जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव: 145 सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को सौंपा ज्ञापन
नेशनल डेस्क: कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। संसद के मानसून सत्र का आगाज होते ही 145 लोकसभा सांसदों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपा है। सांसदों ने संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत यह कदम उठाया है, जो किसी न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया से संबंधित है। यह घटनाक्रम न्यायपालिका में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
विभिन्न दलों का समर्थन: 145 सांसदों ने किए हस्ताक्षर
जानकारी के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत लोकसभा स्पीकर को सौंपे गए ज्ञापन को कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, जेडीएस, जनसेना पार्टी, एजीपी, शिवसेना (शिंदे), एलजेएसपी, एसकेपी, सीपीएम सहित विभिन्न दलों का समर्थन प्राप्त है। यह दर्शाता है कि यह मुद्दा राजनीतिक स्पेक्ट्रम में व्यापक चिंता का विषय बन गया है। जिन 145 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें प्रमुख नाम शामिल हैं जैसे अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राहुल गांधी, राजीव प्रताप रूडी, पीपी चौधरी, सुप्रिया सुले और केसी वेणुगोपाल। इतनी बड़ी संख्या में सांसदों का एक साथ आना इस मामले की गंभीरता को रेखांकित करता है।
क्या है 'कैश कांड'?
उल्लेखनीय है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास से 15 मार्च 2025 को 500 रुपए के जले और अधजले नोट मिले थे। इसका एक वीडियो भी खूब वायरल हुआ था, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं। इसके बाद न्यायमूर्ति वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उन्होंने इन आरोपों से इनकार किया और इसे एक साजिश बताया था। हालांकि, इस घटना ने न्यायपालिका की छवि पर सवाल खड़े कर दिए थे और एक विस्तृत जांच की मांग उठने लगी थी।
आगे की प्रक्रिया: संसद में जांच
अब इस मामले की गंभीरता को देखते हुए संसद इन आरोपों की जांच करेगी। महाभियोग प्रस्ताव के तहत आगे की प्रक्रिया संसद में विचार-विमर्श और जांच के बाद तय की जाएगी। महाभियोग की प्रक्रिया एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें आरोपों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया जाता है, और यदि समिति आरोपों को सही पाती है, तो संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना होता है।
मुख्य न्यायाधीश की आंतरिक जांच और तबादला
बता दें कि इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने 22 मार्च को एक आंतरिक जांच शुरू की थी और जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए हाई कोर्ट के तीन न्यायाधीशों का पैनल भी बनाया था। यह आंतरिक जांच न्यायपालिका की अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जस्टिस यशवंत वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट करने की सिफारिश की थी। इसके बाद सरकार ने इस सिफारिश पर अपनी मुहर लगाई और वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में कार्यभार संभालने के लिए कहा गया था। 5 अप्रैल को जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की थी। यह तबादला एक प्रशासनिक कदम था, लेकिन अब महाभियोग प्रस्ताव के साथ मामला एक नए चरण में प्रवेश कर गया है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ 145 लोकसभा सांसदों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव का ज्ञापन सौंपना भारत की न्यायपालिका में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटना है। 'कैश कांड' के आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, संसद में इस पर होने वाली चर्चा और जांच देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगी। यह देखना बाकी है कि यह प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ती है और इसका भारतीय न्याय प्रणाली पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।