भारत के मैरीटाइम सेक्टर की ऐतिहासिक यात्राImage via IANS
भारत सदियों से एक समुद्री सभ्यता रहा है — सिंधु घाटी से लेकर चोल वंश तक, भारतीय व्यापारी और नाविक विश्व के समुद्रों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुके थे। आधुनिक दौर में, यह परंपरा अब तकनीकी और रणनीतिक दृष्टि से पुनर्जीवित हो रही है।
साल 2016 में मुंबई में शुरू हुए ग्लोबल मैरीटाइम लीडर्स कॉन्क्लेव का उद्देश्य भारत को समुद्री नीति और नवाचार के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना था। इस बार, नौ साल बाद, वही मंच 85 से अधिक देशों की भागीदारी के साथ एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बन चुका है — यह भारत की बढ़ती मैरीटाइम डिप्लोमेसी और आर्थिक शक्ति का प्रमाण है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में इसी परिवर्तन की झलक प्रस्तुत की। उन्होंने कहा, “भारत का मैरीटाइम सेक्टर 21वीं सदी के इस कालखंड में तेज गति और ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। वर्ष 2025 हमारे लिए ऐतिहासिक साबित हो रहा है।”
भारत की समुद्री नीति का वैश्विक स्वरूप
प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में स्पष्ट किया कि भारत अब केवल एक क्षेत्रीय समुद्री राष्ट्र नहीं, बल्कि वैश्विक समुद्री नेतृत्व की दिशा में अग्रसर है।
भारत के बंदरगाह और शिपिंग सेक्टर ने पिछले दशक में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किए हैं —
- सागरमाला परियोजना के तहत 500 से अधिक परियोजनाएँ प्रगति पर हैं।
- बंदरगाहों की क्षमता 2014 की तुलना में लगभग दोगुनी हो चुकी है।
- कार्गो हैंडलिंग दक्षता में 40% की वृद्धि हुई है।
- ग्रीन शिपिंग मिशन के तहत, भारत 2070 तक नेट-जीरो पोर्ट्स का लक्ष्य लेकर चल रहा है।
इन नीतिगत कदमों ने भारत को समुद्री अवसंरचना के क्षेत्र में विश्व के अग्रणी देशों में शामिल कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के मुख्य बिंदु
1. वैश्विक सहभागिता और साझेदारी
सम्मेलन में 85 से अधिक देशों की भागीदारी अपने आप में भारत की बढ़ती साख को दर्शाती है। यह केवल आर्थिक निवेश का संकेत नहीं, बल्कि विश्व समुदाय के भारत पर भरोसे का प्रतीक है।
मोदी ने कहा, “यह सम्मेलन न केवल भारत की मैरीटाइम शक्ति को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक समुद्री समुदाय के साथ भारत की साझेदारी और नेतृत्व को भी रेखांकित करता है।”2. अरबों रुपए के एमओयू और परियोजनाएँ
सम्मेलन के दौरान सैकड़ों अरब रुपए के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें शामिल हैं:
- बंदरगाह विकास और आधुनिकीकरण परियोजनाएँ
- शिपबिल्डिंग और रिपेयरिंग सेक्टर में विदेशी निवेश
- ग्रीन शिपिंग एवं डिजिटल नेविगेशन सिस्टम्स
- समुद्री सुरक्षा और डाटा-ड्रिवन नेविगेशन प्रोजेक्ट्स
इन सभी पहलुओं से भारत के समुद्री बुनियादी ढांचे को दीर्घकालिक मजबूती मिलेगी।
3. आत्मनिर्भर भारत और ब्लू इकोनॉमी
भारत की ब्लू इकोनॉमी — यानी समुद्र आधारित अर्थव्यवस्था — वर्तमान में लगभग $220 बिलियन की है, जिसे 2030 तक $500 बिलियन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
इसमें मछली पालन, ऑफशोर ऊर्जा, समुद्री पर्यटन और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
साथ ही, भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा शिप रिसाइक्लिंग हब बन चुका है — जो सस्टेनेबल इंडस्ट्रियल ग्रोथ का प्रतीक है।
सागरमाला से आत्मनिर्भरता तक
सागरमाला परियोजना: भारत का मैरीटाइम इंजन
2015 में शुरू हुई सागरमाला परियोजना ने भारतीय समुद्री ढांचे को पुनर्परिभाषित किया। इसका उद्देश्य था —
- बंदरगाहों का आधुनिकीकरण
- तटीय आर्थिक क्षेत्रों का विकास
- कनेक्टिविटी में सुधार
- लॉजिस्टिक लागत में कमी
