लिंगराज मंदिर: भुवनेश्वर का ज्योतिर्लिंगों का राजा, जहां महादेव को तुलसी दल अर्पित होता हैफोटो : आईएएनएस
नई दिल्ली: सावन का पावन महीना चल रहा है। ऐसे में देवों के देव महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए शिवालयों में भक्तों की रोज लंबी कतार लग रही है। वहीं, शिव के प्रमुख धाम जिन्हें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है, यहां पहुंचने वाले शिवभक्तों की संख्या में भी खासी वृद्धि देखी जा रही है। ऐसे में इस पावन महीने में हम आपको शिव के एक ऐसे धाम के बारे में बताएंगे जिन्हें ज्योतिर्लिंगों के राजा के रूप में पूजा जाता है। इसके साथ ही यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है, जहां महादेव को तुलसी दल अर्पित किया जाता है, जो इसे अत्यंत विशेष बनाता है।
तुलसी दल अर्पित करने की अनूठी परंपरा
वैसे आपको बता दें कि महादेव की पूजा में तुलसी दल का प्रयोग सामान्यतः वर्जित है। लेकिन, यह मात्र एक ऐसा मंदिर है, जहां महादेव को तुलसी का दल भी भोग लगाया जाता है। ज्योतिर्लिंग के राजा के रूप में पूजे जाने वाले महादेव का यह मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है और इसे भगवान लिंगराज का मंदिर कहा जाता है।
इस मंदिर में भगवान शिव को बेलपत्र के साथ तुलसी दल भी अर्पित किया जाता है। इसका कारण यह है कि यहां भगवान शिव और विष्णु एक साथ 'हरिहर' रूप में विराजते हैं। 'हरि' का मतलब है विष्णु और 'हर' का मतलब शिव, ऐसे में यहां महादेव के साथ ही भगवान विष्णु की भी पूजा होती है, जिससे यह मंदिर शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों के लिए पवित्र है।
लिंगराज मंदिर: इतिहास और महत्व
लिंगराज शब्द का अर्थ है "लिंगम के राजा", जो द्वादश ज्योतिर्लिंग के राजा हैं। ऐसे में ज्योतिर्लिंग के राजा के रूप में यहां इनकी पूजा भी होती है। इन्हें 'त्रिभुवनेश्वर' भी कहा जाता है और इसी से इस शहर का नाम भुवनेश्वर पड़ा, ऐसा माना जाता है। भुवनेश्वर, जिसे "भारत का मंदिर शहर" भी कहा जाता है, में स्थित लिंगराज मंदिर यहां का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है।
इस मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण 10वीं और 11वीं शताब्दी के बीच सोमवंशी राजा ययाति प्रथम ने करवाया था। इस लिंगराज मंदिर की महत्ता के पीछे की वजह है कि यहां विराजे लिंगराज स्वयंभू (स्वयं प्रकट) हैं। मंदिर में लिंगराज के रूप में विराजित स्वयंभू शिवलिंग का आकार बेहद खास है; इसका व्यास 8 फुट और ऊंचाई 8 इंच है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।
मंदिर प्रांगण और वास्तुकला
इस मंदिर का प्रांगण इतना विशाल है कि इसमें छोटे-बड़े 150 मंदिर हैं। लिंगराज मंदिर के इस विशाल प्रांगण में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के मंदिर के साथ ही भगवान शिव के कुल 108 मंदिर स्थित हैं, जो इसकी भव्यता और धार्मिक महत्व को बढ़ाते हैं। लिंगराज मंदिर की मुख्य संरचना की ऊंचाई 180 फीट है, जो भगवान जगन्नाथ के पुरी मंदिर से भी ज्यादा ऊंचा है। इसकी मनमोहक वास्तुकला और जटिल नक्काशी कलिंग वास्तुकला शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसे 1984 से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो इसके वैश्विक महत्व को दर्शाता है।
मरीची कुंड की मान्यता
मंदिर के प्रांगण में एक छोटा सा कुआं है, जिसे मरीची कुंड कहा जाता है। इसको लेकर मान्यता है कि जिस महिला को संतान से जुड़ी परेशानियां हैं, वह यहां स्नान करे तो उन्हें परेशानियों से मुक्ति मिलती है और संतान की प्राप्ति होती है। यह कुंड भक्तों के लिए एक आस्था का केंद्र है।
पौराणिक उल्लेख और आसपास के मंदिर
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का वर्णन ब्रह्म पुराण के साथ स्कंद पुराण और कपिला संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जो इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व को प्रमाणित करता है। इस मंदिर का एक रोचक पहलू यह है कि यह हिंदू धर्म के दो प्रमुख संप्रदायों शैव और वैष्णव के मिलन का प्रतीक है, जो धार्मिक सद्भाव का संदेश देता है।
लिंगराज मंदिर के पास प्रसिद्ध मुक्तेश्वर मंदिर, राजरानी मंदिर, अनंत वासुदेव मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर और परशुरामेश्वर मंदिर स्थित हैं। ये सभी मंदिर हिंदू धर्म के लिए पवित्र हैं और अपनी मनमोहक वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं, जो भुवनेश्वर को वास्तव में "मंदिरों का शहर" बनाते हैं।
निष्कर्ष
ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित भगवान लिंगराज का मंदिर न केवल एक ऐतिहासिक और स्थापत्य का चमत्कार है, बल्कि यह एक अनूठा धार्मिक स्थल भी है जहां भगवान शिव और विष्णु का हरिहर स्वरूप एक साथ पूजा जाता है। तुलसी दल अर्पित करने की इसकी विशेष परंपरा, विशाल प्रांगण और पौराणिक महत्व इसे भक्तों के लिए एक अत्यंत पवित्र और आकर्षक गंतव्य बनाते हैं। सावन के महीने में इस मंदिर के दर्शन करना भक्तों के लिए एक विशेष अनुभव होता है, जो उन्हें आध्यात्मिक शांति और भगवान का आशीर्वाद प्रदान करता है।