चीन का 'वॉटर बम' खतरा: यारलुंग त्सांगपो पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, भारत चिंतितImage Credit: PTI
नई दिल्ली: चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट "ग्रेट बेंड डैम" बनाने की मंजूरी दे दी है। दिसंबर में शुरू हुए इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर भारत, खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में गहरी चिंता जताई जा रही है। यह वही नदी है जो भारत में अरुणाचल प्रदेश होते हुए असम और फिर बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र के रूप में बहती है, और इस पर चीन का नियंत्रण भारत की जल सुरक्षा के लिए गंभीर निहितार्थ रखता है।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की चेतावनी: अस्तित्व का संकट
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में इस परियोजना को लेकर कड़ी चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना राज्य के जनजातीय समुदायों के अस्तित्व पर खतरा बन सकती है। खांडू ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "यह हमारे आदिवासी समाज और जीवन के लिए अस्तित्व का संकट है। चीन इस बांध को 'वॉटर बम' की तरह इस्तेमाल कर सकता है।" उनकी यह टिप्पणी इस बात पर जोर देती है कि यह केवल एक ऊर्जा परियोजना नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम है जिसके गंभीर मानवीय और पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं।
क्या है ‘ग्रेट बेंड डैम’? (Water Bomb)
चीन द्वारा प्रस्तावित यह बांध 60,000 मेगावाट की क्षमता वाला होगा, जो कि चीन के ही थ्री गॉर्जेस डैम (Three Gorges Dam) से तीन गुना बड़ा है। थ्री गॉर्जेस डैम वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट है। 'ग्रेट बेंड डैम' का निर्माण हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी पर भारी असर डालेगा, जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के प्रति संवेदनशील है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी बड़ी परियोजना से चीन को नदी के प्रवाह को रोकने या मोड़ने की ताकत मिल सकती है, जिससे भारत और बांग्लादेश में जल संकट या बाढ़ की स्थिति बन सकती है। यह क्षमता चीन को 'जल हथियार' के रूप में नदी का उपयोग करने की शक्ति प्रदान करती है, जिससे निचले इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है।
‘जल हथियार’ बन सकता है चीन का बांध (China Water Bomb)
मुख्यमंत्री खांडू ने अपनी चिंताओं को दोहराते हुए कहा कि अगर चीन इस बांध से अचानक पानी छोड़ता है, तो अरुणाचल की सियांग घाटी पूरी तरह तबाह हो सकती है। विशेष रूप से आदि जनजाति और अन्य नदी किनारे रहने वाले समुदायों की जमीन, संपत्ति और जीवन पर सीधा खतरा होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की यह रणनीति "जल को हथियार" की तरह इस्तेमाल करने की दिशा में इशारा करती है, जिससे वह क्षेत्रीय भू-राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत कर सके।
भारत का जवाब: सियांग अपर मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट (China Water Bomb Threat to India)
इस संभावित खतरे को देखते हुए, भारत सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में अपनी जवाबी रणनीति तैयार की है। भारत ने ‘सियांग अपर मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट’ की योजना बनाई है। यह 10,000 मेगावाट का जलविद्युत और बाढ़ नियंत्रण प्रोजेक्ट होगा, जो चीन की किसी भी अचानक हरकत से निपटने के लिए एक रणनीतिक ढाल का काम करेगा। सीएम खांडू ने इस परियोजना के महत्व पर जोर देते हुए कहा, "यह प्रोजेक्ट हमारी जल सुरक्षा और रणनीतिक रक्षा के लिए बेहद जरूरी है।" यह परियोजना न केवल बिजली उत्पादन में मदद करेगी, बल्कि बाढ़ नियंत्रण और जल प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
पर्यावरणीय और भौगोलिक खतरे
‘ग्रेट बेंड डैम’ परियोजना से जुड़े पर्यावरणीय और भौगोलिक खतरे भी कम नहीं हैं। बांध को बनाने के लिए 420 किलोमीटर लंबी सुरंगें नामचा बरवा पर्वत श्रृंखला के भीतर खोदी जाएंगी, जो भूकंप के लिहाज से एक अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। खुद चीनी भूवैज्ञानिकों ने भी भूस्खलन और भूकंप के खतरों को लेकर चेतावनी दी है। इस क्षेत्र में इतनी बड़ी निर्माण गतिविधि से प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम बढ़ सकता है, जिसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।
India की चेतावनी: अब खामोश रहने का वक्त नहीं
सीएम खांडू ने स्पष्ट किया कि भारत अब सिर्फ बातों पर निर्भर नहीं रह सकता। उन्होंने कहा, "हम चीन को नहीं समझा सकते, इसलिए अपनी तैयारी करनी होगी। यही हमारी प्राथमिकता है।" यह बयान भारत की दृढ़ता और अपनी संप्रभुता तथा नागरिकों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने की इच्छा को दर्शाता है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार जनजातीय समुदायों को इस खतरे के बारे में जागरूक करने के लिए जल्द ही बैठक करेगी ताकि वे भी इस खतरे को समझें और साझा रणनीति बन सके। स्थानीय समुदायों को इस प्रक्रिया में शामिल करना उनकी सुरक्षा और अनुकूलन क्षमता के लिए महत्वपूर्ण है।
चीन का यह बांध परियोजना सिर्फ ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है, यह एक रणनीतिक कदम भी है, जिससे भारत और उसके पड़ोसी देशों की जल सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपने जवाबी कदमों को न केवल तेज करे बल्कि उसमें स्थानीय समुदायों को भी सक्रिय रूप से जोड़े। 'सियांग अपर मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट' जैसी पहलें भारत की जल सुरक्षा और रणनीतिक रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस क्षेत्र में किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटने के लिए भारत पूरी तरह तैयार रहे।