नतीजतन, भारत के लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक में सुधार हुआ और समुद्री व्यापार की हिस्सेदारी में निरंतर वृद्धि देखी गई।
स्वदेशी शिपबिल्डिंग और मेक-इन-इंडिया
भारत अब स्वदेशी शिपबिल्डिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ रहा है। कोचीन शिपयार्ड और गोवा शिपयार्ड जैसी कंपनियाँ अब रक्षा और वाणिज्यिक जहाज निर्माण में वैश्विक प्रतिस्पर्धा दे रही हैं।
भारत की समुद्री कूटनीति और रणनीतिक महत्त्व
भारत का भौगोलिक स्थान — हिंद महासागर के केंद्र में — उसे वैश्विक मैरीटाइम जियोग्राफी में रणनीतिक बढ़त देता है।
- भारत इंडो-पैसिफिक रीजन में क्वाड एलायंस (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत) का हिस्सा है, जो सुरक्षित और स्वतंत्र समुद्री मार्गों की वकालत करता है।
- भारत की सागर नीति (Security and Growth for All in the Region) क्षेत्रीय साझेदारी और समृद्धि का प्रतीक है।
इन पहलों ने भारत को न केवल सुरक्षा बल्कि सहयोग के केंद्र के रूप में स्थापित किया है।
संतुलित दृष्टिकोण: अवसर और चुनौतियाँ
अवसर:
- निवेश की बढ़ती संभावना: विदेशी निवेशक अब भारत को एक स्थिर और नवाचार-आधारित मैरीटाइम अर्थव्यवस्था मान रहे हैं।
- रोज़गार सृजन: शिपबिल्डिंग, पोर्ट प्रबंधन और लॉजिस्टिक सेवाओं में लाखों नए रोजगार बन सकते हैं।
- ग्रीन एनर्जी और सस्टेनेबल डेवलपमेंट: समुद्री क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा की संभावनाएँ तेज़ी से बढ़ रही हैं।
चुनौतियाँ:
- पर्यावरणीय दबाव: बंदरगाह विस्तार और औद्योगिक गतिविधियाँ तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चुनौती हैं।
- क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा: चीन, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा अभी भी कठोर है।
- तकनीकी निर्भरता: उन्नत शिपबिल्डिंग और ऑटोमेशन में विदेशी तकनीक पर निर्भरता बनी हुई है।
निष्कर्ष: एक समुद्री राष्ट्र का नया उदय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्लोबल मैरीटाइम लीडर्स कॉन्क्लेव 2025 में संबोधन भारत के समुद्री भविष्य की दिशा तय करता है।
भारत अब केवल तटीय राष्ट्र नहीं, बल्कि वैश्विक समुद्री शक्ति बनने की राह पर है — जो न केवल व्यापारिक दृष्टि से, बल्कि पर्यावरण, तकनीक और सुरक्षा के मोर्चे पर भी संतुलित प्रगति कर रहा है।
आने वाले वर्षों में यदि भारत अपने समुद्री लक्ष्यों को पारदर्शिता, नवाचार और साझेदारी के साथ पूरा करता है, तो यह निश्चित रूप से “विश्व का मैरीटाइम हब” बन सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. ग्लोबल मैरीटाइम लीडर्स कॉन्क्लेव क्या है?
यह एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है जहाँ समुद्री नीति, व्यापार, तकनीक और सुरक्षा पर वैश्विक स्तर पर विचार-विमर्श होता है।
2. इस सम्मेलन में कितने देशों ने भाग लिया?
85 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने इस बार भाग लिया, जो भारत की बढ़ती वैश्विक साख का संकेत है।
3. पीएम मोदी ने किन प्रमुख परियोजनाओं का उल्लेख किया?
उन्होंने सागरमाला, ब्लू इकोनॉमी, ग्रीन शिपिंग, और स्वदेशी शिपबिल्डिंग जैसी परियोजनाओं का ज़िक्र किया।
4. भारत के समुद्री क्षेत्र का आर्थिक योगदान कितना है?
वर्तमान में यह GDP का लगभग 5% है, जिसे आने वाले वर्षों में दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है।
5. ब्लू इकोनॉमी क्या है?
यह समुद्र से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों — जैसे मत्स्य पालन, जहाजरानी, और नवीकरणीय ऊर्जा — पर आधारित अर्थव्यवस्था है।
6. भारत की समुद्री नीति का भविष्य क्या है?
भारत ग्रीन, डिजिटल और सुरक्षित समुद्री व्यापार के लिए वैश्विक नेतृत्व की दिशा में तेज़ी से बढ़ रहा है।