संसद में गूंजा ‘वंदे मातरम’: राजनाथ सिंह बोले — “यह सिर्फ नारा नहीं, भारत की राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संघर्ष की आत्मा”
नई दिल्ली। संसद के भीतर सोमवार को माहौल देशभक्ति की भावनाओं से भर उठा, जब केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘वंदे मातरम’ पर बोलते हुए इसे केवल गीत नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय चेतना, स्वाभिमान और स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बताया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम एक शब्द नहीं बल्कि एक दर्शन है, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को दिशा और आंदोलन को ऊर्जा दी।
राजनाथ सिंह ने याद दिलाया कि 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ चले आंदोलन के दौरान वंदे मातरम पूरे देश में गूंजा और इस नारे ने क्रांतिकारियों से लेकर आम नागरिक तक हर भारतीय के दिल में स्वतंत्रता की ज्वाला जगाई। उन्होंने कहा कि यही वह नारा था जिसे सुनकर देश के युवा स्वतंत्रता के लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हो जाते थे।
ब्रिटिश सरकार वंदे मातरम से घबराई
रक्षा मंत्री ने कहा कि वंदे मातरम के प्रभाव से ब्रिटिश हुकूमत इतनी भयभीत हो गई थी कि उसने इसके सार्वजनिक गायन और उच्चारण पर प्रतिबंध लगाने के लिए विशेष सर्कुलर जारी किया। इसके बावजूद यह गीत भारतीयों के मन से कभी नहीं मिट पाया और अंग्रेजी शासन के दमन के बीच भी यह स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत बना रहा।
वंदे मातरम समिति और राष्ट्रीय ध्वज में स्थान
राजनाथ सिंह ने बताया कि राष्ट्रवादी चेतना को संगठित करने के लिए उस दौर में वंदे मातरम समिति का गठन किया गया था। साथ ही, 1906 में जब पहला राष्ट्रीय ध्वज तैयार हुआ, उसके मध्य में वंदे मातरम लिखा गया था। उस समय ‘वंदे मातरम’ नाम से अखबार भी प्रकाशित होता था, जो स्वतंत्रता की गूंज पूरे भारत में फैलाता था।
रक्षा मंत्री ने कहा कि वंदे मातरम ने भारतीयों में स्वाभिमान, साहस और आत्मबल भरने का काम किया और यह नारा स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष का आधार बना रहा। उन्होंने संसद के सभी सदस्यों से अपील की कि संविधान, तिरंगा और वंदे मातरम भारतीय पहचान के प्रतीक हैं और उनका सम्मान करना हर नागरिक का नैतिक कर्तव्य है।
हमारी राय
राजनाथ सिंह का संबोधन यह स्पष्ट संदेश देता है कि वंदे मातरम केवल ऐतिहासिक विरासत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता की चेतना का प्रतीक है। वर्तमान समय में भी इससे जुड़ी संवेदनाएं देश को जोड़ने का काम करती हैं, इसलिए इसके सम्मान की चर्चा सिर्फ भावनात्मक नहीं बल्कि राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी है।