भारत बंद 9 जुलाई: 25 करोड़ कर्मचारी हड़ताल पर, जानें क्यों और क्या यह संवैधानिक है?(File Photo | Thetrendingpeople)
नई दिल्ली: सार्वजनिक सेवा क्षेत्रों के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी बुधवार, 9 जुलाई को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल में अपनी भागीदारी के लिए तैयार हैं। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगियों के गठबंधन ने सरकार की 'मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों' के विरोध में 'भारत बंद' का आह्वान किया है। यह व्यापक हड़ताल देश के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती है, जिसमें बैंकिंग, बीमा, कोयला खनन, डाक और निर्माण जैसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवा क्षेत्र शामिल हैं।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की अमरजीत कौर ने बताया, "हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के भाग लेने की उम्मीद है। देश भर में किसान और ग्रामीण कर्मचारी भी विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे।" जारी एक औपचारिक बयान के अनुसार, इसमें 'राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल को सफल बनाने' पर जोर दिया गया है। साथ ही औपचारिक और अनौपचारिक/असंगठित अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों की यूनियनों ने सक्रिय रूप से तैयारी शुरू कर दी है।
भारत बंद के क्या हैं मायने? संवैधानिकता पर बहस
देश में बंद, हड़ताल, आंदोलन बहुत आम हैं, लेकिन इनकी संवैधानिकता अभी भी भ्रामक है। कई बार इन्हें संघ और यूनियन बनाने के मौलिक अधिकार यानी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(सी) से जोड़ दिया जाता है। लेकिन यह कितना सही है?
सुप्रीम कोर्ट का रुख: सुप्रीम कोर्ट ने कई बार माना है कि हड़ताल असंवैधानिक नहीं हो सकती। पहले जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने एक फैसले में कहा था, "हड़ताल कभी असंवैधानिक नहीं हो सकती। विरोध करने का अधिकार एक मूल्यवान अधिकार है। हम हड़ताल को असंवैधानिक कैसे कह सकते हैं?"
बंद क्या है? बंद विरोध का एक रूप है जिसका उपयोग मुख्य रूप से भारत जैसे दक्षिण एशियाई देशों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाता है। यह हड़ताल से समानता रखता है। बंद के दौरान एक समुदाय आम हड़ताल भी कर सकता है। यह सिविल अवज्ञा का एक रूप है।
भारतीय संविधान और विरोध का अधिकार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल है, जो भारतीय नागरिकों को यूनियनों से जुड़ने का अधिकार देता है। संविधान का अनुच्छेद 19 नागरिकों के अधिकारों की तुलना में राज्य की शक्तियों को भी प्रतिबंधित करता है। यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों को अपने विचार, राय, विश्वास, धारणा और दृढ़ विश्वास व्यक्त करने की स्वतंत्रता देता है। एक तरह से यह किसी भी नागरिक को मौखिक रूप से, लिखित रूप से, चित्र या किसी अन्य तरीके से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार देता है।
बंद, हड़ताल या हड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट और सरकार का रुख (ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य):
- कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य (1961): सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि अनुच्छेद 19(1)(सी) की उदार व्याख्या से भी यह निष्कर्ष निकलेगा कि ट्रेड यूनियनों को हड़ताल करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
- अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ मामला: हालांकि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हड़ताल करने के अधिकार के साथ 19(1) द्वारा गारंटीकृत संघों के गठन के विचार को खारिज कर दिया था।
- टी.के. रंगराजन बनाम तमिलनाडु सरकार मामला: बाद में कोर्ट के कई फैसलों में यह भी कहा गया कि हड़ताल करने के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। इस मामले में कोर्ट ने कहा कि सामूहिक हड़ताल कानूनी नहीं हो सकती। इसने कहा, "सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल करने का कोई कानूनी, नैतिक या न्यायसंगत अधिकार नहीं है।"
- बी.आर. सिंह और अन्य बनाम भारत संघ मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हड़ताल करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, हालांकि, सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित किए बिना संघ बनाने के अधिकार को एक अधिकार के रूप में गिना जा सकता है।
9 जुलाई को भारत बंद क्यों? प्रमुख मांगें
पीटीआई (PTI) के मुताबिक, बंद में शामिल होने जा रहे लोगों की सरकार से कई प्रमुख मांगें हैं:
- बेरोजगारी दूर करना: देश में बढ़ती बेरोजगारी को संबोधित करने की मांग।
- स्वीकृत पदों पर भर्ती करना: विभिन्न सरकारी विभागों में रिक्त पड़े स्वीकृत पदों पर तत्काल भर्ती करने की मांग।
- अधिक नौकरियों का सृजन करना: अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नए रोजगार के अवसर पैदा करने पर जोर।
- मनरेगा श्रमिकों के कार्य दिवस और पारिश्रमिक में वृद्धि करना: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत श्रमिकों के लिए कार्य दिवसों की संख्या बढ़ाने और उनके पारिश्रमिक में वृद्धि करने की मांग।
- शहरी क्षेत्रों के लिए समान कानून बनाना: ग्रामीण क्षेत्रों की तर्ज पर शहरी क्षेत्रों में भी रोजगार गारंटी और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित समान कानून बनाने की मांग।
अमरजीत कौर का कहना है कि सरकार नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए ELI (रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन) योजना लागू करने में व्यस्त है, लेकिन यह श्रमिकों की मूल मांगों को पूरा नहीं करती है। यूनियनों का तर्क है कि सरकार की नीतियां कॉर्पोरेट समर्थक हैं और वे मजदूरों तथा किसानों के हितों की अनदेखी कर रही हैं।
9 जुलाई को प्रस्तावित 'भारत बंद' सरकार की आर्थिक और श्रम नीतियों के खिलाफ एक व्यापक विरोध प्रदर्शन है। 25 करोड़ से अधिक कर्मचारियों की भागीदारी के अनुमान के साथ, यह हड़ताल देश भर में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है। बंद की संवैधानिकता पर कानूनी बहस जारी है, लेकिन ट्रेड यूनियनों का मानना है कि विरोध करने का अधिकार एक मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत है। यह देखना बाकी है कि यह राष्ट्रव्यापी हड़ताल सरकार पर क्या प्रभाव डालती है और क्या यह श्रमिकों और किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए नीतिगत बदलावों को प्रेरित करती है।