बांग्लादेश में लोकतंत्र का 'अपहरण'—यूनुस सरकार की सरपरस्ती में भारत विरोधी एजेंडा, पाकिस्तान की 'नापाक' चाल बेनकाबImage: orfonline
ढाका/नई दिल्ली — हमारा पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश पिछले डेढ़ साल से एक ऐसी तबाही की राह पर चल पड़ा है, जिसका अंत फिलहाल नजर नहीं आता। बीते साल अगस्त में शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से वहां हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। जिसे 'लोकतंत्र की बहाली' का नाम दिया गया था, वह अब 'भारत विरोधी कट्टरपंथ' का अखाड़ा बनता जा रहा है।
अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस, जो प्रधानमंत्री की हैसियत से काम कर रहे हैं, और उनकी सरकार में शामिल युवा चेहरे कथित तौर पर भारत विरोधी भावनाओं को हवा दे रहे हैं। हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार और आगामी चुनावों से ठीक पहले हिंसा का नया दौर कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
आज हम उन 10 सुलगते सवालों की पड़ताल करेंगे जो बताते हैं कि ढाका में रची जा रही साजिश के तार कहां तक फैले हैं।
1. चुनाव से ठीक पहले 'एंटी-इंडिया' नैरेटिव में उबाल क्यों?
बांग्लादेश में चुनाव सिर पर हैं (संभवतः दो माह बाद), और अचानक भारत विरोधी सुर तेज हो गए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक अस्थिरता पैदा करना है। 2024 के छात्र विद्रोह के बाद से यूनुस सरकार के कार्यकाल में यह नैरेटिव और गहराया है। प्रदर्शनकारी खुलेआम भारत विरोधी नारे लगा रहे हैं और यह झूठ फैलाया जा रहा है कि बांग्लादेश के 'शत्रु' भारत में पनाह लिए हुए हैं। यह ध्रुवीकरण (Polarization) का एक क्लासिक तरीका है, ताकि असली मुद्दों से ध्यान हटाकर चुनावी माहौल को अपने पक्ष में मोड़ा जा सके या चुनाव टालने का बहाना मिल सके।
2. इस आग को हवा कौन दे रहा है?
खुफिया रिपोर्ट्स और जमीनी हालात बताते हैं कि इस आग में घी डालने का काम मुख्य रूप से पाकिस्तान समर्थित तत्व और चरमपंथी इस्लामी समूह कर रहे हैं। भारत ने कई बार फ्लैग किया है कि ढाका में पाकिस्तान की भूमिका संदिग्ध है। अवामी लीग के दफ्तरों पर हमले और भारत विरोधी स्लोगन एक सुनियोजित एजेंडे का हिस्सा हैं। आरोप है कि यूनुस सरकार इन इस्लामिस्ट ताकतों को रोकने के बजाय उन्हें मौन समर्थन दे रही है।
3. पाकिस्तान की क्या भूमिका है?
पाकिस्तान अपनी पुरानी 'प्लेबुक' पर काम कर रहा है। वह 1971 की शर्मनाक हार की यादों को मिटाना चाहता है और बांग्लादेश को दोबारा एक कट्टरपंथी देश में बदलना चाहता है। शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने भी दावा किया है कि पाकिस्तान बांग्लादेश की जमीन को भारत के खिलाफ 'लांच पैड' के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। यूनुस के शासन में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की सक्रियता बढ़ने की खबरें चिंताजनक हैं।
4. हिंसा और आगजनी का असली मकसद क्या है?
हाल ही में एक युवा नेता की मौत के बाद अवामी लीग के दफ्तरों को जलाना और मीडिया संस्थानों पर हमले करना केवल गुस्सा नहीं, बल्कि एक रणनीति है। इसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को बाधित करना है। आलोचकों का कहना है कि हिंसा का माहौल बनाकर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि देश में अभी चुनाव कराने के हालात नहीं हैं, जिससे अंतरिम सरकार को सत्ता में बने रहने का और वक्त मिल जाए।
5. यूनुस सरकार की चुप्पी: मजबूरी या मिलीभगत?
