मिथक टूटा, भारत का डंका बजा—चीन में नहीं, नोएडा में है दुनिया की सबसे बड़ी स्मार्टफोन फैक्ट्री; सालाना 12 करोड़ फोन बनाने का दमAdobestock
नई दिल्ली/नोएडा — वैश्विक तकनीकी बाजार में एक लंबे समय से यह धारणा बनी हुई थी कि इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्टफोन विनिर्माण (Smartphone Manufacturing) का एकमात्र बेताज बादशाह चीन है। 'मेड इन चाइना' का ठप्पा लगभग हर गैजेट पर हावी था। लेकिन, अगर हम आपसे कहें कि दुनिया की सबसे बड़ी 'एकल' मोबाइल फैक्ट्री चीन, दक्षिण कोरिया या वियतनाम में नहीं, बल्कि भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के नोएडा शहर में स्थित है, तो शायद आप चौंक जाएंगे।
यह हकीकत न केवल भारत की बढ़ती विनिर्माण क्षमता का प्रमाण है, बल्कि 'मेक इन इंडिया' पहल की एक शानदार सफलता की कहानी भी है। दक्षिण कोरियाई टेक दिग्गज सैमसंग (Samsung) ने नोएडा के सेक्टर 81 में अपनी जिस विशालकाय यूनिट को स्थापित किया है, वह तकनीकी रूप से दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री का खिताब अपने नाम कर चुकी है।
1996 से शुरू हुआ सफर: टीवी से स्मार्टफोन तक की यात्रा
नोएडा में सैमसंग की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह दशकों पुरानी साझेदारी का परिणाम है। इस यूनिट का इतिहास भारत के तकनीकी विकास के साथ-साथ चला है।
- नींव: इस प्लांट की स्थापना वर्ष 1996 में हुई थी। शुरुआती दौर में इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय बाजार के लिए टेलीविजन (TV) सेट बनाना था।
- मोबाइल युग: जैसे-जैसे भारत में मोबाइल क्रांति आई, सैमसंग ने अपनी रणनीति बदली और 2007 में यहाँ मोबाइल हैंडसेट का निर्माण शुरू कर दिया।
- विशाल निवेश: असली गेम-चेंजर साल 2017 साबित हुआ, जब सैमसंग ने इस सुविधा के विस्तार के लिए लगभग 4,915 करोड़ रुपये (700 मिलियन डॉलर) के भारी निवेश की घोषणा की।
- लोकार्पण: जुलाई 2018 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे-इन ने संयुक्त रूप से इस विस्तारित यूनिट का उद्घाटन किया, जिसके बाद इसने आधिकारिक तौर पर 'विश्व की सबसे बड़ी मोबाइल फैक्ट्री' का दर्जा हासिल कर लिया।
35 एकड़ में फैला तकनीकी साम्राज्य
इस फैक्ट्री का पैमाना इतना विशाल है कि इसे देखकर कोई भी दंग रह सकता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो इसकी भव्यता साफ नजर आती है:
- क्षेत्रफल: यह पूरा परिसर करीब 35 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है। इसका कुल निर्मित क्षेत्र (Built-up Area) लगभग 1.4 मिलियन वर्ग फीट है। सरल शब्दों में कहें तो यह 24 अमेरिकी फुटबॉल मैदानों को अपने भीतर समा सकता है।
- उत्पादन क्षमता: विनिर्माण क्षमता के मामले में यह यूनिट एक पावरहाउस है। यहाँ सालाना करीब 12 करोड़ (120 Million) स्मार्टफोन बनाए जा सकते हैं। इसका मतलब है कि भारत की कुल आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए फोन यहीं तैयार हो सकते हैं।
हालांकि, यह समझना जरूरी है कि क्षमता और वास्तविक उत्पादन में अंतर होता है। मांग के अनुसार उत्पादन घटता-बढ़ता रहता है, और वियतनाम अभी भी सैमसंग के वैश्विक उत्पादन का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है।
तकनीकी पेंच: 'एक छत' बनाम 'कैंपस' की बहस
अब सवाल उठता है कि चीन के झेंग्झौ स्थित फॉक्सकॉन (Foxconn) प्लांट का क्या, जिसे 'आईफोन सिटी' कहा जाता है? यहाँ 'सबसे बड़ी फैक्ट्री' की परिभाषा में एक तकनीकी अंतर है।
सैमसंग का दावा: सैमसंग की नोएडा यूनिट को 'दुनिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री' इसलिए माना जाता है क्योंकि यह एक एकल इमारत (Single Roof) के नीचे संचालित होती है। यहाँ कच्चा माल एक तरफ से आता है और दूसरी तरफ से पैक्ड फोन निकलता है।
फॉक्सकॉन की वास्तविकता: दूसरी ओर, फॉक्सकॉन का 'आईफोन सिटी' कुल वॉल्यूम (मात्रा) में सैमसंग से आगे है। वह एक दिन में 5 लाख आईफोन बना सकता है। लेकिन, फॉक्सकॉन का सेटअप एक 'मैन्युफैक्चरिंग कैंपस' जैसा है, जहाँ कई अलग-अलग इमारतें और ब्लॉक हैं, न कि एक सिंगल यूनिट।
इसलिए, 'एकल इकाई' की श्रेणी में भारत बाजी मार ले जाता है।
फॉक्सकॉन अलग-अलग इमारतें क्यों चुनता है?
