इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: परिवार पेंशन पर पत्नी का पहला हक़, नॉमिनेशन से नहीं बदलेगा नियम
नई दिल्ली, 26 नवंबर — परिवार पेंशन को लेकर अक्सर परिवारों में विवाद खड़े होते हैं। कौन हकदार है—पत्नी, बेटा या कोई अन्य सदस्य? ऐसा ही एक विवाद जब इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि परिवार पेंशन न किसी की निजी संपत्ति है, न ही वसीयत की तरह बांटी जा सकती है। यह एक कानूनी अधिकार है जो केवल सरकारी नियमों के अनुसार तय होगा।
क्या था पूरा मामला?
यह विवाद सहायक शिक्षक प्रभु नारायण सिंह के निधन के बाद शुरू हुआ। उनकी पत्नी ने परिवार पेंशन के लिए आवेदन किया, लेकिन विभाग ने इसे इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि शिक्षक ने अपने बेटे अतुल कुमार सिंह को नॉमिनेट कर रखा था। विभाग का तर्क था कि पेंशन फॉर्म में पत्नी की फोटो नहीं थी, इसलिए वह पात्र नहीं हैं।
पत्नी ने इस निर्णय को गलत बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने विवाह प्रमाण पत्र, ग्राम प्रधान का सर्टिफिकेट और फैमिली कोर्ट का आदेश प्रस्तुत किया जिसमें पति को 2015 में उन्हें ₹8,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
कोर्ट का स्पष्ट रुख — “पेंशन निजी संपत्ति नहीं”
हाईकोर्ट ने U.P. Retirement Benefit Rules, 1961 और Civil Service Regulations का अध्ययन करते हुए निर्णय दिया कि—
- परिवार पेंशन का हक़ नॉमिनेशन से नहीं, बल्कि नियमों से तय होता है।
- यदि मृत कर्मचारी पुरुष है, तो पहली हकदार उसकी कानूनी पत्नी (eldest surviving widow) होगी।
- यह व्यवस्था नियम 7(4) में स्पष्ट है।
बेटा क्यों नहीं हकदार?
अदालत ने पाया कि बेटे की उम्र पिता की मृत्यु के समय लगभग 34 वर्ष थी।
नियमों के अनुसार बेटा तभी पात्र होता है जब:
- वह नाबालिग हो, या
- आर्थिक रूप से पूरी तरह निर्भर हो।
34 वर्ष की उम्र में बेटे को आश्रित नहीं माना जा सकता। इसलिए नॉमिनेशन होने के बावजूद वह पेंशन का अधिकार नहीं रखता।
नॉमिनेशन महत्वपूर्ण क्यों नहीं?
नियम 6 के तहत नॉमिनेशन किया जा सकता है, लेकिन—
यह कानूनी प्राथमिकता क्रम को नहीं बदल सकता।- प्राथमिकता:
- पत्नी/पति
- बच्चे
- माता-पिता
इसलिए यदि पत्नी जीवित है और वैध है, तो उसका हक़ सबसे पहले है।
पत्नी की स्थिति — पूरी तरह आश्रित
कोर्ट ने माना कि पत्नी 62 वर्ष की हैं, उनकी कोई आय नहीं है और पति उन्हें वर्षों से भरण-पोषण राशि देते थे, इसलिए वह पूरी तरह आश्रित थीं और पेंशन की पहली हकदार भी।
Final Thoughts from TheTrendingPeople
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला हजारों सरकारी कर्मचारियों के परिवारों में चल रहे पेंशन विवादों पर एक स्पष्ट दिशा देता है। अदालत ने न केवल नियमों को दोहराया बल्कि यह भी संकेत दिया कि पेंशन जैसे लाभ कानूनी अधिकार हैं, जिन्हें नॉमिनेशन या पारिवारिक विवाद बदल नहीं सकते। यह निर्णय उन पत्नियों के लिए भी राहत है जो पति की मृत्यु के बाद आर्थिक असुरक्षा का सामना करती हैं।