भारत के खिलाफ चीन-पाक का 'सीक्रेट पैक्ट' बेनकाब—पेंटागन की रिपोर्ट में दावा, अब सीधे युद्ध नहीं, 'ग्रे-जोन वॉरफेयर' से घेरने की तैयारी
नई दिल्ली/वाशिंगटन — भारत की सीमाओं पर खतरा अब केवल गोलियों और तोपों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसने एक नया और बेहद खतरनाक रूप ले लिया है। अमेरिकी रक्षा विभाग (Pentagon) से जुड़े ताजा आकलनों में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के दो पड़ोसी प्रतिद्वंद्वी—चीन और पाकिस्तान—अब पारंपरिक युद्ध (Traditional War) के बजाय एक नई और अदृश्य रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिसे ‘ग्रे-जोन वॉरफेयर’ (Grey-Zone Warfare) का नाम दिया गया है।
सीएनएन-न्यूज़18 (CNN-News18) द्वारा एक्सेस की गई इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हालिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Operation Sindoor) इस बदली हुई रणनीति का पहला बड़ा लिटमस टेस्ट था। इस ऑपरेशन में दुनिया ने पाकिस्तान को सक्रिय देखा, लेकिन पर्दे के पीछे की पूरी स्क्रिप्ट बीजिंग (चीन) में लिखी जा रही थी।
क्या है 'ग्रे-जोन वॉरफेयर'? आसान शब्दों में समझें
'ग्रे-जोन वॉरफेयर' युद्ध की वह स्थिति है जो शांति और खुली जंग के बीच की होती है। इसमें दुश्मन देश ऐसी आक्रामक कार्रवाइयां करता है जिनसे दूसरे देश पर लगातार दबाव बना रहे, उसे नुकसान भी हो, लेकिन यह कार्रवाई इतनी बड़ी न हो कि इसे 'युद्ध की घोषणा' माना जाए। इसका मकसद बिना बड़ी लड़ाई लड़े अपने रणनीतिक लक्ष्यों को हासिल करना होता है।
'ऑपरेशन सिंदूर': पाकिस्तान का चेहरा, चीन का दिमाग
अमेरिकी आकलन के अनुसार, 'ऑपरेशन सिंदूर' इस हाइब्रिड वॉरफेयर का एक क्लासिक उदाहरण था। इसमें दोनों देशों ने अपनी भूमिकाएं बखूबी बांटी हुई थीं:
पाकिस्तान (फ्रंटलाइन): पाकिस्तान ने जमीन पर दिखाई देने वाली सैन्य गतिविधियों और प्रॉक्सी ऑपरेशन्स (आतंकी या सीमा पार गतिविधियां) की कमान संभाली। उसका काम भारत पर सीमित सैन्य दबाव बनाना था।चीन (मास्टरमाइंड): वहीं, चीन ने सीधे अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को मैदान में नहीं उतारा। इसके बजाय उसने इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर (Information Warfare), साइबर हमले, खुफिया सहयोग और कूटनीतिक चालों के जरिए पाकिस्तान को 'कवर फायर' दिया।
तकनीकी मदद: रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि चीनी उपग्रहों (Satellites) और इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस सिस्टम्स ने पाकिस्तान को रियल-टाइम इनपुट प्रदान किए। इससे पाकिस्तान की टार्गेटिंग और ऑपरेशनल कोऑर्डिनेशन में गजब का सुधार देखा गया, लेकिन पूरी दुनिया के सामने चीन का दामन साफ रहा।
'जिम्मेदारी से बचने' की चीनी कला (Plausible Deniability)
अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि चीन की इस रणनीति का सबसे अहम हिस्सा 'प्लॉसिबल डिनायेबिलिटी' यानी जिम्मेदारी से मुकरने की गुंजाइश थी। जब पाकिस्तान अपनी हरकतों के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आलोचना झेल रहा था, ठीक उसी समय चीन:
