नेशनल हेराल्ड केस में गांधी परिवार को बड़ा झटका—HC ने सोनिया-राहुल से मांगा जवाब, तुषार मेहता की 'दलील' ने बढ़ाई धड़कनें
नई दिल्ली, दिनांक: 22 दिसंबर 2025 — देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के लिए कानूनी मोर्चे पर राहत की खबरें कम और मुश्किलें ज्यादा नजर आ रही हैं। बहुचर्चित नेशनल हेराल्ड (National Herald) से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की कानूनी लड़ाई अभी खत्म होती नजर नहीं आ रही है।
सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने एक अहम सुनवाई के दौरान गांधी परिवार और अन्य आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। यह नोटिस प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate - ED) की उस याचिका पर जारी किया गया है, जिसमें केंद्रीय एजेंसी ने निचली अदालत (Trial Court) के एक फैसले को चुनौती दी है। अदालत के इस रुख ने एक बार फिर सियासी गलियारों में हलचल तेज कर दी है।
हाईकोर्ट का सख्त रुख: 7 मार्च तक देना होगा जवाब
मामले की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस रविंद्र दुडेजा की एकल पीठ के समक्ष हुई। ईडी की याचिका पर प्रारंभिक दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मामले से जुड़े अन्य सभी आरोपियों को नोटिस जारी किया।
- अगली तारीख: कोर्ट ने सभी पक्षों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया है और मामले की अगली सुनवाई 7 मार्च 2026 के लिए तय की है।
- प्रतिवादी: इस मामले में यंग इंडियन (Young Indian) कंपनी और उससे जुड़े अन्य पदाधिकारी भी जांच के दायरे में हैं।
निचली अदालत के फैसले को चुनौती: क्या है ईडी की शिकायत?
यह पूरा मामला ईडी द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) पर आधारित है। दरअसल, इससे पहले निचली अदालत ने नेशनल हेराल्ड मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों पर संज्ञान (Cognizance) लेने से इनकार कर दिया था। ट्रायल कोर्ट का मानना था कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर अभी पीएमएलए (PMLA) के तहत कार्रवाई का आधार नहीं बनता।
ईडी ने इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। जांच एजेंसी का तर्क है कि:
- कानूनी व्याख्या में चूक: निचली अदालत ने कानून की सही व्याख्या नहीं की है।
- तथ्यों की अनदेखी: मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े अहम तथ्यों और दस्तावेजों को नजरअंदाज किया गया है, जो प्रथम दृष्टया अपराध की पुष्टि करते हैं।
कोर्ट रूम ड्रामा: तुषार मेहता बनाम अभिषेक मनु सिंघवी
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान एक दिलचस्प कानूनी भिड़ंत देखने को मिली। ईडी की ओर से देश के सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने पैरवी की, जबकि गांधी परिवार का बचाव करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी मौजूद थे।
तुषार मेहता की धारदार दलील: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में एक महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु उठाया। उन्होंने दलील दी कि जिस 'शेड्यूल्ड अपराध' (Scheduled Offence) के आधार पर यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बना है, उस पर संज्ञान सुप्रीम कोर्ट तक कायम रखा गया है।
मेहता ने कहा:
"निजी शिकायत (Private Complaint) पर लिया गया संज्ञान, पुलिस एफआईआर (FIR) की तुलना में कहीं अधिक मजबूत कानूनी आधार पर टिका होता है। जब सुप्रीम कोर्ट ने मूल अपराध (आयकर विभाग से जुड़े मामले) में कार्यवाही को सही ठहराया है, तो ट्रायल कोर्ट का मनी लॉन्ड्रिंग के पहलुओं पर संज्ञान लेने से इनकार करना एक गंभीर कानूनी चूक है।"
ईडी का कहना है कि नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों का अधिग्रहण और यंग इंडियन के माध्यम से धन का कथित दुरुपयोग, प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत स्पष्ट मामला बनाता है।
आगे की राह: क्या गिरफ़्तारी की तलवार लटकी है?
दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद अब गेंद सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पाले में है। उन्हें और उनकी लीगल टीम को यह साबित करना होगा कि ट्रायल कोर्ट का फैसला सही था और ईडी की याचिका में कोई दम नहीं है।
अगर हाईकोर्ट, ईडी की दलीलों से सहमत हो जाता है और ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट देता है, तो गांधी परिवार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मुकदमा बाकायदा शुरू हो जाएगा। ऐसी स्थिति में, ईडी पूछताछ के लिए उन्हें दोबारा समन कर सकती है और जांच का दायरा बढ़ा सकती है। यह 2026 के राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।
नेशनल हेराल्ड केस: एक नज़र में
यह मामला 2012 में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक निजी शिकायत से शुरू हुआ था। आरोप है कि गांधी परिवार ने केवल 50 लाख रुपये का भुगतान करके एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की करोड़ों रुपये की संपत्ति का अधिग्रहण कर लिया। यह अधिग्रहण यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड के जरिए किया गया। ईडी इस मामले में वित्तीय अनियमितताओं और हवाला ट्रांजैक्शंस की जांच कर रही है।
हमारी राय
नेशनल हेराल्ड मामला कांग्रेस नेतृत्व के लिए 'गले की हड्डी' बन गया है। जब भी लगता है कि मामला ठंडा पड़ रहा है, कोई न कोई कानूनी मोड़ इसे फिर से सुर्खियों में ला देता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की यह दलील कि "निजी शिकायत पर संज्ञान एफआईआर से ज्यादा मजबूत है", एक नया कानूनी पेच है जिस पर हाईकोर्ट का फैसला नज़ीर बनेगा।
The Trending People का मानना है कि सोनिया और राहुल गांधी के लिए यह सिर्फ कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि एक धारणा (Perception) की लड़ाई भी है। जहां एक तरफ वे इसे "राजनीतिक प्रतिशोध" बताकर जनता की सहानुभूति बटोरने की कोशिश करेंगे, वहीं दूसरी तरफ कानूनी मोर्चे पर अभिषेक मनु सिंघवी की टीम को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। 7 मार्च 2026 की तारीख अब देश की सियासत के लिए अहम हो गई है।