नई दिल्ली/भोपाल: मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर चल रहे विवाद पर मंगलवार, 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की नियुक्तियों में चयनित ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर उन 13% आरक्षित पदों को अनहोल्ड करने की मांग की है, जिन्हें राज्य सरकार ने फिलहाल रोका हुआ है।
ओबीसी अभ्यर्थियों के वकीलों का कहना है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2022 में जो 27% आरक्षण लागू किया था, उसमें से 13% पदों को रोकना संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सरकार से सवाल किया कि आखिर 27% आरक्षण लागू करने से उन्हें किसने रोका? अदालत ने कहा कि हमने कोई रोक नहीं लगाई है, तो फिर आप खुद ही क्यों अटके हुए हैं?
क्या है 27% ओबीसी आरक्षण विवाद?
सितंबर 2022 में मध्य प्रदेश सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर ओबीसी कोटे के तहत 27% आरक्षण में से 13% पदों को ‘होल्ड’ पर रखने का फैसला किया था। सरकार का तर्क था कि हाईकोर्ट की याचिकाओं और अदालती स्थगन आदेशों के चलते वह पूरे 27% आरक्षण को तुरंत लागू नहीं कर सकती।
हालांकि ओबीसी उम्मीदवारों के वकील वरुण ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि सरकार का यह कदम असंवैधानिक और ओबीसी वर्ग के हितों के खिलाफ है। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि सरकार के ‘होल्ड’ वाले आदेश को रद्द कर सभी पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जाए।
शिवम गौतम केस और इसकी पृष्ठभूमि
ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद की शुरुआत मई 2022 में हुई थी, जब शिवम गौतम नाम के एक याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 27% आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए उस पर रोक लगाने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने उस समय 27% आरक्षण के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी।
बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां शिवम गौतम की याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 27% आरक्षण देने पर कोई रोक नहीं है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने उन 13% पदों को अब तक ‘होल्ड’ पर रखा है, जिससे हजारों ओबीसी अभ्यर्थियों को रोजगार से वंचित रहना पड़ा है।
सरकार की दलीलें और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों ने कोर्ट में कहा कि वे भी 27% आरक्षण के पक्ष में हैं और ‘होल्ड’ हटाने को तैयार हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखे सवाल पूछते हुए कहा कि अगर कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है तो फिर आपने खुद ही ऐसा आदेश क्यों जारी किया?
अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह स्पष्ट करे कि उसने अब तक होल्ड क्यों लगाया हुआ है और इसे हटाने में क्या अड़चन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि सरकार खुद आरक्षण लागू करना चाहती है तो उसे न्यायालय से किसी अतिरिक्त अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
आगे क्या?
इस मामले की अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट सरकार से ठोस जवाब मांग सकता है कि वह अब तक 27% आरक्षण को पूर्ण रूप से लागू क्यों नहीं कर पाई है। यदि कोर्ट सरकार के रुख से संतुष्ट नहीं हुआ, तो वह उसे निर्देश जारी कर सकता है कि सभी 27% ओबीसी आरक्षण के पदों पर तत्काल प्रक्रिया शुरू की जाए।
TheTrendingPeople का निष्कर्ष:
मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण से जुड़ा यह मामला न केवल संवैधानिक सवालों को जन्म दे रहा है, बल्कि लाखों युवाओं के भविष्य पर भी असर डाल रहा है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती इस दिशा में अहम संकेत है कि सरकार अब और देर नहीं कर सकती। यदि सरकार खुद भी आरक्षण लागू करने के पक्ष में है, तो उसे न्यायालय के पीछे छिपने के बजाय स्पष्ट कार्यवाही करनी चाहिए। देश में सामाजिक न्याय की दिशा में यह फैसला एक नजीर बन सकता है, बशर्ते इसमें राजनीति से ऊपर उठकर पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ कदम उठाए जाएं।