भारत का लक्ष्य 2030 तक 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था, सरकार प्रतिबद्ध: डॉ. जितेंद्र सिंह
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 2030 तक भारत में 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था (Bio-economy) बनाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोमवार को 'विश्व जैव उत्पाद दिवस' के अवसर पर यह बात कही। उन्होंने भारत के जैव प्रौद्योगिकी मिशन में व्यापक सार्वजनिक समझ और समावेशी भागीदारी का आह्वान किया, यह रेखांकित करते हुए कि देश की जैव अर्थव्यवस्था में प्रत्येक भारतीय एक हितधारक है।
भारत का जैव प्रौद्योगिकी तंत्र: एक दशक में अभूतपूर्व वृद्धि
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के जैव प्रौद्योगिकी तंत्र में हुई अभूतपूर्व प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एक दशक पहले लगभग 50 स्टार्टअप्स से बढ़कर आज भारत में लगभग 11,000 जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप्स हो गए हैं। यह छलांग नीतियों के समर्थन और संस्थागत भागीदारी से संभव हुई है, जो सरकार की इस क्षेत्र को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह वृद्धि भारत को वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर रही है।
बायोई3 नीति: पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास और समानता
हाल ही में लॉन्च की गई 'बायोई3 नीति' का उल्लेख करते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास और समानता के साथ जैव अर्थव्यवस्था लक्ष्यों को संरेखित करके भारत को टिकाऊ जैव विनिर्माण (Sustainable Bio-manufacturing) में अग्रणी बनाने के लिए आधार तैयार करती है। यह नीति केवल आर्थिक विकास पर ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और समाज में समानता सुनिश्चित करने पर भी जोर देती है। यह एक समग्र दृष्टिकोण है जो जैव प्रौद्योगिकी को सतत विकास के इंजन के रूप में देखता है।
जैव उत्पादों का बढ़ता दायरा: प्रयोगशालाओं से आजीविका तक
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि जैव उत्पाद अब केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि वे हमारे दैनिक जीवन और आजीविका का एक अभिन्न अंग बन रहे हैं। उन्होंने कहा, "बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग से लेकर पर्यावरण के अनुकूल व्यक्तिगत देखभाल तक, ग्रामीण रोजगार से लेकर हरित नौकरियों तक, वे आजीविका के साधन बन रहे हैं।" यह दर्शाता है कि जैव प्रौद्योगिकी का प्रभाव केवल उच्च-स्तरीय अनुसंधान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह जमीनी स्तर पर रोजगार सृजन और पर्यावरणीय समाधान भी प्रदान कर रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि भविष्य की औद्योगिक क्रांति जैव अर्थव्यवस्था द्वारा संचालित होगी और उनका मानना है कि भारत इसमें अग्रणी भूमिका निभाएगा। यह भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं में सरकार के विश्वास को दर्शाता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का महत्व
केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को “गेम-चेंजर” करार दिया। उन्होंने कहा कि एनईपी छात्रों को लचीलेपन के साथ रुचि के विषयों को आगे बढ़ाने की अनुमति देगा, जिससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अधिक युवा आकर्षित होंगे। यह नीति छात्रों को अपनी पसंद के अनुसार विषयों का चुनाव करने की स्वतंत्रता देती है, जिससे वे जैव प्रौद्योगिकी जैसे उभरते क्षेत्रों में अपनी रुचि विकसित कर सकें।
डीबीटी और बीआईआरएसी की भूमिका
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सचिव और बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (बीआईआरएसी) के अध्यक्ष डॉ. राजेश एस. गोखले ने बायोई3 नीति को क्रियान्वित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताया। इनमें शामिल हैं:
पायलट विनिर्माण के लिए समर्थन: नए जैव उत्पादों और प्रक्रियाओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पायलट परियोजनाओं को बढ़ावा देना।
क्षेत्र-विशिष्ट नवाचार मिशनों के लिए समर्थन: जैव प्रौद्योगिकी के विशिष्ट क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए मिशन-आधारित दृष्टिकोण अपनाना।
अनुसंधान से लेकर बाजार तक पाइपलाइन को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि प्रयोगशालाओं में होने वाले अनुसंधान को सफलतापूर्वक उत्पादों और सेवाओं में बदला जा सके जो बाजार तक पहुंचें।
उन्होंने स्केलेबल बायोटेक समाधानों के लिए शिक्षाविदों, स्टार्टअप्स और उद्योगों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने में डीबीटी की भूमिका के बारे में भी चर्चा की। यह सहयोग नवाचार को गति देगा और जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करेगा।
निष्कर्ष
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का बयान 2030 तक 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था बनाने के भारत के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप्स की तेजी से बढ़ती संख्या, बायोई3 नीति और राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे सहायक ढांचे के साथ, भारत एक टिकाऊ और समावेशी जैव अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए तैयार है। यह पहल न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता और ग्रामीण आजीविका में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी, जिससे भारत वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी परिदृश्य में एक अग्रणी भूमिका निभाएगा।