एमपी हाईकोर्ट का निर्देश: कुपोषण पर कलेक्टरों से मांगी स्टेटस रिपोर्ट, पूर्ववर्तियों की कारस्तानियां उजागर होने का डर
जबलपुर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक अहम निर्देश ने प्रदेशभर के कलेक्टरों की धड़कनें तेज कर दी हैं। कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सभी कलेक्टरों को नोटिस जारी करते हुए कुपोषण की स्टेटस रिपोर्ट तलब की है, जिसे पेश करने में अधिकारियों के हाथ कांप रहे हैं। यह स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि इस रिपोर्ट से उनके पूर्ववर्तियों की कथित कारस्तानियां और अनियमितताएं उजागर हो सकती हैं।
कुपोषण की भयावह स्थिति और कैग रिपोर्ट का खुलासा
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि कुपोषण के मामले में मध्य प्रदेश पूरे देश में दूसरे स्थान पर है, जो वाकई बेहद चिंताजनक स्थिति है। पोषण की कमी के कारण राज्य में बच्चे ठिगने और दुर्बल हो रहे हैं। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि बच्चों और महिलाओं के लिए जो पोषण आहार भेजा जाता है, उसके वितरण और ट्रांसपोर्ट में भी बड़ी गड़बड़ियां हो रही हैं।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट ने इस मामले में और भी गंभीर खुलासे किए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि पोषण आहार के नाम पर अकेले वर्ष 2025 में 858 करोड़ रुपए का बड़ा घोटाला हुआ है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अभी तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या व्यक्ति पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इसी रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने सभी कलेक्टरों से कुपोषण की वर्तमान स्थिति पर विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट मांगी है।
न्यायालय का हस्तक्षेप और जवाबदेही की मांग
जबलपुर निवासी दीपांकर सिंह की ओर से इस संबंध में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। अधिवक्ता अमित सिंह सेंगर ने कोर्ट को अवगत कराया कि प्रदेश में कुपोषण की स्थिति भयावह है और शासन-प्रशासन केवल कागजी आंकड़ेबाजी कर वास्तविक तस्वीर को छिपाने की अनुचित कवायद कर रहा है। उन्होंने कोर्ट से वास्तविक हालात की रिपोर्ट तलब करने की मांग की।
जबलपुर हाईकोर्ट ने इसपर सुनवाई करते हुए प्रदेश के सभी जिलों के कलेक्टरों को कुपोषण की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के सख्त निर्देश दिए हैं। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया है। कोर्ट ने राज्य शासन और मुख्य सचिव सहित अन्य संबंधित अधिकारियों को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
पोषण ट्रेकर व स्वास्थ्य सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े
कोर्ट को अवगत कराया गया कि पोषण ट्रेकर 2.0 और स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार, मध्य प्रदेश कुपोषण के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है। यह स्थिति वाकई बेहद चिंताजनक है और इसकी बड़ी वजह शासकीय योजना तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा व पर्यवेक्षण में गंभीर लापरवाही मानी जा रही है। पोषण आहार में प्रोटीन-विटामिन की कमी के कारण बच्चे ठिगने और दुर्बल हो रहे हैं, जिसके चलते अंडरवेट बच्चों के मामले में मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर आ गया है।
भ्रष्टाचार की परतें: पूर्ववर्तियों की करतूतें उजागर होने का डर
याचिकाकर्ता के अनुसार, अबोध बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण आहार के वितरण और परिवहन में गंभीर अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई हैं। कैग की रिपोर्ट ने पोषण आहार के परिवहन और गुणवत्ता में व्याप्त भ्रष्टाचार को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है, जिसमें 2025 में ही 858 करोड़ रुपए का घोटाला उजागर हुआ है।
हाईकोर्ट द्वारा कलेक्टरों से रिपोर्ट तलब किए जाने से उनके पूर्ववर्तियों की करतूतें उजागर होने का डर है। यह मामला महिला बाल विकास विभाग से संबंधित है, लेकिन विभागीय अधिकारियों को जिले के कलेक्टर को अपने हर कामकाज की रिपोर्ट देनी पड़ती है। ऐसे में, आंगनबाड़ी केंद्रों और कुपोषण मिटाने के नाम पर हुए अरबों रुपए की गड़बड़ी से जिलों के कलेक्टर अनभिज्ञ हों, यह संभव नहीं है।
कुपोषण के भयावह आंकड़े और जमीनी हकीकत
कोर्ट को अवगत कराया गया कि प्रदेश में छह वर्ष तक के करीब 66 लाख बच्चे हैं, जिनमें से 10 लाख से अधिक कुपोषण से ग्रस्त हैं। इनमें से एक लाख 36 हजार बच्चे तो गंभीर कुपोषण से ग्रस्त हैं। वहीं, महिलाओं में एनीमिया की दर 57 प्रतिशत है, जो महिला स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण देते हुए बताया गया कि अकेले जबलपुर में आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए एक करोड़ 80 लाख रुपए का किराया भुगतान किया गया, जबकि इन केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति नाममात्र की है। मध्य प्रदेश में 40 से 50 बच्चे प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत हैं, लेकिन उनकी वास्तविक उपस्थिति संख्या अत्यंत न्यून है। इसके बावजूद 40-50 बच्चों के हिसाब से मध्यान्ह भोजन और अन्य सुविधाओं का भुगतान जारी है। याचिका में दावा किया गया है कि यही भ्रष्टाचार कुपोषण का मूलाधार है।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह निर्देश राज्य में कुपोषण की गंभीर समस्या और पोषण आहार वितरण में व्याप्त भ्रष्टाचार पर एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप है। कलेक्टरों से मांगी गई स्टेटस रिपोर्ट से न केवल वर्तमान स्थिति की स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी, बल्कि यह पूर्ववर्ती अधिकारियों की अनियमितताओं को भी उजागर कर सकती है। यह देखना बाकी है कि इस न्यायिक कार्रवाई के बाद राज्य सरकार कुपोषण से निपटने और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए क्या ठोस कदम उठाती है, ताकि प्रदेश के बच्चों और महिलाओं को उनका हक मिल सके और वे स्वस्थ जीवन जी सकें।