कैप्टन विक्रम बत्रा: 25 साल बाद भी गूंज रही है 'ये दिल मांगे मोर!' की ललकार
नई दिल्ली: कुछ नायक ऐसे होते हैं जिनकी कहानियां सिर्फ किताबों में दर्ज नहीं होतीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के दिलों में हमेशा के लिए जलती हुई ज्वाला बन जाती हैं। 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे, भारतीय सेना के जांबाज सिपाही कैप्टन विक्रम बत्रा उन्हीं में से एक थे। करगिल युद्ध में उनके अदम्य साहस, जोशीले हौसले और अटूट जज्बे की कहानी आज भी पूरे देश को प्रेरित करती है। 25 साल पहले, इसी दिन, उन्होंने प्वाइंट 4875 पर तिरंगा लहराने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। यह रिपोर्ट उनकी वीरता को समर्पित है, जिसने इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।
बचपन से ही थी वीरता की पहचान
विक्रम का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण था। गिरधारी लाल बत्रा और कमल कांता बत्रा के घर जन्मे जुड़वां भाइयों में से एक, विक्रम को प्यार से 'लव' कहा जाता था, जबकि उनके भाई का नाम 'कुश' था। बचपन से ही उनमें साहस और नेतृत्व के गुण झलकते थे। उनकी पढ़ाई और खेल दोनों में ही रूचि थी। वे स्कूल में एक बेहतरीन टेबल टेनिस खिलाड़ी थे और साथ ही पढ़ाई में भी हमेशा अव्वल आते। टीवी पर आने वाला सीरियल 'परमवीर चक्र' देखकर उनके अंदर देश के लिए कुछ करने का जुनून पैदा हुआ। कॉलेज में NCC कैडेट रहते हुए उन्होंने 'बेस्ट कैडेट' का खिताब जीतकर अपनी काबिलियत साबित की।
अपनी मां से किया गया वादा, कि वे हमेशा कुछ बड़ा करेंगे, उन्हें मर्चेंट नेवी के आकर्षक प्रस्ताव को ठुकराने के लिए प्रेरित किया। उनका एकमात्र लक्ष्य भारतीय सेना की वर्दी पहनना और देश की सेवा करना था।
सेना में प्रवेश और 'ऑपरेशन विजय' का आगाज
विक्रम बत्रा ने 1996 में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून से अपना प्रशिक्षण पूरा किया और 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुए। उनकी यूनिट को 1999 में 'ऑपरेशन विजय' के तहत करगिल में तैनात किया गया। जब पाकिस्तानी सेना ने धोखे से भारत की चोटियों पर कब्जा कर लिया, तो कैप्टन बत्रा और उनके सैनिकों को उन्हें खदेड़ने का जिम्मा सौंपा गया। उनकी बटालियन को सबसे पहले एक सबसे मुश्किल और महत्वपूर्ण प्वाइंट 5140 को फतह करने का काम दिया गया था।
यह एक ऐसी चौकी थी, जिस पर दुश्मनों ने मशीन गन और भारी हथियारों के साथ कब्जा कर रखा था। इस मिशन पर जाने से पहले, उन्होंने अपने साथियों से एक ऐतिहासिक वादा किया, जिसे आज भी याद किया जाता है, "या तो तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा... लेकिन आऊंगा जरूर।"
प्वाइंट 5140 पर 'ये दिल मांगे मोर!'
विक्रम बत्रा ने अपनी टीम के साथ मिलकर प्वाइंट 5140 पर अप्रत्याशित रूप से हमला किया। दुश्मनों की लगातार गोलीबारी के बीच, उन्होंने चट्टान पर चढ़ाई की, ग्रेनेड फेंके और हाथों-हाथ की लड़ाई में तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इस दौरान वे खुद भी घायल हुए, लेकिन उन्होंने मिशन पूरा होने तक हार नहीं मानी। 20 जून 1999 की सुबह, जब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर प्वाइंट 5140 को फतह कर लिया गया, तो उन्होंने अपनी कमांड पोस्ट पर रेडियो से विजयी संदेश दिया - "ये दिल मांगे मोर!" यह नारा, जो पहले सिर्फ एक विज्ञापन था, अब देश के लिए एक जोश बन चुका था। कैप्टन बत्रा के इस नारे ने न केवल सेना बल्कि पूरे देश में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया।
इस जीत के बाद, विक्रम बत्रा को प्वाइंट 4875 को भी फतह करने का जिम्मा मिला। उनका साहस इतना प्रचंड था कि पाकिस्तानी सेना के जवानों ने उन्हें 'शेरशाह' कहकर पुकारना शुरू कर दिया।
बत्रा टॉप पर आखिरी लड़ाई और सर्वोच्च बलिदान
6 जुलाई 1999 को, जब कैप्टन बत्रा अपनी टीम के साथ प्वाइंट 4875 की ओर बढ़ रहे थे, तो उन्हें एक बार फिर दुश्मन का भारी प्रतिरोध झेलना पड़ा। यह जगह आज 'बत्रा टॉप' के नाम से जानी जाती है। अगली सुबह, एक झड़प के दौरान उनके साथी अधिकारी, कैप्टन नवीन नागप्पा, गंभीर रूप से घायल हो गए। कैप्टन बत्रा ने अपनी जान की परवाह न करते हुए उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। जब एक और जवान गोली लगने से घायल हुआ, तो विक्रम ने उसे बचाने के लिए खुद को दुश्मन की गोलियों के सामने ढाल बना दिया।
उसी दौरान, एक स्नाइपर की गोली उनके सीने में लगी। जीवन की अंतिम सांस लेते हुए भी, उनके होंठों पर अपनी रेजिमेंट का जयघोष था- 'जय माता दी!' 7 जुलाई 1999 को, देश ने अपने इस बहादुर बेटे को खो दिया, लेकिन उनके बलिदान ने प्वाइंट 4875 पर भारत का तिरंगा लहरा दिया।
बलिदान जो आज भी प्रेरित करता है
कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता और नेतृत्व की मिसाल को देखते हुए, उन्हें 15 अगस्त 1999 को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान 'परमवीर चक्र' प्रदान किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने यह सम्मान उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा को दिया। उनके बलिदान को हमेशा याद रखने के लिए, उनकी याद में कई स्थानों और सड़कों का नामकरण किया गया है।
कैप्टन बत्रा सिर्फ एक सैनिक नहीं थे, बल्कि भारतीय युवाओं के लिए एक प्रतीक बन गए हैं। उनका नारा, "ये दिल मांगे मोर!", आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजता है, जो हमें याद दिलाता है कि देश से बढ़कर कुछ नहीं है।
द ट्रेंडिंग पीपल के अंतिम विचार
कैप्टन विक्रम बत्रा का जीवन और उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि वीरता केवल युद्ध के मैदान तक सीमित नहीं है। यह हर उस क्षण में होती है, जब हम निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करते हैं या अपने सिद्धांतों के लिए खड़े होते हैं। उनके जैसा साहस, प्रतिबद्धता और देशभक्ति हमें अपने सपनों को पूरा करने और अपने देश के लिए कुछ महान करने के लिए प्रेरित करती है।
यह उनकी 25वीं पुण्यतिथि है, और द ट्रेंडिंग पीपल उन्हें सलाम करता है। उनके जैसी कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि हम कितने महान देश का हिस्सा हैं और हमें इस महानता को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।