ट्यूशन पढ़ाकर पाला परिवार, अस्थमा ने करवाया मुंबई का रुख: 'खइके पान बनारस वाला' वाले महागीतकार 'अनजान' का बेमिसाल संघर्ष
नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा को कई ऐसे गीत मिले हैं, जो आज भी हर जश्न और हर दिल की धड़कन का हिस्सा हैं। 'खइके पान बनारस वाला' (Khaike Paan Banaras Wala) उन्हीं गीतों में से एक है, जिसमें बनारस की मस्ती और शरारत पूरी तरह घुल चुकी है। इस अमर गीत को लिखने वाले कलम के धनी थे लालजी पांडेय, जिन्हें दुनिया 'अनजान' के नाम से जानती है। 28 अक्टूबर को उनका जन्मदिन होता है।
गीतों के इस जादूगर का करियर जितना शानदार रहा, उनकी सफलता की राह उतनी ही संघर्ष भरी थी। आलम यह था कि बॉलीवुड में कदम रखने और पहचान बनाने से पहले, इस महान गीतकार ने गणित के सवाल हल करवा कर अपने परिवार का पेट पाला था।
बनारस की मिट्टी में जन्मा कला का जुनून
लालजी पांडेय 'अनजान' का जन्म 28 अक्टूबर 1930 को उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक केंद्र बनारस (वाराणसी) में हुआ था। उनके खून में ही साहित्य और कला का रस घुला हुआ था। उनके परदादा राजाराम शास्त्री एक बड़े ज्ञाता थे, और उन्हीं से कला तथा शब्दों के प्रति उनका गहरा लगाव आया।
बचपन में ही उन्होंने कविता और लेखनी की ओर अपना रुझान दिखाया। बनारस की गलियों में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान, उन्हें शहर के प्रसिद्ध कवि रुद्र काशिकेय से साहित्यिक शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। 'अनजान' की कविताएँ जल्द ही बनारस की स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं। वह काव्य गोष्ठियों में अपनी सुरीली आवाज में कविता पाठ कर स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रिय हो गए थे।
'मधुशाला' की पैरोडी 'मधुबाला' से मिली शुरुआती पहचान
अपने शुरुआती दिनों में, जब हरिवंश राय बच्चन की कालजयी रचना 'मधुशाला' नौजवानों में बहुत लोकप्रिय थी, तब अनजान ने उसका एक पैरोडी रूप 'मधुबाला' लिखा। यह पैरोडी नौजवानों के बीच तेज़ी से मशहूर हुई और उन्हें बनारस के साहित्यिक हलकों में एक अलग पहचान दिला दी। यह उनकी कलात्मक क्षमता का पहला सार्वजनिक प्रमाण था कि वह किस तरह लोकप्रिय विषयों को अपने अंदाज़ में ढाल सकते थे।
अस्थमा ने करवाई मुंबई की यात्रा
'अनजान' के लिए मुंबई आना केवल करियर का फैसला नहीं था, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी ज़रूरी था। उन्हें अस्थमा (Asthma) की गंभीर बीमारी थी। डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी थी कि अगर वह शुष्क वातावरण में रहे, तो उनका जीवन संकट में पड़ सकता है।
यही कारण था कि उन्हें बनारस के शुष्क वातावरण को छोड़कर समुद्र के किनारे कहीं बसने का निर्णय लेना पड़ा। स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने मुंबई (तब बॉम्बे) का रुख किया, और यहीं से उनके जीवन के सबसे लम्बे और कड़े संघर्ष का दौर शुरू हुआ।
मुकेश से मुलाकात और 17 साल का कड़ा संघर्ष
मुंबई आने के बाद, बनारस के उनके एक दोस्त शशि बाबू ने उनकी मुलाकात महान गायक मुकेश (Mukesh) से करवाई। मुकेश ने 'अनजान' की कविताओं को सुना और उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें फिल्मों के लिए गीत लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
मुकेश की मदद से ही उन्हें प्रेमनाथ की फिल्म 'प्रिजनर ऑफ गोलकुंडा' (Prisoner of Golconda) में काम करने का पहला अवसर मिला। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही, लेकिन समीक्षकों और दर्शकों को 'अनजान' द्वारा लिखे गए गाने बहुत पसंद आए।
इस शुरुआती असफलता के बाद, अनजान को जीविका चलाने के लिए एक बेहद मुश्किल रास्ता चुनना पड़ा। वह बच्चों को गणित का ट्यूशन (Math Tuition) पढ़ाकर अपने परिवार का पेट पालते थे। यह ट्यूशन पढ़ाना उनके संघर्ष, मेहनत और हार न मानने की कहानी का एक अहम हिस्सा है।
'गोदान' से मिली पहचान और फिर नहीं देखा पीछे मुड़कर
'अनजान' की मेहनत और लगन तब रंग लाई, जब 17 साल के लंबे संघर्ष के बाद उन्हें मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पर आधारित फिल्म 'गोदान' (Godan) में गीत लिखने का मौका मिला। इस फिल्म के गीतों ने उन्हें बॉलीवुड में एक गीतकार के रूप में वास्तविक पहचान दिलाई।
इसके बाद, उन्हें राजेश खन्ना और मुमताज की फिल्म 'बंधन' में गाने लिखने का अवसर मिला। इस फिल्म का उनका गीत 'बिना बदरा के बिजुरिया' ब्लॉकबस्टर हिट हुआ और उन्हें कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचा दिया।
भोजपुरी और पूर्वांचल की मिठास के मास्टर
सफलता मिलने के बाद, 'अनजान' ने कल्याणजी-आनंदजी, बप्पी लहरी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आर.डी. बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया। उन्होंने बॉलीवुड को 'पिपरा के पतवा सरीखा डोले मनवा', 'बिना बदरा के बिजुरिया', और अमिताभ बच्चन के लिए लिखा गया सुपरहिट गाना 'खइके पान बनारस वाला' जैसे कई यादगार गीत दिए।
उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उनके गीतों में भोजपुरी और पूर्वांचल की मिठास और ठेठ बोली झलकती थी। उनकी यह अनूठी लेखनी लोगों के दिलों को गहराई से छूती थी और उन्हें भीड़ से अलग पहचान दिलाती थी।
विरासत
लालजी पांडेय 'अनजान' का निधन 3 सितंबर 1997 को 67 वर्ष की उम्र में हुआ। उनकी विरासत केवल उनके सुपरहिट गानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी अडिग संघर्ष क्षमता और अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणादायक कहानी भी है।
अनजान का जीवन बताता है कि प्रतिभा को संघर्ष की अग्नि से गुज़रना ही पड़ता है, लेकिन जब वह निखरकर आती है, तो उसकी चमक युगों तक कायम रहती है। बनारस की गलियों से मुंबई की फिल्मी दुनिया तक का उनका सफर आज के संघर्षरत कलाकारों के लिए एक बड़ी सीख है।