स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण: 80% गांव खुले में शौच से मुक्त, 'ओडीएफ प्लस मॉडल' की राह में चुनौतियां
नई दिल्ली, 3 जुलाई। भारत सरकार के महत्वाकांक्षी 'स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण' (SBM-G) के तहत ग्रामीण स्वच्छता की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन 'खुले में शौच से मुक्त प्लस मॉडल' (ODF Plus Model) का दर्जा हासिल करने में अभी भी कुछ चुनौतियां बाकी हैं। बुधवार को नई दिल्ली में आयोजित 'राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यशाला' में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, देश के 80 प्रतिशत गांव खुले में शौच से मुक्त (ODF) हो चुके हैं, जो एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि, इन 80 प्रतिशत गांवों में से केवल 54 प्रतिशत गांव ही 'ओडीएफ प्लस मॉडल' का दर्जा औपचारिक रूप से हासिल कर पाए हैं।
स्वच्छता कवरेज में प्रगति: ठोस और तरल कचरा प्रबंधन
सरकार की रिपोर्ट में ग्रामीण स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी गई। राष्ट्रीय स्तर पर गंदे पानी (ग्रे वॉटर) के प्रबंधन का कवरेज 95 प्रतिशत गांवों तक पहुंच चुका है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में जल प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भी उल्लेखनीय है कि 20 से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह कवरेज 95 प्रतिशत से भी आगे बढ़ चुका है, जो इन क्षेत्रों में प्रभावी कार्यान्वयन को दर्शाता है।
इसके अलावा, ठोस कचरा प्रबंधन का कवरेज भी 87 प्रतिशत गांवों तक पहुंच चुका है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा निपटान और प्रबंधन के लिए विकसित की जा रही प्रणालियों की सफलता को इंगित करता है। वहीं, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन में ब्लॉक स्तर पर 70 प्रतिशत कवरेज हासिल की गई है, जो प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के प्रयासों में प्रगति को दर्शाता है। ये आंकड़े स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दूसरे चरण में ठोस और तरल कचरा प्रबंधन पर दिए जा रहे विशेष जोर को रेखांकित करते हैं।
'ओडीएफ प्लस मॉडल' गांव की परिभाषा
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 80 प्रतिशत लक्षित गांवों ने 'ओडीएफ प्लस मॉडल' की स्थिति हासिल की है, लेकिन केवल 54 प्रतिशत की ही औपचारिक रूप से पुष्टि हो सकी है। 'ओडीएफ प्लस मॉडल' गांव वह होता है, जहां खुले में शौच की आदत पूरी तरह खत्म हो चुकी हो, और इसके साथ ही कुछ अतिरिक्त मानदंड भी पूरे किए गए हों। इन मानदंडों में शामिल हैं:
- ठोस और तरल कचरे का प्रभावी प्रबंधन हो।
- गांव में साफ-सफाई का स्तर अच्छा हो।
- सार्वजनिक जगहों पर कचरा और पानी जमा न हो।
- ओडीएफ से जुड़ी सूचनाएं प्रमुखता से प्रदर्शित की जाती हों, ताकि जागरूकता बनी रहे।
यह दर्शाता है कि केवल शौचालय उपलब्ध कराना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि स्थायी स्वच्छता के लिए समग्र कचरा प्रबंधन और व्यवहार परिवर्तन भी आवश्यक हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यशाला: सहयोग और भविष्य की दिशा
यह महत्वपूर्ण कार्यशाला जल शक्ति मंत्रालय के तहत पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) और यूनिसेफ इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की गई थी। इसमें विभिन्न राज्यों के मिशन निदेशक, सरकारी अधिकारी, विशेषज्ञ और विकास भागीदार शामिल हुए, जिन्होंने ग्रामीण स्वच्छता के भविष्य की रणनीति पर विचार-विमर्श किया।
पेयजल और स्वच्छता विभाग के सचिव अशोक के.के. मीणा ने इस अवसर पर कहा कि स्वच्छता केवल ढांचागत सुविधाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गरिमा, समानता और स्थिरता से जुड़ा एक व्यापक मुद्दा है। उन्होंने जोर दिया कि स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के अगले चरण को पिछले दशक की सामूहिक उपलब्धियों पर आगे बढ़ना चाहिए, जिसमें व्यवहार परिवर्तन और स्थायी समाधानों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाए।
इस दौरान दो महत्वपूर्ण तकनीकी दस्तावेज भी लॉन्च किए गए, जो ग्रामीण स्वच्छता के भविष्य के लिए एक रोडमैप प्रदान करेंगे:
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कर्मियों की सुरक्षा और गरिमा के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी): यह दस्तावेज स्वच्छता कर्मियों के कल्याण और सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करने पर केंद्रित है, जो इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के अधिकारों और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
- जलवायु-संवेदनशील स्वच्छता डिजाइन और सेवाओं के विकास के लिए प्रोटोकॉल: यह दस्तावेज जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए स्वच्छता प्रणालियों को डिजाइन करने के महत्व को रेखांकित करता है, ताकि वे अधिक टिकाऊ और लचीली बन सकें।
स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण ने खुले में शौच को समाप्त करने में सराहनीय प्रगति की है, लेकिन 'ओडीएफ प्लस मॉडल' का दर्जा हासिल करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। ठोस और तरल कचरा प्रबंधन में हुई प्रगति उत्साहजनक है, लेकिन अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है। 'राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यशाला' में हुई चर्चाएं और लॉन्च किए गए दस्तावेज यह दर्शाते हैं कि सरकार और उसके भागीदार ग्रामीण स्वच्छता को एक समग्र और टिकाऊ तरीके से संबोधित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें न केवल बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है, बल्कि व्यवहार परिवर्तन, स्वच्छता कर्मियों की गरिमा और जलवायु संवेदनशीलता भी शामिल है। यह पहल ग्रामीण भारत में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और एक स्वच्छ व स्वस्थ राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।