फॉक्सकॉन और सैमसंग के मॉडल में बुनियादी फर्क है, जो उनकी फैक्ट्री की बनावट तय करता है।
गोपनीयता का मसला: सैमसंग अपनी फैक्ट्री में सिर्फ अपने ब्रांड के प्रोडक्ट बनाता है, इसलिए उसे सब कुछ एक साथ रखने में कोई रिस्क नहीं है। वहीं, फॉक्सकॉन एक कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर है। वह एपल (Apple), गूगल, शाओमी और निंटेंडो जैसी प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लिए डिवाइस बनाता है।सुरक्षा प्रोटोकॉल: एपल जैसी कंपनियां कभी नहीं चाहेंगी कि उनके आने वाले आईफोन का प्रोटोटाइप गूगल या किसी अन्य कंपनी के इंजीनियर देख लें। इसलिए, फॉक्सकॉन को हर क्लाइंट के लिए अलग इमारत या सुरक्षित जोन बनाना पड़ता है।
जोखिम प्रबंधन: अलग-अलग इमारतों का फायदा यह भी है कि अगर किसी एक यूनिट में आग लग जाए या काम रुक जाए, तो पूरा कैंपस प्रभावित नहीं होता।
'चाइना प्लस वन' और भारत का भविष्य
सैमसंग का यह निवेश और अब एपल का भारत में तेजी से विस्तार यह संकेत देता है कि दुनिया अब 'चाइना प्लस वन' (China Plus One) रणनीति को गंभीरता से अपना रही है। कोरोना महामारी और भू-राजनीतिक तनावों के बाद, कंपनियां अपनी सप्लाई चेन को सिर्फ चीन तक सीमित नहीं रखना चाहतीं। भारत, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देश अब नए विनिर्माण हब बनकर उभर रहे हैं।
हमारी राय
नोएडा में स्थित सैमसंग की यह फैक्ट्री केवल कंक्रीट और मशीनों का ढांचा नहीं है, बल्कि यह भारत की बदलती आर्थिक तस्वीर का प्रतीक है। यह साबित करता है कि भारत अब केवल एक 'बाजार' नहीं, बल्कि दुनिया के लिए 'कारखाना' बनने की क्षमता रखता है।
The Trending People का मानना है कि यह उपलब्धि गर्व करने लायक है, लेकिन सफर अभी लंबा है। हमें केवल 'असेंबली लाइन' तक सीमित नहीं रहना चाहिए। असली जीत तब होगी जब मोबाइल के मुख्य पुर्जे—जैसे डिस्प्ले, सेमीकंडक्टर चिप्स और बैटरी—भी भारत में ही बनने लगेंगे। जिस दिन हम मोबाइल की 'बॉडी' के साथ-साथ उसका 'दिल और दिमाग' भी यहाँ बनाने लगेंगे, उस दिन हम सही मायनों में चीन को पीछे छोड़ पाएंगे। फिलहाल, नोएडा की यह फैक्ट्री 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक मजबूत कदम है।