नैरेटिव वार: कूटनीतिक बयानों और नियंत्रित ऑनलाइन अभियानों (Social Media Campaigns) के जरिए पाकिस्तान के पक्ष को हवा दे रहा था।
भ्रम फैलाना: इसका उद्देश्य भारत के दावों पर सवाल खड़े करना और भारत के पक्ष में बनने वाले वैश्विक समर्थन की रफ्तार को धीमा करना था।
अमेरिका इसे भारत की 'एस्केलेशन लिमिट' (धैर्य की सीमा) परखने की एक जानबूझकर की गई कोशिश मानता है।
भारत: चीन के लिए दीर्घकालिक चुनौती
भले ही चीन की प्राथमिकता अभी अमेरिका और ताइवान का थिएटर हो, लेकिन रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि बीजिंग अब भारत को एक दीर्घकालिक रणनीतिक चुनौती (Long-term Strategic Challenge) के रूप में देख रहा है।
रणनीतिक घेराबंदी: चीन चाहता है कि हिमालयी सीमा (LAC) और हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) में भारत की बढ़त को सीमित किया जाए।
पाकिस्तान बना 'प्रेशर वाल्व': अमेरिकी खुफिया सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान इस पूरी योजना में चीन का 'प्रेशर वाल्व' बन चुका है। उसका काम भारत को पश्चिमी सीमा पर लगातार व्यस्त रखना है ताकि भारत अपनी पूरी ताकत चीन की तरफ न लगा सके और अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग (Defense Cooperation) को गहरा न कर सके।
LAC समझौता: शांति या रणनीतिक विराम?
पेंटागन का आकलन अक्टूबर 2024 में हुए भारत-चीन डिसएंगेजमेंट समझौते (Disengagement Pact) को भी शक की निगाह से देखता है। उनका मानना है कि यह तनाव घटाने का स्थायी संकेत नहीं था, बल्कि चीन द्वारा लिया गया एक 'रणनीतिक विराम' (Strategic Pause) था। चीन चाहता था कि कुछ समय के लिए पश्चिमी मोर्चे पर शांति रहे ताकि भारत, अमेरिका के खेमे में पूरी तरह न चला जाए।
'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' का विस्तार: 20 देशों पर नजर
खतरे की घंटी यहीं बंद नहीं होती। रिपोर्ट यह भी बताती है कि चीन अपने सैन्य और लॉजिस्टिक नेटवर्क को वैश्विक स्तर पर फैला रहा है। वह पाकिस्तान और श्रीलंका के अलावा क्यूबा समेत करीब 20 देशों में भविष्य के सैन्य अड्डों या लॉजिस्टिक एक्सेस की संभावनाएं टटोल रहा है। अगर यह नेटवर्क तैयार होता है, तो भारत की समुद्री और जमीनी सुरक्षा पर चौतरफा दबाव होगा।
हमारी राय
'ग्रे-जोन वॉरफेयर' भारत के लिए पारंपरिक युद्ध से भी ज्यादा खतरनाक चुनौती है। जब दुश्मन सामने न होकर अदृश्य हो और दोस्त के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहा हो, तो उससे निपटना मुश्किल होता है। 'ऑपरेशन सिंदूर' ने यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान अब चीन का केवल 'दोस्त' नहीं, बल्कि उसका 'मोहरा' बन चुका है।
The Trending People का मानना है कि भारत को अपनी सैन्य तैयारियों के साथ-साथ साइबर और स्पेस वॉरफेयर क्षमताओं को युद्ध स्तर पर बढ़ाना होगा। हमें यह समझना होगा कि एलएसी पर शांति का मतलब चीन के इरादों में बदलाव नहीं है। यह तूफान से पहले की शांति हो सकती है। कूटनीतिक स्तर पर हमें अमेरिका और अन्य क्वाड (Quad) देशों के साथ खुफिया जानकारी साझा करने के तंत्र को और मजबूत करना होगा ताकि 'ग्रे-जोन' के इस अंधेरे में भी हम दुश्मन की हर चाल को देख सकें।