जब देश जल रहा हो, तब शासक की चुप्पी सबसे खतरनाक होती है। मोहम्मद यूनुस ने हिंसा की खबरों को 'अतिशयोक्ति' (Exaggerated) और 'फेक न्यूज' बताकर खारिज करने की कोशिश की है, जबकि हिंदुओं पर हमलों के वीडियो पूरी दुनिया देख रही है। जानकारों के मुताबिक, यह चुप्पी मिलीभगत का संकेत है। सरकार कट्टरपंथियों को नाराज नहीं करना चाहती क्योंकि वे ही उनकी सत्ता का आधार बने हुए हैं।
6. ध्रुवीकरण का खेल कैसे खेला जा रहा है?
बांग्लादेश को धार्मिक और राजनीतिक रूप से बांटा जा रहा है। एक तरफ 'राष्ट्रवादी' बनाम 'भारत समर्थक' (गद्दार) का नैरेटिव सेट किया जा रहा है। हिंदू अल्पसंख्यकों को अवामी लीग का वोट बैंक मानकर निशाना बनाया जा रहा है। यूनुस सरकार इस ध्रुवीकरण को रोकने के बजाय इसे बढ़ावा दे रही है, जिससे जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों को मजबूती मिल रही है।
7. इस्लामिस्ट ताकतों को क्या फायदा हो रहा है?
अराजकता कट्टरपंथ की सबसे अच्छी दोस्त होती है। पाक-समर्थित इस्लामिस्ट ताकतें इस अस्थिरता का फायदा उठाकर अपनी जड़ें जमा रही हैं। यूनुस पर आरोप है कि वे चुनाव में धांधली या देरी के जरिए इन ताकतों को मुख्यधारा की राजनीति में लाना चाहते हैं। अगर ऐसा हुआ, तो बांग्लादेश लोकतंत्र से हटकर 'थियोक्रेसी' (धर्मतंत्र) की ओर बढ़ सकता है।
8. पाकिस्तान मजबूत बांग्लादेश क्यों नहीं चाहता?
एक मजबूत और चुनी हुई सरकार (जैसे शेख हसीना की थी) पाकिस्तान के लिए खतरा है क्योंकि वह भारत के साथ विकास और सुरक्षा में सहयोग करती है। पाकिस्तान चाहता है कि ढाका में कमजोर सरकार रहे ताकि वह उसे अपनी उंगलियों पर नचा सके और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति फैला सके।
9. क्या निशाना बांग्लादेश का लोकतंत्र है?
जी हां, इस पूरी कवायद का अंतिम शिकार बांग्लादेश का लोकतंत्र ही है। हिंसा, डर और विदेशी हस्तक्षेप ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को खोखला कर दिया है। अगर हिंसा के डर से चुनाव टलते हैं, तो यह लोकतंत्र की हार होगी।
10. क्या चुनाव टालने की बड़ी साजिश है?
तमाम संकेत इसी ओर इशारा कर रहे हैं। छात्र संगठन और कुछ राजनीतिक पार्टियां पहले ही 'सुधारों' के नाम पर चुनाव टालने की मांग कर रही हैं। सरकार हिंसा को काबू करने में 'विफल' होकर यह संदेश दे रही है कि माहौल सुरक्षित नहीं है। यह जमीन तैयार की जा रही है ताकि अंतरिम सरकार अनिश्चितकाल तक सत्ता में बनी रहे और पाकिस्तान का एजेंडा लागू हो सके।
हमारी राय
बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह भारत के लिए केवल एक पड़ोसी मुल्क की खबर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है। यूनुस सरकार का रवैया यह स्पष्ट करता है कि वे 'समाधान' का हिस्सा नहीं, बल्कि 'समस्या' का हिस्सा हैं। पाकिस्तान की वापसी और भारत विरोधी भावनाएं इस क्षेत्र को दशकों पीछे धकेल सकती हैं।
The Trending People का मानना है कि भारत सरकार को इस मामले में कूटनीतिक दबाव बनाने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बांग्लादेश में हो रहे मानवाधिकार हनन और लोकतंत्र की हत्या को उजागर करना चाहिए। एक अस्थिर और कट्टरपंथी बांग्लादेश दक्षिण एशिया की शांति के लिए टाइम बम साबित हो सकता है।
