ब्रिक्स संसदीय मंच से भारत का स्पष्ट संदेश: शशि थरूर ने पाकिस्तान को चेताया, आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई पूर्व शर्त
ब्रासीलिया, 3 जून (The Trending People) – वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ भारत का मुखर रुख एक बार फिर स्पष्ट हुआ है। ब्राजील में आयोजित ब्रिक्स संसदीय मंच में भाग लेने पहुँचे कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने पाकिस्तान को लेकर बेहद साफ और सख्त स्थिति प्रस्तुत की। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि भारत तभी पाकिस्तान के साथ बातचीत करेगा जब वह अपनी धरती पर मौजूद आतंकवादी ढाँचों को खत्म करने के लिए ठोस और निर्णायक कार्रवाई करेगा। थरूर का यह बयान भारत की उस दीर्घकालिक नीति को रेखांकित करता है, जिसमें आतंकवाद और वार्ता को एक साथ न चलने देने पर जोर दिया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत लगातार यह संदेश देता रहा है कि सीमा पार आतंकवाद किसी भी द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण के लिए एक बड़ी बाधा है। शशि थरूर जैसे अनुभवी राजनयिक और सांसद द्वारा ब्रिक्स जैसे महत्वपूर्ण बहुपक्षीय मंच पर इस बात को दोहराना, भारत की आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धता और इस मुद्दे पर उसकी दृढ़ता को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि भारत अब केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से वैश्विक समुदाय को आतंकवाद के खतरे और पाकिस्तान की भूमिका के बारे में अवगत करा रहा है।
भाषा नहीं, सोच की समस्या: थरूर का तार्किक विश्लेषण
शशि थरूर ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की जटिलता को एक अनूठे दृष्टिकोण से समझाया। उन्होंने कहा कि "हम पाकिस्तान से हिंदी, अंग्रेज़ी या पंजाबी में बात कर सकते हैं। लेकिन असली दिक्कत ये है कि वो शांति और सभ्यता की हमारी सोच को साझा नहीं करता।" यह टिप्पणी केवल संवाद के माध्यम के बारे में नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान की मूलभूत विचारधारा और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाती है। थरूर का निहितार्थ यह है कि जब तक पाकिस्तान का आंतरिक वैचारिक ढांचा, जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के बजाय संघर्ष और आतंकवाद को बढ़ावा देता है, नहीं बदलता, तब तक किसी भी भाषा में की गई बातचीत निरर्थक होगी। यह दिखाता है कि भारत मानता है कि मुद्दा संचार की कमी का नहीं, बल्कि मानसिकता और इरादों का है। जब एक देश शांति और सभ्यता के मूलभूत सिद्धांतों का सम्मान नहीं करता, तो संवाद की पुल की नींव ही कमजोर हो जाती है। यह बिंदु भारत की कूटनीति में एक महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करता है, जहाँ केवल सतह पर समाधानों की तलाश नहीं की जाती, बल्कि समस्या की जड़ों तक पहुंचा जाता है।
आतंकवाद पर कार्रवाई: बातचीत की एकमात्र पूर्व शर्त
थरूर ने बिना किसी लाग-लपेट के भारत की प्राथमिक मांग को दोहराया: "भारत तभी बातचीत करेगा जब पाकिस्तान अपने देश में मौजूद हर आतंकी संगठन और ट्रेनिंग कैंप के खिलाफ कार्रवाई करेगा।" यह शर्त कोई नई नहीं है, बल्कि दशकों से भारत की विदेश नीति का एक अभिन्न अंग रही है। 'हर आतंकी संगठन और ट्रेनिंग कैंप' पर कार्रवाई की मांग यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी आतंकी समूह पाकिस्तान की धरती से भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम न दे सके। यह मांग केवल दिखावटी कार्रवाई की नहीं, बल्कि वास्तविक और सत्यापन योग्य कदम उठाने की है, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले सभी आतंकी ढांचे पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएं।
पृष्ठभूमि: भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति
भारत आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। मुंबई 26/11, संसद पर हमला, उरी और पुलवामा जैसे कई बड़े आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के कारण भारत ने पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की लगातार मांग की है। भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति अब केवल रक्षात्मक नहीं रही है, बल्कि इसमें सक्रिय, निवारक और दंडात्मक उपाय भी शामिल हैं, जैसा कि उरी सर्जिकल स्ट्राइक (2016) और बालाकोट हवाई हमले (2019) से स्पष्ट होता है। थरूर का बयान इसी दृढ़ता को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर दोहराता है, यह स्पष्ट करता है कि भारत की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। आतंकवाद को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान द्वारा कोई भी आधा-अधूरा प्रयास स्वीकार्य नहीं होगा। यह भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है कि वह तब तक वार्ता नहीं करेगा जब तक कि जमीनी स्तर पर ठोस, अपरिवर्तनीय और सत्यापन योग्य कार्रवाई नहीं की जाती।
