (Critical Thinking) और प्रश्न करने की क्षमता विकसित करना है। जब शिक्षक ही गाइड पर निर्भर हो जाएगा, तो वह छात्र की जिज्ञासा को शांत करने के बजाय उसे रटने के लिए प्रेरित करेगा। हेल्पबुक से नई समझ विकसित नहीं होती, बल्कि यह दिमाग को सीमित कर देती है।
एनसीईआरटी (NCERT) की वापसी: गुणवत्ता पर जोर
शिक्षा विभाग ने साफ कर दिया है कि अब कक्षा में केवल NCERT या राज्य शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित किताबें ही मान्य होंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि एनसीईआरटी की किताबें गहन शोध के बाद तैयार की जाती हैं और वे छात्रों के मानसिक विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं।
कांसेप्ट पर फोकस: एनसीईआरटी की किताबें कॉन्सेप्ट क्लियर करने पर जोर देती हैं, जबकि गाइड बुक्स केवल संभावित प्रश्नों के उत्तर रटाने पर।
शिक्षक की तैयारी: इस आदेश के बाद शिक्षकों को अब घर से पढ़कर और तैयारी करके आना होगा। उन्हें विषय को समझाने के लिए खुद मेहनत करनी होगी, जो अंततः छात्रों के हित में होगा।
पहले भी हुए प्रयास, लेकिन अब होगी सख्ती
निदेशक आशीष कोहली ने स्वीकार किया कि इससे पहले भी इस तरह के निर्देश जारी किए गए थे, लेकिन उनका जमीनी स्तर पर पालन नहीं हो पाया। कई स्थानों पर शिक्षकों ने इन निर्देशों की धज्जियां उड़ाईं। लेकिन इस बार विभाग का रुख बेहद सख्त है।
उन्होंने कहा, "हम शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करेंगे। शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं और उन्हें अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी से निभानी होगी। गाइड बुक का सहारा लेना एक आसान रास्ता हो सकता है, लेकिन यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।"
इस फैसले का असर दूरगामी होने वाला है। जहां एक ओर मेहनती शिक्षकों ने इसका स्वागत किया है, वहीं 'गाइड' के भरोसे नैया पार लगाने वाले शिक्षकों में हड़कंप मच गया है।
TheTrendingPeople.com की राय में
हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग का यह निर्णय "देर आए दुरुस्त आए" वाली कहावत को चरितार्थ करता है। गाइड बुक्स ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को दीमक की तरह खोखला कर दिया है। जब शिक्षक ही 'कुंजी' से पढ़ाएगा, तो छात्र से 'मौलिकता' की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
The Trending People का मानना है कि यह केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि एक शैक्षिक सुधार है। हालांकि, इसकी सफलता पूरी तरह से स्कूल प्रधानाचार्यों की ईमानदारी और निरीक्षण तंत्र की सख्ती पर निर्भर करेगी। अगर इस आदेश का पालन सही भावना से किया गया, तो यह सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारने में मील का पत्थर साबित होगा। शिक्षकों को भी इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए और 'गाइड' को छोड़कर 'ज्ञान' का मार्ग अपनाना चाहिए।