उपराष्ट्रपति धनखड़ का चेतावनी भरा संबोधन: “भारत को जनसांख्यिकीय आक्रमण से खतरा”, IIPS दीक्षांत समारोह में बोले तीखे शब्द
नई दिल्ली – अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) के दीक्षांत समारोह में बुधवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश के समक्ष खड़े गंभीर सामाजिक और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बात की। उन्होंने अवैध प्रवासन, जबरन धर्मांतरण और जनसंख्या संतुलन में कृत्रिम बदलाव को “जनसांख्यिकीय आक्रमण” बताया।
धनखड़ का पूरा भाषण भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, सांस्कृतिक एकता और सभ्यतागत पहचान के इर्द-गिर्द बुना गया था। उन्होंने छात्रों और शोधकर्ताओं से आह्वान किया कि वे अपने शोध से समाज को जागरूक करें और नीतिगत सुधारों का मार्ग प्रशस्त करें।
“शक्ति से ही शांति टिकाऊ बनती है”
अपने भाषण की शुरुआत में उपराष्ट्रपति ने लोकतंत्र में शांति की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “शांति लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। लेकिन यह शांति तभी टिक सकती है जब हमारे पास ताकत हो।”
उन्होंने आगे कहा, “इतिहास गवाह है कि सिर्फ तैयार रहने से ही हम आक्रमणों को रोक सकते हैं। भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया है — अब आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, उसे जड़ से समाप्त किया जाएगा।”
“जनसांख्यिकीय आक्रमण” और अवैध प्रवासन पर गंभीर चिंता
धनखड़ ने कहा कि भारत में अवैध प्रवासन सिर्फ संख्या का मामला नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक संतुलन के साथ खिलवाड़ है।
उन्होंने चेतावनी दी, “जब जनसंख्या संतुलन प्राकृतिक विकास से नहीं बल्कि किसी सुनियोजित साजिश के तहत बदला जाता है, तो यह सिर्फ प्रवासन नहीं, जनसांख्यिकीय आक्रमण होता है।”
उन्होंने दावा किया, “भारत इससे पीड़ित है। हमारे देश में लाखों अवैध घुसपैठिए हैं। क्या हम उन्हें झेल सकते हैं? हमें ऐसे लोग चाहिए जो भारतीयता में विश्वास रखते हों, राष्ट्र के लिए जीने-मरने का जज्बा रखते हों।”
धर्मांतरण के ज़रिए “आस्था का हथियारीकरण”
धनखड़ ने जबरन या लालच देकर किए जा रहे धर्मांतरण को गहरी चिंता का विषय बताया और इसे “आस्था का हथियारीकरण” करार दिया।
उन्होंने कहा, “जहां विश्वास को लालच से बदला जाए, वह सच्ची आस्था नहीं होती। ये घटनाएं अब अपवाद नहीं रहीं, ये एक एजेंडे के तहत हो रही हैं।”
उन्होंने बल दिया कि हर व्यक्ति को अपना विश्वास चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन यह चयन प्रलोभन के आधार पर नहीं होना चाहिए।
जातिगत जनगणना को बताया “ऐतिहासिक निर्णय”
उपराष्ट्रपति ने केंद्र सरकार द्वारा आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल किए जाने के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने इसे “शासन की दिशा में क्रांतिकारी कदम” बताया।
उन्होंने कहा, “अगर समाज में असमानताएं हैं तो वे अन्याय को जन्म देती हैं। इसलिए ऐसी गणना से नीति निर्माण में मदद मिलेगी और समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा।”
IIPS जैसे संस्थानों को उन्होंने सुझाव दिया कि वे इस डेटा का गहराई से विश्लेषण कर समावेशी समाधान प्रस्तावित करें।
भारत की सभ्यतागत विरासत और संवाद की संस्कृति पर बल
धनखड़ ने भारत की परंपरागत संवाद परंपरा को आज के राजनीतिक माहौल में जरूरी बताया। उन्होंने कहा, “प्रामाणिक संवाद हमारी सभ्यता की मूल आत्मा है। नारेबाज़ी और उग्रता से समाज नहीं चलता।”
हिंदू बहुलता और बहुसंख्यकवाद के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, “भारत में हिंदू बहुलता कभी भी बहुसंख्यकवाद का प्रतीक नहीं रही है। इसे अक्सर गलत समझा जाता है। हमारे सांस्कृतिक मूल्यों में किसी पर हावी होने की प्रवृत्ति नहीं है।”
“नए भारत” की आत्मा: जनसांख्यिकी, लोकतंत्र और विविधता
अपने समापन भाषण में उपराष्ट्रपति ने भारत के भविष्य की रूपरेखा तीन प्रमुख सिद्धांतों पर रखी: जनसांख्यिकी (Demography), लोकतंत्र (Democracy), और विविधता (Diversity)।
उन्होंने कहा, “इन तीन ‘डी’ में ही नए भारत की आत्मा बसती है। जनसांख्यिकी हमारी मानव पूंजी है, लोकतंत्र सामूहिक निर्णय की प्रणाली और विविधता हमारी पहचान है।”
धनखड़ ने संस्थानों से आह्वान किया कि वे जनसंख्या आंकड़ों का उपयोग न केवल विकास बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को बनाए रखने के लिए करें।
निष्कर्ष: चेतावनी और दिशा, दोनों
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का यह भाषण केवल औपचारिक नहीं बल्कि गंभीर चिंताओं और संभावनाओं का दस्तावेज था। उन्होंने स्पष्ट किया कि जनसंख्या का विज्ञान अब केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह भारत की सुरक्षा और एकता का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
IIPS जैसे शोध संस्थानों के लिए यह एक सीधा संदेश था — आंकड़ों के माध्यम से राष्ट्र को जागरूक करना, और भारत के भविष्य को सुरक्षित करना।