पाकिस्तान पर सवाल: निर्दोषिता का दावा और आतंकियों को पनाह
थरूर ने एक तीखा और विचारोत्तेजक प्रश्न उठाया: "अगर पाकिस्तान खुद को पाक-साफ मानता है, तो फिर वहां आतंकियों को शरण क्यों मिलती है? उन्हें ट्रेनिंग और हथियार कौन देता है?" यह सवाल सीधे तौर पर पाकिस्तान के उस दावे पर हमला करता है जिसमें वह खुद को आतंकवाद का शिकार बताता है, जबकि भारत सहित कई देश उसे सीमा पार आतंकवाद का प्रायोजक मानते हैं। थरूर का यह प्रश्न पाकिस्तान के दोहरे रवैये को उजागर करता है – एक ओर वैश्विक मंच पर आतंकवाद से लड़ने का दावा करना, और दूसरी ओर अपनी धरती पर आतंकी समूहों को सुरक्षित पनाहगाह और संसाधन उपलब्ध कराना। यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर संदेह करने के लिए प्रेरित करता है। इसका निहितार्थ यह है कि पाकिस्तान के दावे तब तक खोखले रहेंगे जब तक वह अपने क्षेत्र में सक्रिय आतंकी तत्वों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं करता। यह एक ऐसा विरोधाभास है जिसे भारत लंबे समय से उजागर करता आ रहा है।
'हजार घाव' देने का सपना छोड़ दे पाकिस्तान: भारत की अदम्य शक्ति
भारत को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान की कथित 'हजार घाव' की रणनीति पर टिप्पणी करते हुए थरूर ने स्पष्ट किया, "पाकिस्तान भारत को कमजोर करने के लिए बार-बार चोट पहुंचाना चाहता है, लेकिन भारत इतना कमजोर नहीं कि टूट जाए।" यह कथन पाकिस्तान की उस सैन्य सिद्धांत को संदर्भित करता है जो भारत को छोटे-छोटे हमलों और आतंकवाद के माध्यम से लगातार अस्थिर करने का प्रयास करता है, ताकि वह अंततः कमजोर होकर बिखर जाए। थरूर का यह बयान भारत की अदम्य शक्ति,韧शीलता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। यह पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देता है कि उसकी यह रणनीति विफल रही है और भविष्य में भी विफल रहेगी। भारत ने इन हमलों का सामना करते हुए अपनी आंतरिक स्थिरता और विकास पथ को बनाए रखा है, और आतंकवाद से निपटने की अपनी क्षमता को लगातार मजबूत किया है। यह कथन न केवल भारत की सैन्य ताकत को दर्शाता है, बल्कि उसकी सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को भी उजागर करता है, जिससे पाकिस्तान के 'हजार घाव' का सपना एक मृगतृष्णा साबित होता है। यह एक मजबूत और आत्मविश्वास से भरा भारत है जो अब ऐसी चुनौतियों के आगे झुकने वाला नहीं है।
सोच बदली होनी चाहिए: बातचीत की अंतिम शर्त
शशि थरूर ने पाकिस्तान के साथ भविष्य में किसी भी संभावित बातचीत के लिए एक स्पष्ट और गैर-समझौतावादी शर्त रखी: "बातचीत तभी संभव है जब पाकिस्तान सभ्य, शांतिप्रिय और आतंक-विरोधी सोच अपनाए।" यह केवल औपचारिक वार्ता शुरू करने की बात नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान से एक मौलिक बदलाव की उम्मीद करती है – उसकी मानसिकता, उसकी रणनीतिक संस्कृति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रति उसके दृष्टिकोण में परिवर्तन। 'सभ्य' और 'शांतिप्रिय' का अर्थ है कि पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करना चाहिए, पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने चाहिए और अपनी विदेश नीति में बल प्रयोग या आतंकवाद का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए। 'आतंक-विरोधी सोच' का मतलब है कि पाकिस्तान को आतंकवाद को राज्य नीति के एक साधन के रूप में त्यागना होगा और वास्तव में आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक जिम्मेदार भागीदार बनना होगा। जब तक यह मौलिक बदलाव नहीं आता, तब तक भारत के लिए किसी भी अर्थपूर्ण और उत्पादक बातचीत में शामिल होना संभव नहीं होगा। यह भारत की कूटनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है जो केवल वार्ता के लिए वार्ता में विश्वास नहीं करती, बल्कि सार्थक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करती है।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का केंद्रित अभियान
शशि थरूर ने ब्रिक्स संसदीय मंच पर भारत के आतंकवाद विरोधी संदेश को मजबूती से प्रस्तुत किया, जो भारत के व्यापक वैश्विक अभियान का हिस्सा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत इस समय पाकिस्तान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों और आतंकवाद के ढांचे को खत्म करने में पाकिस्तान की विफलता पर गहनता से केंद्रित है। यह दर्शाता है कि भारत अब पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य करने की किसी भी पहल से पहले आतंकवाद के मुद्दे के स्थायी समाधान को प्राथमिकता दे रहा है।
