लिपस्टिक का रंगीन सफर: हिरण की चर्बी से ऑर्गेनिक तक
आज की नारी के लिए लिपस्टिक सिर्फ एक ब्यूटी कॉस्मेटिक नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और पहचान का प्रतीक बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके मेकअप किट में सबसे अहम जगह रखने वाली यह लिपस्टिक कभी हिरण की चर्बी से बनाई जाती थी और जिस कंपनी ने इसे पहली बार बाज़ार में बेचा था, वह एक फ्रांसीसी परफ्यूम ब्रांड था? लिपस्टिक का इतिहास वाकई बहुत दिलचस्प और रंगीन है। आइए जानें इसका पूरा सफर।
सभ्यताओं में रची-बसी लिपस्टिक की परंपरा
लिपस्टिक का इतिहास हज़ारों साल पुराना है। इसकी जड़ें प्राचीन सभ्यताओं में मिलती हैं:
- सुमेरियन सभ्यता: इस सभ्यता में लोग फूलों और फलों के रस से रंग तैयार कर अपने होठों को सजाते थे।
- मेसोपोटामिया: यहां की महिलाएं बेशकीमती रत्नों की डस्ट से लिप कलर बनाती थीं, जो उनकी सामाजिक स्थिति को भी दर्शाता था।
- भारत: भारत में तो यह महिलाओं के सोलह श्रृंगार का अभिन्न अंग है, जो सदियों से सौंदर्य और शुभता का प्रतीक रहा है।
इस्लामिक वैज्ञानिक ने दी पहली वैज्ञानिक रूपरेखा
दसवीं सदी में इस्लामिक रसायनशास्त्री और कॉस्मेटोलॉजिस्ट अबू अल कासिम अल जरावी ने लिप कलर का पहला मोडेल्ड फॉर्म तैयार किया था। उनकी यह प्राचीन खोज ही आधुनिक लिपस्टिक का आधार बनी, जिसने लिप कलर को एक ठोस और व्यवस्थित रूप दिया।
हिरण की चर्बी से बनी पहली कमर्शियल लिपस्टिक
आधुनिक लिपस्टिक का व्यावसायिक सफर 1884 में शुरू हुआ, जब फ्रांस की मशहूर परफ्यूम कंपनी गुलेरियन ने पहली बार व्यावसायिक लिपस्टिक तैयार की। यह लिपस्टिक हिरण की चर्बी, बीजवैक्स (मोम) और कैस्टर ऑयल से बनाई गई थी। तब इसे किसी ट्यूब में नहीं, बल्कि रेशमी कागज में लपेटकर बेचा जाता था। उस समय यह प्रोडक्ट केवल अमीर और एलीट क्लास की महिलाओं के लिए ही उपलब्ध था।
ग्रीक साम्राज्य में लिपस्टिक पर कानून और मर्लिन मुनरो का जादू
इतिहासकारों के अनुसार, प्राचीन यूनान में लिपस्टिक का इस्तेमाल केवल वेश्याओं तक सीमित था। वहां के नियमों के अनुसार, वेश्याओं को गहरे रंग की लिपस्टिक लगाना ज़रूरी था, जिससे उनकी पहचान अलग बनी रहे। हालांकि, बाद में यह ब्यूटी कॉस्मेटिक आम महिलाओं तक भी पहुंचा और धीरे-धीरे फैशन आइकन बन गया।
1930 से 50 के दशक में हॉलीवुड की ग्लैमरस एक्ट्रेसेस जैसे मर्लिन मुनरो और एलिजाबेथ टेलर ने लिपस्टिक को एक नई पहचान दी। उन्होंने खास तौर पर लाल रंग की डार्क लिपस्टिक को इतना लोकप्रिय बनाया कि यह आत्मविश्वास और ग्लैमर का प्रतीक बन गई। इन्हीं के चलते रेड शेड्स फैशन में सबसे ज़्यादा चलन में आ गए।
लिपस्टिक के पीछे छिपे कीड़े, धातुएं और खतरनाक केमिकल
आधुनिक लिपस्टिक भले ही दिखने में खूबसूरत हो, लेकिन इसके पीछे की हकीकत चौंकाने वाली है। आज भी कई कंपनियां अपनी लिपस्टिक में ऐसे घटक इस्तेमाल करती हैं, जो चिंता का विषय हैं:
- कीड़ों से बना रंग: कारमाइन (Carmine) एक ऐसा लाल रंग है जो कोचीनियल कीड़े को पीसकर बनाया जाता है। एक पाउंड रंग बनाने के लिए लगभग 70,000 कीड़े मारे जाते हैं।
- हेवी मेटल्स: कई लिपस्टिक में लेड, कैडमियम, आर्सेनिक जैसी हेवी मेटल्स का इस्तेमाल होता है। इनका लंबे समय तक प्रयोग सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है, जिससे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
अब बढ़ रही है नेचुरल लिपस्टिक की डिमांड
लिपस्टिक में इस्तेमाल होने वाले इन संभावित खतरों को देखते हुए अब महिलाएं नेचुरल और ऑर्गेनिक लिपस्टिक को प्राथमिकता देने लगी हैं। आज कई ब्रांड्स ऐसे हैं जो शिया बटर, विटामिन ई, कोको बटर जैसे प्राकृतिक इंग्रेडिएंट्स से बनी लिपस्टिक बाज़ार में ला रहे हैं। इनमें न तो कीड़े, न ही जानवरों की चर्बी और न ही कोई जहरीले केमिकल होते हैं। यह रुझान सुरक्षित और टिकाऊ सौंदर्य उत्पादों की ओर बढ़ते उपभोक्ता झुकाव को दर्शाता है, जिससे सौंदर्य उद्योग में एक सकारात्मक बदलाव आ रहा है।