दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ पर दायर याचिका खारिज की, कहा – “रचनात्मक अभिव्यक्ति पर रोक नहीं लगाई जा सकती”
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (The Trending People): दिल्ली उच्च न्यायालय ने फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज करते हुए कहा है कि रचनात्मक अभिव्यक्ति को बिना ठोस आधार के सीमित नहीं किया जा सकता। अदालत ने इस याचिका को कलात्मक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का एक अनावश्यक प्रयास बताया और फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
फिल्म पर लगा था इतिहास तोड़ने-मरोड़ने का आरोप
यह याचिका दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ता शकील अब्बास द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता का आरोप था कि फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ में ताजमहल और उससे जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिससे जनता के बीच भ्रम फैल सकता है और सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने का खतरा है।
याचिका में फिल्म के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता परेश रावल को पक्षकार बनाया गया था। इसके अलावा केंद्र सरकार और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) को भी इसमें शामिल किया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा – “कलात्मक स्वतंत्रता का सम्मान जरूरी”
अदालत ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि किसी फिल्म की सामग्री पर रोक लगाने के लिए ठोस और प्रमाणित कारण होना चाहिए। अदालत ने कहा कि “सिनेमा एक रचनात्मक अभिव्यक्ति है, जिसे बिना पर्याप्त सबूतों के सीमित नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि फिल्में समाज की सोच, संस्कृति और विचारों का प्रतिबिंब होती हैं। इसलिए बिना उचित आधार के किसी फिल्म की रिलीज रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है।
अदालत ने यह भी माना कि CBFC पहले ही फिल्म की सामग्री की जांच और प्रमाणन कर चुका है, इसलिए अदालत के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया
फिल्म के निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा,
“‘द ताज स्टोरी’ कल्पना या अफवाहों पर आधारित नहीं है। यह छह महीने की गहन रिसर्च, ऐतिहासिक परामर्श और सत्यापित संदर्भों का परिणाम है। हमारे इरादे कभी भी धार्मिक या सांप्रदायिक तनाव भड़काने के नहीं थे, बल्कि एक संतुलित और शोधपरक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के थे।”
उन्होंने आगे कहा कि CBFC ने फिल्म के हर विवरण की जांच की और तब जाकर मंजूरी दी। “मैं दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले का सम्मान करता हूं, जिसने सिनेमा की स्वतंत्रता की भावना को बरकरार रखा। सिनेमा को हमेशा सच्चाई और निडर कहानी कहने का माध्यम रहना चाहिए।”
‘द ताज स्टोरी’ की स्टार कास्ट और रिलीज डेट
फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ में परेश रावल, जाकिर हुसैन, अमृता खानविलकर, स्नेहा वाघ और नमित दास जैसे अनुभवी कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में नजर आएंगे।
फिल्म का निर्देशन तुषार अमरीश गोयल ने किया है, जबकि इसका निर्माण एक प्रमुख बैनर के तहत हुआ है।
यह फिल्म 31 अक्टूबर 2025 को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। माना जा रहा है कि फिल्म इतिहास और सिनेमा प्रेमियों के बीच चर्चा का केंद्र बनेगी।
सोशल मीडिया पर मिला मिला-जुला प्रतिक्रिया
अदालत के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। जहां एक ओर कई लोगों ने रचनात्मक स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए अदालत की सराहना की, वहीं कुछ ने कहा कि ऐतिहासिक विषयों पर बनी फिल्मों में तथ्यों की सटीकता सुनिश्चित करना जरूरी है।
फिल्म के समर्थन में एक यूजर ने लिखा, “अदालत ने सही कहा — कला को सीमित नहीं किया जा सकता। सिनेमा सवाल उठाने का माध्यम है।” वहीं, कुछ दर्शकों ने यह भी कहा कि वे फिल्म देखने के बाद ही राय बनाएंगे।
‘द ताज स्टोरी’: इतिहास, कला और विवाद का संगम
फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ मुगल युग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित बताई जा रही है। इसमें प्रेम, सत्ता और स्थापत्य कला के माध्यम से ताजमहल के इतिहास को एक नए दृष्टिकोण से पेश किया गया है।
निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने फिल्म को “इतिहास की गहराई में उतरने वाला मानवीय और भावनात्मक अनुभव” बताया है। उन्होंने कहा कि दर्शकों को फिल्म में न केवल भव्य विजुअल्स बल्कि सशक्त कथा और शोधपरक दृष्टिकोण भी देखने को मिलेगा।
निष्कर्ष: अदालत का फैसला बना कला जगत के लिए नजीर
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक अहम मिसाल साबित हो सकता है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि रचनात्मक स्वतंत्रता लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है, और किसी भी फिल्म की रिलीज को रोकना तभी संभव है जब उसके खिलाफ ठोस सबूत हों।
‘द ताज स्टोरी’ अब 31 अक्टूबर को दर्शकों के सामने आने के लिए तैयार है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि दर्शक इस फिल्म के शोधपरक दृष्टिकोण को किस नजर से देखते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय सिनेमा के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जहां कला, अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता को लोकतंत्र की आत्मा माना जाता है। ‘द ताज स्टोरी’ अब न केवल एक फिल्म बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी की मिसाल बनकर उभर रही है।
