तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर: 1000 साल पुराना वास्तुकला का अजूबा, सावन में आस्था का केंद्रफोटो : आईएएनएस
नई दिल्ली: सावन का पवित्र महीना चल रहा है, और देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा है। इसी कड़ी में, तमिलनाडु के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि अपनी अद्भुत वास्तुकला और इंजीनियरिंग के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। 1000 वर्ष से भी पुराना यह भव्य मंदिर चोल वंश की शक्ति, कला और भक्ति का प्रतीक है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल इस मंदिर का 80 टन वजनी शिखर और भूकंप के झटकों को सहने की क्षमता आज भी हर किसी को हैरत में डालती है।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, बृहदेश्वर मंदिर की वास्तुकला और शिलालेख इसे अनूठा बनाते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि एक अमूल्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है, जो चोल वंश की भव्यता और उनकी कलात्मक उत्कृष्टता को जीवंत रूप से दिखाती है।
द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण: 80 टन का अखंड गुंबद
भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर, जिसे स्थानीय रूप से 'पेरुवुदैयार कोविल' भी कहते हैं, द्रविड़ वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी सबसे प्रभावशाली विशेषता इसका 200 फीट ऊंचा विमान (शिखर) है, जो दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर शिखरों में से एक है। इस विशाल शिखर पर 80 टन का एक अखंड ग्रेनाइट गुंबद स्थापित है।
यह आज भी एक रहस्य है कि चोल इंजीनियरों ने इस विशालकाय गुंबद को इतनी ऊंचाई पर कैसे स्थापित किया होगा। इतिहासकारों का मानना है कि इसे ऊंचाई पर ले जाने के लिए चोल इंजीनियरों ने एक विशेष झुकाव वाला पुल (रैंप) बनाया था, जिसकी लंबाई कई किलोमीटर रही होगी। आश्चर्य की बात यह है कि तंजावुर में ग्रेनाइट की कोई खदान नहीं थी, फिर भी पूरा मंदिर विशाल ग्रेनाइट ब्लॉकों से बना है। इतिहासकारों के अनुसार, 3000 हाथियों और सैकड़ों बैलों की मदद से इन भारी ग्रेनाइट ब्लॉकों को दूर की खदानों से नदियों और नहरों के रास्ते लाया गया होगा। यह उस समय की इंजीनियरिंग और संगठनात्मक क्षमता का अद्भुत प्रमाण है।
दीवारों पर सजे चोल काल के भित्तिचित्र और शिलालेख
मंदिर की दीवारें चोल काल के शानदार भित्तिचित्रों और शिलालेखों से सजी हैं, जो उस समय के दैनिक जीवन, शाही समारोहों, धार्मिक अनुष्ठानों और भरतनाट्यम जैसी कलाओं को दर्शाते हैं। ये भित्तिचित्र और नक्काशी उस युग की कलात्मक उत्कृष्टता और सांस्कृतिक समृद्धि का दर्पण हैं। शिलालेख चोल राजवंश, उनके प्रशासन, विजयों और सामाजिक-आर्थिक जीवन के बारे में अमूल्य ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत ऐतिहासिक दस्तावेज बन जाता है।
राजराज प्रथम का सपना: 6 साल में बना भव्य मंदिर
इस भव्य मंदिर की नींव चोल शासक राजराज प्रथम ने 1004 ईस्वी में रखी थी, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। शिलालेखों के अनुसार, 1010 ईस्वी में मंदिर के विमान पर सोने का कलश स्थापित किया गया, जिसका अर्थ है कि यह विशाल और जटिल मंदिर मात्र छह साल के रिकॉर्ड समय में बनकर तैयार हो गया था। यह उस समय की इंजीनियरिंग क्षमता, कुशल कारीगरी और शासकों के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
चोल राज में बृहदेश्वर मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं था, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र भी था। शाम को लोग यहां संगीतकारों और देवदासियों के नृत्य का आनंद लेने के लिए जुटते थे, जिससे यह समुदाय के सामाजिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया था। मंदिर को रोशन करने के लिए 160 दीपक और मशालें जलाई जाती थीं, जिनके लिए 2832 गायों, 1644 भेड़ों और 30 भैंसों से घी की आपूर्ति होती थी। चरवाहों को इसके लिए विशेष रूप से जमीनें दी गई थीं, जो उस समय की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को दर्शाती हैं।
मंदिर की संरचना और स्थापत्य विशेषताएं
बृहदेश्वर मंदिर का लेआउट और संरचना द्रविड़ वास्तुकला के सिद्धांतों का पालन करती है। मंदिर का गर्भगृह, अर्धमंडप, महामंडप, मुखमंडप और नंदी मंदिर पूर्व-पश्चिम अक्ष पर बने हैं, जो एक सीधी रेखा में संरेखित हैं। परिसर में गणेश, सुब्रह्मण्यम, बृहन्नायकी, चंडिकेश्वर और नटराज के छोटे मंदिर भी हैं, जो मुख्य देवता के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा को भी दर्शाते हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर विशाल द्वारपाल मूर्तियां चोल कला की विशिष्ट विशेषता दिखाती हैं, जो मंदिर की भव्यता को और बढ़ाती हैं। एक दोहरी दीवार वाले प्रांगण के भीतर स्थित, बृहदेश्वर एक विशिष्ट द्रविड़ शैली का मंदिर है जिसमें प्रवेश करने के लिए पूर्व में बड़े प्रवेश द्वार हैं जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। इस मंदिर में विशेष रूप से दो गोपुरम हैं, जो इसकी पहचान हैं। प्रवेश द्वार की रखवाली करने वाले, पत्थर के एक-एक खंड से बने दो द्वारपाल हैं। इस गोपुरम में भगवान शिव के जीवन के दृश्यों की सुंदर नक्काशी भी है।
नंदी मंडप के अंदर मुखमंडप और महामंडप भी हैं, जो भक्तों के लिए प्रार्थना और सभा के स्थान हैं। इसके आगे अर्धमंडप है जो गर्भगृह से जुड़ा हुआ है। दो मंजिला गर्भगृह है, जिसके केंद्र में एक विशाल लिंग स्थित है। दो मंजिलों जितना बड़ा, यह शिवलिंग उस समय के सबसे विशाल लिंगों में से एक माना जाता है। गर्भगृह एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है और इसकी योजना वर्गाकार है। इसके चारों ओर एक गलियारा है जो परिक्रमा पथ है, जहां भक्त घूमकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
विश्व धरोहर स्थल: एक कालातीत चमत्कार
तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर को देखकर आज भी लोग हैरत में पड़ जाते हैं। 1000 वर्षों के बाद भी 200 फीट ऊंचा मंदिर विमान बिना किसी झुकाव के आज भी खड़ा है, जो चोल इंजीनियरों की अद्वितीय समझ और कौशल का प्रमाण है। मंदिर को साल 1987 में यूनेस्को (UNESCO) ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था, जो इसकी सार्वभौमिक महत्ता और सांस्कृतिक मूल्य को मान्यता देता है।
निष्कर्ष
बृहदेश्वर मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि यह भारतीय कला, वास्तुकला, इंजीनियरिंग और धार्मिक आस्था का एक जीवित स्मारक है। सावन के पवित्र महीने में, यह मंदिर भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है, जो चोल वंश की भव्यता और भगवान शिव की महिमा को दर्शाता है। यह मंदिर भारत की समृद्ध विरासत का एक अमूल्य रत्न है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी कहानी सुनाता रहेगा।