दिल्ली का 400 साल पुराना शीश महल अपने पुराने वैभव में लौटा, जनता के लिए खुला
नई दिल्ली: दिल्ली के ऐतिहासिक शालीमार बाग में स्थित करीब 400 साल पुराना शीश महल अब अपने पुराने वैभव में लौट आया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने मिलकर इस मुगलकालीन धरोहर की मरम्मत और बहाली का कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह महत्वपूर्ण स्थल, जो दशकों से उपेक्षा का शिकार था और खंडहर में तब्दील हो गया था, अब जनता और पर्यटकों के लिए पूरी तरह खोल दिया गया है, जिससे दिल्ली के समृद्ध इतिहास का एक और अध्याय फिर से जीवंत हो उठा है।
इतिहास की एक अहम कड़ी: शालीमार बाग और औरंगजेब का राज्याभिषेक
शालीमार बाग का इतिहास मुगलकाल से जुड़ा हुआ है। इसका निर्माण 1653 में मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी अकबराबादी बेगम ने करवाया था। यह बाग न केवल अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना का गवाह भी रहा है। यही वह ऐतिहासिक स्थल है जहां 1658 में मुगल बादशाह औरंगजेब का राज्याभिषेक हुआ था, जिसने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया था। दशकों की उपेक्षा के चलते यह महल धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो गया था, जिससे इसकी ऐतिहासिक भव्यता फीकी पड़ गई थी। अब इस बहाली कार्य से इसे फिर से नया जीवन मिला है, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी इसके गौरवशाली अतीत को देख सकेंगी।
पारंपरिक शैली में बहाली का कार्य: विरासत का संरक्षण
शीश महल की बहाली का कार्य अत्यंत सावधानी और पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके किया गया है, ताकि इसके मूल स्वरूप और ऐतिहासिक प्रामाणिकता को बनाए रखा जा सके। डीडीए और एएसआई ने इस कार्य में आधुनिक सामग्रियों के बजाय चूना, लखौरी ईंट, उड़द और गुड़ जैसे पारंपरिक निर्माण सामग्री का उपयोग किया है। यह सुनिश्चित करता है कि महल की संरचना और सौंदर्य मुगलकालीन वास्तुकला के अनुरूप रहे।
इसके साथ ही, बाग में मुगलकालीन चारबाग शैली को भी दोबारा अपनाया गया है। चारबाग शैली मुगल उद्यानों की एक विशिष्ट विशेषता है, जिसमें उद्यान को चार भागों में बांटा जाता है, जिसके केंद्र में पानी का स्रोत या संरचना होती है। इस शैली को बहाल करने से शालीमार बाग का ऐतिहासिक लुक बरकरार रहा है, जिससे पर्यटक मुगलकालीन उद्यान कला का अनुभव कर सकेंगे।
कैफे और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में नया रूप: संस्कृति और आधुनिकता का संगम
बहाली के बाद, शीश महल को केवल एक ऐतिहासिक स्मारक के रूप में ही नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी विकसित किया गया है। पुरानी इमारतों में से दो कॉटेज को "रीडर्स कैफे कॉर्नर" और "कैफे शालीमार" में बदला गया है। ये कैफे पर्यटकों को एक शांत और आरामदायक वातावरण प्रदान करते हैं, जहां वे बैठकर पुस्तकें पढ़ सकते हैं और चाय-कॉफी का आनंद ले सकते हैं। यह पहल इतिहास और आधुनिक जीवनशैली का एक अनूठा संगम प्रस्तुत करती है। तीसरी इमारत को विभिन्न आधुनिक गतिविधियों के लिए तैयार किया गया है, जिससे यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां और अन्य सामुदायिक आयोजन किए जा सकें। यह महल को केवल देखने की जगह से बदलकर एक सक्रिय सार्वजनिक स्थान बनाता है।
अनावरण समारोह: 'विकास भी, विरासत भी'
परियोजना के अनावरण के मौके पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना, और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस परियोजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'विकास भी, विरासत भी' नीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण बताया। यह नीति विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाते हुए देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर जोर देती है।
इस अवसर पर राजनीतिक टिप्पणी भी चर्चा का विषय बनी। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने उद्घाटन समारोह में पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि "हमने जनता के लिए शीश महल को फिर से जीवित किया है, न कि निजी उपयोग के लिए।" उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल की कथित विलासिता की आलोचना की, जिससे इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में राजनीतिक रंग भी घुल गया।
निष्कर्ष
दिल्ली के शालीमार बाग में शीश महल की बहाली एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जो भारत की समृद्ध मुगलकालीन विरासत के संरक्षण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह परियोजना न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक को नया जीवन देती है, बल्कि इसे एक ऐसे सार्वजनिक स्थान में बदल देती है जहां लोग इतिहास को अनुभव कर सकते हैं और आधुनिक सुविधाओं का आनंद ले सकते हैं। 'विकास भी, विरासत भी' के सिद्धांत पर आधारित यह पहल, दिल्ली के सांस्कृतिक परिदृश्य को और समृद्ध करेगी और पर्यटकों के लिए एक नया आकर्षण केंद्र बनेगी।