इंडिगो 'संकट' पर दिल्ली हाईकोर्ट की केंद्र को फटकार—पूछा, "हवाई किराए की लूट और यात्रियों के उत्पीड़न का जिम्मेदार कौन?"
नई दिल्ली, दिनांक: 10 दिसंबर 2025 — देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी इंडिगो (IndiGo) द्वारा बड़े पैमाने पर उड़ानों को रद्द किए जाने से उत्पन्न हुई अराजकता अब न्यायपालिका की चौखट तक पहुँच गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को इस मामले में केंद्र सरकार के रवैये पर तीखे सवाल उठाए और मौजूदा हालात को एक "संकट" (Crisis) करार दिया। अदालत ने न केवल फंसे हुए यात्रियों की परेशानी पर चिंता जताई, बल्कि इस बात पर भी हैरानी जताई कि कैसे इस आपदा के समय में अन्य विमानन कंपनियां "अवसरवादी" होकर यात्रियों से मनमाना किराया वसूल रही हैं।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार और विमानन नियामक (DGCA) से जवाब तलब किया है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: "यह सिर्फ असुविधा नहीं, इकोनॉमी पर चोट है"
बुधवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सैकड़ों उड़ानों का रद्द होना केवल यात्रियों की व्यक्तिगत असुविधा का मामला नहीं है। कोर्ट ने इसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखते हुए कहा, "फंसे हुए यात्रियों को हुई परेशानी और मानसिक उत्पीड़न के अलावा, यह देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान का भी एक गंभीर सवाल है।"
अदालत का यह मानना है कि जब देश का एक बड़ा परिवहन नेटवर्क ठप होता है, तो इसका सीधा असर व्यापार, पर्यटन और आपातकालीन सेवाओं पर पड़ता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से सीधा सवाल किया कि "आखिर ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई जिसके कारण इंडिगो की इतनी बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द करनी पड़ीं?"
"आपदा में अवसर" तलाशती एयरलाइंस पर भी सवाल
कोर्ट ने सुनवाई का दायरा केवल इंडिगो तक सीमित नहीं रखा। जजों ने उस प्रवृत्ति पर भी कड़ा प्रहार किया जहाँ एक एयरलाइन के संकट में फंसते ही दूसरी एयरलाइंस टिकटों के दाम आसमान पर पहुँचा देती हैं। पीठ ने पूछा: "ऐसी संकटपूर्ण स्थिति में अन्य विमानन कंपनियां हालात का फायदा उठाकर यात्रियों से टिकटों के लिए भारी कीमत कैसे वसूल सकती हैं?"
यह सवाल आम जनता के उस दर्द को बयां करता है, जहाँ इंडिगो की फ्लाइट रद्द होने के बाद यात्रियों को दूसरी एयरलाइंस में 3 से 4 गुना अधिक कीमत चुकाकर टिकट बुक करने पड़े। कोर्ट ने इसे लेकर विनियामक तंत्र (Regulatory Mechanism) की विफलता की ओर इशारा किया है।
सरकार और DGCA का बचाव: "नियम लागू हैं, नोटिस भेजा गया"
कोर्ट के तीखे सवालों का सामना करते हुए केंद्र सरकार और नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) की ओर से पेश वकील ने बचाव की मुद्रा अपनाई। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि विमानन क्षेत्र में कानूनी प्रावधान पूरी तरह से लागू हैं और नियामक हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा है।
सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया:
कारण बताओ नोटिस: इंडिगो को इस कुप्रबंधन के लिए कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) जारी किया जा चुका है।माफीनामा: एयरलाइन ने अपनी गलतियों के लिए बार-बार "काफी क्षमायाचना" (Apologies) की है।
संकट का कारण: सरकार ने स्वीकार किया कि यह संकट कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देशों के अनुपालन न करने के कारण पैदा हुआ है। इसमें सबसे प्रमुख है—चालक दल के सदस्यों (Crew Members) के उड़ान ड्यूटी समय (FDTL) से संबंधित नियमों का उल्लंघन या कुप्रबंधन।
सरकार का कहना है कि पायलटों और केबिन क्रू की रोस्टरिंग में गड़बड़ी और ड्यूटी के घंटों के नियमों का पालन न होने से उड़ानों का संचालन बाधित हुआ।
जनहित याचिका (PIL) और यात्रियों के अधिकार
अदालत यह सुनवाई एक जनहित याचिका (PIL) पर कर रही थी, जिसमें मांग की गई थी कि इंडिगो द्वारा सैकड़ों उड़ानें रद्द किए जाने से प्रभावित यात्रियों को तत्काल सहायता दी जाए और उनके टिकट का पैसा रिफंड किया जाए।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि एयरलाइन ने यात्रियों को समय पर सूचित नहीं किया, रिफंड देने में देरी की और वैकल्पिक उड़ानों की व्यवस्था करने में विफल रही। कोर्ट ने इस याचिका को आधार बनाते हुए अब पूरे सिस्टम की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
विश्लेषण: क्यों गहराया इंडिगो का संकट?