थरूर ने यह भी बताया कि उन्होंने हाल ही में गुयाना, पनामा, कोलंबिया और ब्राजील जैसे देशों में भारत के आतंकवाद विरोधी संदेश को प्रभावी ढंग से रखा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सभी देशों ने भारत के रुख को "समर्थन" भी जताया। यह एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि है, क्योंकि यह वैश्विक समुदाय में आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई के लिए बढ़ती सहमति और समर्थन को दर्शाता है। विभिन्न महाद्वीपों के देशों से समर्थन प्राप्त करना यह साबित करता है कि आतंकवाद का मुद्दा अब केवल भारत की द्विपक्षीय चिंता नहीं है, बल्कि एक वैश्विक चुनौती है जिस पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। यह समर्थन भारत के वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों को और मजबूत करता है और पाकिस्तान पर अपनी धरती से आतंकवाद को खत्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाता है।
ब्रिक्स में समर्थन की संभावनाएं और आगे की कूटनीतिक यात्रा
जब उनसे पूछा गया कि क्या ब्रिक्स जैसे मंच पर भारत को इस मुद्दे पर सीधा समर्थन मिलेगा, तो थरूर ने एक व्यावहारिक कूटनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, "ब्रिक्स का अपना एजेंडा होता है। हो सकता है वे समर्थन दें, पर यह तय नहीं है कि वे सीधे भारत-पाक मसले पर कोई बयान जारी करें।" यह स्वीकारोक्ति बहुपक्षीय मंचों की जटिलताओं को दर्शाती है, जहाँ सदस्य देश अक्सर आम सहमति वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और द्विपक्षीय विवादों पर सीधे बयान जारी करने से बचते हैं। हालांकि, ब्रिक्स देशों के बीच आतंकवाद के खिलाफ सामान्य सिद्धांत और सहयोग पर व्यापक सहमति है, जो भारत के संदेश को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे सकता है।
ब्रिक्स मंच पर अपनी भागीदारी के बाद, थरूर के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल अब संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर रवाना होगा। इस यात्रा का उद्देश्य भारत के आतंकवाद विरोधी रुख को और अधिक देशों तक पहुँचाना है, जिससे आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता मजबूत हो सके। यह दर्शाता है कि भारत लगातार विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने आतंकवाद विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है, ताकि आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों पर वैश्विक दबाव बनाया जा सके और आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों को समाप्त करने के लिए एक मजबूत अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन का निर्माण किया जा सके। यह कूटनीतिक निरंतरता और दृढ़ता भारत की सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष: वैश्विक पटल पर भारत की दृढ़ता और स्पष्टता
शशि थरूर के ब्रिक्स संसदीय मंच पर दिए गए बयान भारत की विदेश नीति की दृढ़ता और स्पष्टता को दर्शाते हैं। ये बयान इस बात पर जोर देते हैं कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत कोई समझौता नहीं करेगा, और पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंधों की बहाली आतंकवाद के पूर्ण उन्मूलन पर निर्भर करती है। 'भाषा नहीं, सोच की समस्या' और 'हजार घाव देने का सपना छोड़ दे पाकिस्तान' जैसे बयान भारत के आत्मविश्वास और आतंकवाद से निपटने की उसकी बढ़ती क्षमता को दर्शाते हैं।
पाठक के लिए मुख्य निष्कर्ष:
यह स्पष्ट है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी आतंकवाद विरोधी नीति को मजबूती से आगे बढ़ा रहा है। शशि थरूर का बयान एक संदेश है कि भारत अब पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए तैयार नहीं है जब तक कि वह अपनी धरती पर सभी आतंकवादी ढाँचों को पूरी तरह से नष्ट नहीं करता। यह भारत की आतंकवाद के प्रति 'शून्य सहिष्णुता' की नीति का प्रतिबिंब है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मिल रहा समर्थन भारत के रुख को मजबूती प्रदान करता है, और पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने के लिए दबाव बढ़ाता रहेगा। भारत की यह कूटनीति न केवल उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखती है, बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाने का भी प्रयास करती है।