श्री पार्थसारथी मंदिर: चेन्नई का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल Photo Credit: SRINATH M via The Hindu
16 अगस्त। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व के अवसर पर, देश-दुनिया के मंदिरों में भक्ति का माहौल है। ऐसे में, तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के त्रिपलीकेन क्षेत्र में स्थित श्री पार्थसारथी मंदिर एक विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के पार्थसारथी स्वरूप को समर्पित है, जो महाभारत में भगवान कृष्ण की अर्जुन के सारथी के रूप में निभाई गई भूमिका का प्रतीक है। अपनी अद्भुत वास्तुकला, समृद्ध इतिहास और धार्मिक महत्ता के कारण यह मंदिर भक्तों के लिए एक प्रमुख आध्यात्मिक स्थल है।
पार्थसारथी: अर्जुन के सारथी का स्वरूप
'पार्थसारथी' शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'अर्जुन का सारथी' (पार्थ यानी अर्जुन)। यह मंदिर भगवान विष्णु के इस विशिष्ट स्वरूप की पूजा का केंद्र है। छठी शताब्दी में निर्मित यह वैष्णव मंदिर 108 दिव्य देशमों में से एक है, जिनका उल्लेख तमिल संतों (आलवारों) के पवित्र ग्रंथ 'दिव्य प्रबंध' में मिलता है। यह मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
इस मंदिर का निर्माण पल्लव वंश के राजा नरसिंहवर्मन प्रथम ने छठी शताब्दी में करवाया था। बाद में चोल और विजयनगर के राजाओं ने इसका विस्तार किया। मंदिर की वास्तुकला में जीवंत राजगोपुरम और बारीक नक्काशीदार मंडप देखने को मिलते हैं, जिन पर पौराणिक कथाओं के दृश्य उकेरे गए हैं। यह मंदिर वैष्णव परंपरा के तेनकलाई संप्रदाय का पालन करता है और इसका प्रबंधन तमिलनाडु सरकार के हिंदू धर्मार्थ और बंदोबस्ती बोर्ड द्वारा किया जाता है।
मंदिर की अनूठी विशेषताएं
श्री पार्थसारथी मंदिर अपनी कई अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। यहाँ भगवान विष्णु के पांच स्वरूपों की पूजा होती है: पार्थसारथी (कृष्ण), योग नरसिंह, राम, गजेंद्र वरदराज और रंगनाथ। एक खास बात यह है कि यहाँ भगवान कृष्ण को मूंछों के साथ और बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के दिखाया गया है। गर्भगृह में, भगवान कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी, भाई बलराम, पुत्र प्रद्युम्न, पौत्र अनिरुद्ध और सात्यकि के साथ विराजमान हैं। मंदिर परिसर में वेदवल्ली थायर, अंडाल, हनुमान और रामानुज जैसे अन्य देवताओं के मंदिर भी हैं।
पौराणिक कथा और महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा सुमति ने तिरुपति में भगवान विष्णु के दर्शन किए और उनके पार्थसारथी स्वरूप की खोज में थे। भगवान ने उन्हें त्रिपलीकेन के इस मंदिर की ओर निर्देशित किया। इस क्षेत्र को तिरुवल्लिकेनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'अलीकेनी' (लिली का तालाब), जो मंदिर के पवित्र कुंड, कैरवाणी, को दर्शाता है। मान्यता है कि सात ऋषियों ने यहाँ तपस्या की थी, जिससे इस स्थान का आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
प्रमुख उत्सव और मंदिर के समय
मंदिर में साल भर कई उत्सव आयोजित होते हैं। इनमें वैकुंठ एकादशी और तमिल महीने मार्गाजी (दिसंबर-जनवरी) के दौरान होने वाले उत्सव प्रमुख हैं, जब बड़ी संख्या में भक्त जुटते हैं। तमिल महीने चित्तिरई (अप्रैल-मई) में श्री पार्थसारथी स्वामी का ब्रह्मोत्सव और उदयवर उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर प्रतिदिन सुबह 5 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है।
मंदिर कैसे पहुँचें?
चेन्नई शहर के मध्य में स्थित होने के कारण, श्री पार्थसारथी मंदिर तक हवाई जहाज, रेल, बस, या कार जैसे परिवहन के साधनों से आसानी से पहुँचा जा सकता है।