विमानन विशेषज्ञों के अनुसार, इंडिगो का मौजूदा संकट रातों-रात पैदा नहीं हुआ है। इसके पीछे कई कारण माने जा रहे हैं:
- पायलटों की थकान और FDTL: नए डीजीसीए नियमों के तहत पायलटों के आराम के समय को बढ़ाया गया है, जिससे एयरलाइंस पर अतिरिक्त क्रू की व्यवस्था करने का दबाव है। रोस्टरिंग सिस्टम की विफलता ने इस आग में घी का काम किया।
- तकनीकी खामियां: हाल ही में एयरलाइन के नेटवर्क सिस्टम में भी दिक्कतें देखी गई थीं।
- मौसम की मार: उत्तर भारत में कोहरे (Fog) के कारण भी उड़ानों का शेड्यूल बिगड़ा, जिसे एयरलाइन का प्रबंधन संभालने में नाकाम रहा।
लेकिन कोर्ट की चिंता इस बात पर है कि कारण चाहे जो भी हो, उसका खामियाजा निर्दोष यात्रियों को क्यों भुगतना पड़े?
किराए में वृद्धि: एक अनसुलझा सवाल
कोर्ट द्वारा उठाया गया 'किराए में वृद्धि' का मुद्दा सबसे अहम है। भारत में हवाई किराए 'डायनामिक प्राइसिंग' (Dynamic Pricing) पर आधारित होते हैं, जिसका मतलब है कि मांग बढ़ते ही कीमतें बढ़ जाती हैं। जब इंडिगो की उड़ानें रद्द हुईं, तो मार्केट में सीटों की कमी हो गई और एल्गोरिदम ने दूसरी एयरलाइंस के किराए बढ़ा दिए। कोर्ट का सवाल यह है कि क्या "संकट" के समय इस "डायनामिक प्राइसिंग" पर कोई 'कैप' (Cap) या नियंत्रण नहीं होना चाहिए? क्या सरकार को ऐसे समय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब जनता लाचार हो?
TheTrendingPeople की राय में )
दिल्ली उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी भारतीय विमानन क्षेत्र के लिए एक "वेक-अप कॉल" (Wake-up Call) है। इंडिगो जैसे मार्केट लीडर का इस तरह लड़खड़ाना यह बताता है कि परिचालन दक्षता (Operational Efficiency) और यात्री सेवा के बीच संतुलन बिगड़ चुका है।
सरकार का यह कहना कि "नोटिस जारी कर दिया गया है", पर्याप्त नहीं है। एक नोटिस से उस यात्री की भरपाई नहीं हो सकती जो अपनी जरूरी मीटिंग, मेडिकल इमरजेंसी या पारिवारिक समारोह से चूक गया। इसके अलावा, अन्य एयरलाइंस द्वारा "आपदा में अवसर" तलाशना और मनमाना किराया वसूलना अनैतिक है। The Trending People का मानना है कि डीजीसीए को केवल नोटिस भेजने वाली संस्था नहीं, बल्कि यात्रियों के अधिकारों की रक्षा करने वाले एक सख्त प्रहरी की भूमिका निभानी चाहिए। संकट के समय हवाई किराए पर अस्थायी नियंत्रण (Price Capping) लगाने के लिए एक ठोस नीति की तत्काल आवश्यकता है।
