सुप्रीम कोर्ट ने एडीजीपी जयराम के निलंबन पर तमिलनाडु सरकार से सवाल पूछे
नई दिल्ली – देश के उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को तमिलनाडु सरकार से एडीजीपी एचएम जयराम के निलंबन पर तीखे सवाल पूछे। जयराम वह अधिकारी हैं जिन्हें अपहरण के एक मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने हिरासत में लेने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के इस कदम पर अपनी नाराजगी व्यक्त की।
निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
पीठ को राज्य सरकार के वकील ने सूचित किया कि अधिकारी को हिरासत में लिया गया था और मंगलवार शाम 5 बजे रिहा कर दिया गया। हालांकि, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) जयराम के वकील ने अदालत को बताया कि उन्हें पुलिस ने रिहा कर दिया है, लेकिन सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया है।
इस पर, पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "वह एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं। उन्हें निलंबित करने की आपको क्या जरूरत थी? इस तरह के आदेश चौंकाने वाले और मनोबल गिराने वाले हैं।" न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के वकील से कहा कि वे इस संबंध में निर्देश मांगें और निलंबन रद्द करने के बारे में बृहस्पतिवार तक अदालत को अवगत कराएं। यह टिप्पणी राज्य सरकार के निर्णय पर न्यायालय की असहमति को दर्शाती है और अधिकारियों के मनोबल पर ऐसे कदमों के संभावित नकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डालती है।
मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिका
एडीजीपी एचएम जयराम ने मद्रास उच्च न्यायालय के 16 जून के निर्देश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उच्च न्यायालय के उस निर्देश में पुलिस को उन्हें हिरासत में रखने के लिए कहा गया था। मंगलवार को शीर्ष अदालत ने अपहरण के एक मामले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा जयराम की गिरफ्तारी के आदेश के खिलाफ उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी।
पुलिस अधिकारी के वकील ने शीर्ष अदालत में दलील दी कि मद्रास उच्च न्यायालय का गिरफ्तारी का आदेश "एक इकबालिया बयान पर आधारित" था। जयराम ने अधिवक्ता राजेश सिंह चौहान के माध्यम से याचिका दाखिल कर यह तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने 16 जून को बिना कोई विस्तृत कारण बताए और केवल दो आरोपियों के कथित बयानों के आधार पर उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था। यह दलील जयराम के खिलाफ दिए गए आदेश की वैधता और प्रक्रियात्मक औचित्य पर सवाल उठाती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप न्यायपालिका के अंदरूनी मामलों और प्रशासनिक निर्णयों पर भी रोशनी डालता है।