ईद पर सेवई की मीठी परंपरा: एक ऐतिहासिक सफर
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फोटो : Shutterstock |
सेवई का मध्य पूर्व से भारत तक का सफर
सेवई, जिसे वर्मिसेली भी कहा जाता है, की जड़ें मध्य एशिया और अरब देशों में पाई जाती हैं। इतिहासकारों का मानना है कि अरब व्यापारियों के माध्यम से यह भारत पहुंची। धीरे-धीरे, यह भारतीय खानपान का हिस्सा बन गई।
मुगल दरबार में सेवई की लोकप्रियता
मुगल काल के दौरान सेवई को विशेष महत्व मिला। मुगल बादशाहों के शाही भोजन में इसे खास स्थान दिया गया। यह परंपरा तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप तक पहुंची और यहां की संस्कृति में समाहित हो गई।
भारत में ईद पर सेवई की शुरुआत
राना सफवी की पुस्तक में सेवई के भारत में आगमन का दिलचस्प जिक्र है। बताया जाता है कि 19वीं सदी में बहादुर शाह जफर के शासनकाल में सेवई ने ईद के दावतों में जगह बनाई। लाल किले की शाही दावतों में दूध की सेवई परोसी गई थी। यही वह समय था जब ईद पर सेवई की मीठी परंपरा की शुरुआत हुई।
आज की तारीख में सेवई का महत्व
आज सेवई केवल एक मिठाई नहीं, बल्कि ईद की पहचान बन चुकी है। यह परंपरा न केवल मिठास लाती है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी संजोई जाती है। हर साल ईद के मौके पर सेवई का बनना इस बात का प्रमाण है कि यह मीठा व्यंजन त्योहार की खुशियों को दोगुना कर देता है।
ईद पर सेवई की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आने वाले समय में भी यह मिठास इसी तरह कायम रहेगी।