सम्मान या राजनीति? कर्नल सोफिया कुरैशी विवाद से क्या सीख ले देश
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की कड़ी जवाबी कार्रवाई ऑपरेशन सिंदूर में जब देश की सेना आतंक के खिलाफ डटी हुई थी, तब एक नाम जो पूरे देश के सामने साहस, अनुशासन और नेतृत्व का प्रतीक बनकर उभरा — वो थीं कर्नल सोफिया कुरैशी। भारतीय सेना की ओर से मीडिया ब्रीफिंग कर रहीं कर्नल कुरैशी ने साबित किया कि भारतीय महिलाएं भी देश की सुरक्षा में किसी से पीछे नहीं हैं।
लेकिन इसी बीच मध्य प्रदेश के मंत्री कुँवर विजय शाह का एक बयान सुर्खियों में आ गया, जिसमें उन्होंने कर्नल कुरैशी की भूमिका को लेकर बेहद आपत्तिजनक, जाति और धर्म से जुड़ी टिप्पणी कर दी।
क्या कहा मंत्री ने?
इंदौर के पास रामकुंडा गांव में एक सभा को संबोधित करते हुए मंत्री शाह ने कहा:
“जिन लोगों (आतंकियों) ने हमारी बहनों का सिंदूर मिटाया... उन्हें हमने उनकी ही बहन को भेजकर तबाह कर दिया। उन्होंने हमारे हिंदू भाइयों को मारा। मोदी जी ने जवाब में उनकी (आतंकियों की) बहन को सेना के विमान में बैठाकर उनके घर में घुसकर मारा।”
इस बयान ने विपक्षी दलों और नागरिक समाज में भारी आक्रोश पैदा कर दिया। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंचों तक लोग इस बयान को शर्मनाक, भड़काऊ और देश की बेटियों का अपमान बता रहे हैं।
माफी तो आई, लेकिन कार्यवाही नहीं
विवाद के बाद मंत्री विजय शाह ने कहा कि उनका इरादा किसी की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं था और अगर उनके शब्दों से समाज आहत हुआ है तो वो "दस बार माफी मांगने को तैयार हैं"। लेकिन क्या सिर्फ माफी से बात खत्म हो जाती है?
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि पार्टी ने मामले को गंभीरता से लिया है और मंत्री को चेतावनी दी गई है। उन्होंने कहा, “कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की टिप्पणी करने का हकदार नहीं है। वह बहन (कर्नल सोफिया) देश की बेटी है और पूरे देश को उन पर गर्व है।”
हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि क्या मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी, तो वे चुप्पी साध गए।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने जताई नाराज़गी
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की चेयरपर्सन विजया राहतकर ने इस बयान को "दुर्भाग्यपूर्ण" और "अस्वीकार्य" बताया। उन्होंने कहा कि यह देश की उन बेटियों का अपमान है जो सीमा पर खड़े होकर देश की सुरक्षा में योगदान दे रही हैं।
उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा:
“कर्नल सोफिया कुरैशी इस देश की गौरवशाली बेटी हैं... पूरे देश को उन पर गर्व है और इस तरह के अपमानजनक बयान की कड़ी निंदा होनी चाहिए।”
बात सिर्फ एक बयान की नहीं है
यह विवाद सिर्फ एक नेता की ज़ुबान फिसलने तक सीमित नहीं है। यह उस राजनीतिक सोच और भाषा की ओर इशारा करता है जो हमारे सैनिकों की पहचान को धर्म और जाति के चश्मे से देखने की कोशिश करती है। यह न केवल व्यक्ति का अपमान है, बल्कि उन संस्थाओं की भी छवि धूमिल करता है जिन पर देश को गर्व है।
कर्नल सोफिया कुरैशी एक भारतीय सैनिक हैं — न कि किसी धर्म, जाति या राजनीति का चेहरा। उनके योगदान को हमें उनके साहस, अनुशासन और नेतृत्व के आधार पर आंकना चाहिए।
नेताओं को ज़िम्मेदार बनना होगा
इस घटना से यह साफ हो गया है कि राजनीतिक बयानबाज़ी में संयम और समझदारी की ज़रूरत है। देश सुरक्षा के मोर्चे पर गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे में नेताओं से उम्मीद की जाती है कि वे राष्ट्र की भावना को मज़बूत करें, न कि उसे कमजोर करें।
जो नेता देश के जवानों की तुलना में टीआरपी और वोट बैंक को प्राथमिकता देते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि असली सेवा किसकी होती है — ज़ुबान की या ज़मीन पर खून-पसीना बहाने वालों की?
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ आतंक के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की नई रणनीतिक सोच का प्रतीक है। और उसमें कर्नल सोफिया कुरैशी जैसी महिला अधिकारियों की भूमिका बेहद अहम है। ऐसे समय में जब देश उनकी बहादुरी का सम्मान कर रहा है, उन्हें राजनीति में घसीटना सिर्फ अनुचित ही नहीं, राष्ट्रीय अपमान भी है।
अब वक्त आ गया है कि देश यह तय करे — क्या हम अपने बहादुर सैनिकों को जाति, धर्म और राजनीति के तराजू में तौलेंगे या उन्हें उनके कर्तव्य और समर्पण के लिए सम्मान देंगे?